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क्रिकेट न्यूज: शार्दुल ठाकुर की एक नो बॉल ने मुझे वर्ल्ड कप तक पहुंचा दिया-विजय शंकर

कहते हैं कि मौके बताकर नहीं आते। इन्हें आते ही कैच की तरह लपकने की जरूरत होती है। अगर एक बार किस्मत का कैच ड्रॉप हुआ तो फिर आप हमेशा के लिए ग्राउंड से आउट हो सकते हो। हालांकि, जब विजय शंकर के लिए मुश्किल हालातों के बाद किस्मत के चमकने का मौका आया तो उन्होंने हाथ से जाने नहीं दिया। उस मौके ने उन्हें कम मैच खेलने के बावजूद विश्वकप तक पहुंचा दिया। उन्होंने कड़ी मेहनत की और बिना किसी परिणाम की इच्छा के अच्छा प्रदर्शन करते गए। हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान अपने जीवन के कई अहम खुलासे किए, जिन्हें जानने के बाद आप भी चौंक पड़ेंगे।

कप्तान को रन आउट करवाना पड़ गया भारी

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मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट रणजी ट्रॉफी रही। मेरे और कप्तान के बीच अच्छी साझेदारी बन रही थी लेकिन मेरी वजह से वो आउट हो गए। दुर्भाग्यवश हम मैच भी हार गए। उसके बाद तो लोगों ने मुझे किनारे कर दिया। इस मैच के बाद कप्तान या कोच के मन में मुझे लेकर कुछ नहीं था लेकिन बाहर के लोग कहने लगे कि यह तुम्हारा तमिलनाडु से खेलने का आखिरी मौका था। अब तुम कभी अपने राज्य के लिए नहीं खेल पाओगे। खैर, मैंने फिर कड़ी मेहनत की और तमिलनाडु के लिए खेलने का मौका मिला। मैं आज जहां हूं, उसके लिए शार्दुल ठाकुर का धन्यवाद करता हूं क्योंकि अगर उनकी नो बॉल पर मुझे जीवनदान न मिलता तो आज मैं यहां न पहुंचता। मैं उस वक्त पांचवें नंबर पर खेल रहा था और उस दिन मैंने आखिर तक 95 रन बनाए। उसके बाद मेरा पूरा सीजन अच्छा गया। तमिलनाडु फाइनल में पहुंच गया था। क्वार्टरफाइनल, सेमीफाइनल, फानइनल में मैंने 100, 80 और 100 का स्कोर किया। फिर मुझे इंडिया ए के लिए सिलेक्ट कर लिया गया था।

मैं एक हफ्ते तक सो नहीं पाया

खराब वक्त यहीं खत्म नहीं हुआ। पिछले साल निदहास ट्रॉफी के फाइनल में मैंने नाजुक मौके पर तीन डॉट बॉल खेल डाली। हमने वो मैच दिनेश कार्तिक की बदौलत जीत लिया था लेकिन सोशल मीडिया पर मेरी बहुत आलोचना हुई । मैं एक हफ्ते तक रात में सो नहीं पाया था। मुझे लोगों ने सिर्फ तीन गेंदों में ही जज कर लिया था। उस घटना से मुझे काफी सीखने को मिला कि कैसे सोशल मीडिया, मीडिया और खराब परिस्थितियों का सामना किया जाता है।

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पहले मुझे गालियां देने वाले बाद में सॉरी बोल रहे थे

मैं बहुत शांत रहने वाले में से हूं। नागपुर वनडे में भी मैंने आखिरी ओवर में दो विकेट झटककर भारत को मैच जिताया था। मैं खुश था लेकिन बहुत उत्साहित नहीं था। उस मैच में एक ओवर में 11 रन जीतने के लिए चाहिए थे। मैंने सिर्फ उस ओवर में सीधे विकेट पर गेंदबाजी की थी। मुझे लगा था कि अगर बल्लेबाज मारने में मिस करेगा तो वो आउट हो जाएगा। बस इसी तरह वो मैच मैंने भारत को जिता दिया था। इसके बाद मुझे लगा कि जिंदगी में वक्त एक जैसा नहीं रहता है। वही लोग जो मुझे सोशल मीडिया पर गालियां दे रहे थे, भद्दे कमेंट्स कर रहे थे, उनकी मेरे लिए धारणा अपनी आप बदल गई थी। वही बाद में मुझसे सॉरी बोल रहे थे।

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जब खेलकर आता, तब इंजर्ड हो जाता था

मैं कुछ बातें सोचता हूं तो हंसी आती है। मैंने भारत ए के साथ पांच टूर किए। मेरा रिकॉर्ड रहा है कि जब भी टूर से लौटा हूं, तब-तब इंजरी की वजह से कुछ दिन बाहर रहा हूं। मैं भारत ए के लिए पहली बार न्यूजीलैंड टूर पर गया था। वो पहला मौका था, जब मैं इंजर्ड होकर वापस नहीं लौटा। राहुल द्रविड़ सर भी मेरे बिना चोट खाए लौटने से खुश थे।

थकने के बावजूद खेला रणजी मैच

मैं भारत ए के लिए न्यूजीलैंड गया था। वहां से मुझे रणजी के लिए भारत आना था। मेरी ऑकलैंड से सिंगापुर के लिए फ्लाइट थी। वहां से मुंबई के लिए थी। जहां से मुझे चंडीगढ़ की फ्लाइट पकड़नी थी। एक फ्लाइट लेट होने की वजह से मेरी मुंबई से चंडीगढ़ की फ्लाइट छूट गई। इसके बाद मैं मुंबई से फ्लाइट पकड़कर दिल्ली गया। वहां से चंडीगढ़ के लिए निकला। मैं रात 3:30 बजे चंडीगढ़ पहुंचा और अगले दिन नौ बजे ग्राउंड पर रणजी ट्रॉफी में पंजाब के खिलाफ खेलने पहुंच गया। मैंने सोचा था कि मैं कई मैच अपनी इंजरीज की वजह से गंवा चुका हूं इसलिए थकान की वजह से यह मैच नहीं गंवाऊंगा।

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नेकी कर दरिया में फेंक

मैंने सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी वर्ल्ड कप खेलूंगा। जनवरी तक मुझे यह खयाल नहीं आया। सच बताऊं तो मैं विश्वकप में चयन होने के लिए नहीं खेल रहा था। मेरा पूरा ध्यान अपने नेचुरल गेम पर था। मैं फायदे और नुकसान के लिए नहीं, बस अपने लिए खेल रहा था। कह सकते हैं कि नेकी कर और दरिया में फेंक जैसी स्थिति थी। बस मैंने सोचा था कि अपना शत-प्रतिशत प्रदर्शन दूंगा।

अंबाती रायडू की बात का बुरा नहीं लगा

वर्ल्ड कप में मेरा जब सिलेक्शन हुआ तो चयनकर्ताओं ने कहा कि मैं थ्री डायमेंशन में खेल लेता हूं। इसके बाद अंबाती रायडू ने मुझे लेकर ट्वीट किया था। मैं समझ सकता हूं कि उस वक्त उनकी क्या स्थिति रही होगी। मैं जानता हूं कि जो उन्होंने कहा वो मुझको लेकर नहीं था। उन्होंने सिर्फ अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए वो ट्वीट किया था। मैं उनकी परिस्थितियों को समझ सकता हूं। बतौर क्रिकेटर मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा।

मैंने जिंदगी में कभी गुस्सा नहीं किया

मैंने जब मेलबर्न में पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला था तो मैं दबाव में आ गया था। इतना बड़ा मैदान और लोगों का शोर सुनकर मैं डिप्रेस हो रहा था। मैंने खुद से कहा कि बस सही लेंथ पर गेंदबाजी करो। यह सुनने में सरल लगे लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होता है। मैंने क्रिकेट में कभी अपना पेशंस नहीं खोया। मैंने बचपन क्या अभी तक अपना टेंपर नहीं खोया है। यही मेरी क्वालिटी है कि मैं शांत रहता हूं और ज्यादा उत्साहित भी नहीं होता हूं। मुझे लगता है कि गुस्सा करना सिर्फ अपनी एनर्जी को वेस्ट करना है।

घर रेनोवेट करवाकर प्रैक्टिस के लिए छत पर नेट लगवाया था

मैं जब 16-17 साल का था तब, पापा ने पूछा था कि तुम जिंदगी में क्या करना चाहते हो। मैंने कहा कि क्रिकेट खेलना चाहता हूं। इसके बाद उन्होंने पूरा घर रेनोवेट करवाकर मेरे लिए छत पर नेट लगवा दिया था। वहां इतना स्पेस है कि गेंदबाज पांच स्टेप्स लेकर आसानी से गेंदबाजी कर सकता है। मेरे पापा भी क्रिकेटर थे। उन्होंने जिलास्तर पर क्रिकेट खेला था लेकिन घरवालों की बाउंडेशन की वजह से वह इसे आगे जारी नहीं कर सके। वो जानते थे कि जो मेरे साथ हुआ वो बेटे के साथ न हो।

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Edited by
सावन गुप्ता
 
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