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रोजर फ़ेडरर अब सिर्फ़ नामी शख़्सियत नहीं बल्कि सोच बन गए हैं

क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर, तो F1 में माइकल शुमाकर, फ़ुटबॉल में अगर लियोनेल मेसी तो टेनिस में रोजर फ़ेडरर ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने सिर्फ़ शोहरत नहीं कमाई बल्कि उस खेल का ही पर्यायवाची शब्द बन गए। हो सकता है इनमें से कुछ नामों में आप में से कुछ लोग शायद मुझसे इत्तेफ़ाक न रखें या कहें कि ये नहीं वह होना चाहिए था। लेकिन मैंने उन दौर के खिलाड़ियों का नाम लिया है जब मेरी रगों में भी एक खिलाड़ी दौड़ता था और खेल और खिलाड़ियों को चाहने का नया नया जोश उफ़ान पर था। भारत में पैदा होने की वजह से क्रिकेट मेरा भी पहला प्यार था और सचिन तेंदुलकर भी आप और कईयों की तरह मेरे सबकुछ थे। 2003 क्रिकेट वर्ल्डकप में सचिन का लाजवाब फ़ॉर्म भी याद है तो फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों धुनाई ने कुछ दिन के लिए मेरे सिर से क्रिकेट का भूत उतार दिया था। तब टेनिस मेरा दूसरा प्यार हो चुका था, और उस वक़्त स्विटज़रलैंड के युवा टेनिस खिलाड़ी का ख़ूब नाम हो रहा था। नाम था रोजर फ़ेडरर, मैं भी फ़ेडरर का जल्द ही फ़ैन हो गया था, रोजर ने पहली बार विंबलडन का ख़िताब अपने नाम किया था और तब ख़ूब सुर्ख़ियां बनी थीं कि ''ग्रांड स्लैम जीतने वाले पहले स्विस खिलाड़ी बने रोजर फ़ेडरर।'' तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि अपने देश को पहली बार कोई ग्रैंड स्लैम ख़िताब दिलाने वाला ये खिलाड़ी आने वाले कुछ सालों में टेनिस के सारे रिकॉर्ड्स अपने नाम करते हुए इस खेल पर राज करने लगेगा। 1998 में जूनियर टेनिस में क़दम रखने के साथ ही विंबलडन चैंपियन बन तहलका मचाने वाले रोजर फ़ेडरर के लिए ये तो बस एक शुरुआत थी। अगले 4 सालों तक यानी 2004, 2005, 2006 और 2007 में लगातार वह विंबलडन चैंपियन रहे। 5 सालों तक चैंपियन रहने के बाद छठे साल यानी 2008 में वह रनर अप रहे फिर 2009 में दोबारा ताज अपने सिर पर पहन लिया। इन सालों में सिर्फ़ विंबलडन ही नहीं बल्कि सभी ग्रांड स्लैम (ऑस्ट्रेलियन ओपन, फ़्रेंच ओपन और यूएस ओपन) पर भी फ़ेडरर का राज होता गया। इस दौरान रोजर फ़ेडरर ने पुरुष टेनिस के सिंगल्स मुक़ाबलों में पीट संप्रास के सबसे ज़्यादा 13 ग्रैंड स्लैम को भी पीछे छोड़ दिया था। हालांकि फ़ेडरर ने बुरा दौर भी देखा 2012 में विंबलडन जीतने के बाद फ़ेडरर फिर कोई भी ग्रैंड स्लैम नहीं जीत पा रहे थे। कहा तो ये भी जाने लगा था कि अब फ़ेडरर का करियर ख़त्म होने के कगार पर है उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए। कोई ये कहने लगा कि उनकी उम्र अब उनका साथ नहीं दे रही उनको अब टेनिस कोर्ट को अलविदा कह देना चाहिए। आलोचकों की इन बातों ने जितना फ़ेडेरर को परेशान नहीं किया, उससे कहीं ज़्यादा चोट ने उन्हें परेशान किया। हार के बाद कई बार उनकी आंखों से निकले आंसू भी शायद यही कहते थे कि अब बहुत हुआ। 2002 से लेकर 2016 तक जिस खिलाड़ी की रैंकिंग कभी टॉप-10 के नीचे नहीं आई थी, जिस खिलाड़ी ने 302 हफ़्तों तक लगातार नंबर-1 की कुर्सी पर रहते हुए वर्ल्ड रिकॉर्ड बना डाला था। वह 2016 आते आते टॉप-10 से भी बाहर ह चुका था, हर तरफ़ से फ़ेडरर पर संन्यास का दबाव बढ़ता जा रहा था। लेकिन फ़ेडरर ने भी मानो ठान लिया था कि अपने करियर का वह इस तरह अंत नहीं करेंगे, जज़्बा तो था पर बढ़ती उम्र और चोटिल शरीर उनका साथ नहीं दे रहे थे। पर बड़ा खिलाड़ी वही होता है जो विपरित परिस्थितियों में न सिर्फ़ वापसी करे बल्कि अपने खेल से दोबारा सभी का दिल जीत ले। हार न मानने का फ़ैसला करने के बाद फ़ेडरर ने ख़ुद को टेनिस से कुछ समय के लिए दूर किया और अपनी फ़िट्नेस पर ध्यान देने लगे। कई टूर्नामेंट से बाहर रहना भी फ़ेडरर के संन्यास की अटकलों को बढ़ावा दे रहा था। लेकिन फ़ेडरर ने किसी मक़सद के साथ अपने आप को टेनिस कोर्ट से दूर रखा था, ये उसी उदाहरण की तरह था जैसे शेर शिकार करने से पहले कुछ क़दम पीछे जाता है और फिर वहां से अपने शिकार पर पूरी रफ़्तार और ताक़त के साथ झपट्टा मारता है। फ़ेडरर भी कोर्ट से तो दूर थे लेकिन कोर्ट पर शानदार वापसी के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहे थे। 2017 में फ़ेडरर ने कोर्ट पर वापसी का ऐलान करते हुए सभी को चौंका दिया, अब बारी थी साल के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट की जहां फ़ेडरर अपने करियर की सबसे ख़राब रैंकिंग के साथ 17वीं सीडेड खिलाड़ी के तौर पर शिरकत कर रहे थे। लेकिन रैंकिंग और सीड को फ़ेडेरर ने ठीक उसी तरह एक नंबर साबित कर दिया जैसे उनके लिए उम्र भी बस एक नंबर थी। फ़ेडरर ने एक के बाद एक शानदार जीत दर्ज करते हुए फ़ाइनल में एंट्री ले ली और वहां अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी राफ़ेल नडाल को हराकर 5 साल बाद किसी ग्रैंड स्लैम पर कब्ज़ा जमाया और साबित कर दिया था कि टेनिस और रोजर फ़ेडरर अभी भी साथ साथ हैं। रोजर फ़ेडरर ने इसके बाद इसी साल इंडियन वेल्स और मियामी ओपन के भी चैंपियन बने और इस बात का सभी को अहसास करा दिया कि ऑस्ट्रेलियन ओपन में जीत कोई तुक्का नहीं थी। इसके बाद अपने शरीर और चोट को देखते हुए फ़ेडरर ने फ़्रेंच ओपन से अपना नाम वापस ले लिया था और कहा कि वह ग्रास और हार्ड कोर्ट पर ही खेलेंगे। सभी की नज़रें अब विंबलडन पर थीं, जहां फ़ेडरर एक अलग अंदाज़ में खेलते हुए नज़र आए। लग रहा था मानो ये वही नौजवान है जिसने पहली बार 2003 में विंबलडन अपने नाम किया था। उनके सामने कोई भी विपक्षी हो फ़ेडरर के लिए जीत महज़ औपचारिकता बनती जा रही थी। अगले महीने की 8 तारीख़ को अपना 36वां बसंत पूरा करने वाले फ़ेडरर ने विंबलडन में वह कर दिया जो आज तक सिर्फ़ एक ही खिलाड़ी ने किया था और वह थे बजोर्न बोर्ग जिन्होंने 1976 में पूरे टूर्नामेंट में बिना कोई सेट गंवाए ख़िताब जीता था। रोजर फ़ेडरर ने भी विंबलडन 2017 में एक भी सेट नहीं गंवाते हुए ख़िताबी मुक़ाबले में पहुंचे और फ़ाइनल में भी मैरिन सिलिक को सीधे सेटों में हराते हुए अपना 8वां विंबलडन और करियर का 19वां ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत लिया। इस जीत के साथ ही फेडरर ने न सिर्फ़ अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया बल्कि उन्हें भी अपने खेल का दीवाना बना लिया। जीत के बाद फ़ेडरर ने जो कहा वह इस बात की तरफ़ इशारा कर रहा है कि उनमें अभी भी टेनिस बाक़ी है और वह खेलते रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘’अगर मैं इसी तरह वापसी करते रहा तो फिर 6 महीने का ब्रेक ले लूंगा...।“ रोजर फ़ेडरर की इस वापसी को आप शानदार कहें, या ड्रीम कमबैक कहें या फिर उनका दूसरा जन्म कहा जाए। लेकिन मेरी नज़र में ये खिलाड़ी या फिर कोई शख़्सियत नहीं बल्कि टेनिस के पर्यायवाची बन चुके हैं जो अब सभी के लिए प्रेरणास्रोत से बढ़कर एक सोच हैं।

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