भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान शेखर नाइक घूम रहे हैं बेरोज़गार

भारत में क्रिकेट को धर्म माना जाता है। हमारे देश में क्रिकेटरों को खूब इज्जत और शोहरत मिलती हैं। किसी खिलाड़ी ने अच्छा प्रदर्शन किया तो उसपर पैसा और प्यार दोनों की बौछार होती हैं। मगर इसी देश में नेत्रहीन क्रिकेट में भारतीय टीम को शिखर तक पहुंचाने वाले कप्तान शेखर नाइक अब रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। 2017 में पद्मश्री से सम्मानित शेखर ने 13 साल तक भारतीय टीम के लिए खेला है।

शेखर का जन्म कर्नाटक के शिमोगा जिले में हुआ था। वह जन्म के वक़्त से ही देख नहीं सकते थे, उन्होंने शारदा देवी स्कूल फॉर ब्लाइंड में शुरुआती शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई के साथ साथ क्रिकेट के गुर भी सीखे। इसके बाद प्रथम श्रेणी में उनके अच्छे प्रदर्शन के चलते वह राष्ट्रीय टीम के लिए चुने गए और 2002 से लेकर 2015 तक क्रिकेट खेला।2010 से 2015 तक उन्होंने टीम की कमान भी संभाली। उनकी ही कप्तानी में भारत ने बेंगलुरु में 2012 टी20 विश्व कप और 2014 में केपटाउन में क्रिकेट विश्व कप जीता।इसके साथ ही शेखर कई बेहतरीन मंचो पर दिव्यांगो की क्षमता के बारे में भी बोल चुके हैं।

जैसे-जैसे समय गुज़रा उनकी उम्र भी 30 के पार हो गयी और उनका टीम में चयन नहीं हुआ। इसके बाद वह एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) समर्थनम में काम करने लगे मगर कुछ समय बाद उसे किन्हीं कारणों से छोड़ दिया। शेखर अपने वर्तमान हाल पर कहते हैं कि जब मेरी कोई तारीफ करता है तो मैं बहुत खुश होता हूं। लेकिन मुझे अपनी पत्नी और दो बेटियों की चिंता रहती है। वह फिलहाल नौकरी की तलाश में जुटे हुए हैं। मैंने सांसदों और विधायकों से अपनी नौकरी की गुहार लगाई है, सबने मुझे सिवाय आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से संपर्क भी किया। जिसके बाद उन्हें भरोसा और उम्मीद भी दी गयी मगर अब तक उनकी स्थिति जस की तस बनी हुई है।

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