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भारतीय रैसलर जिसने 52 साल के करियर में 1 भी मैच नहीं हारा, 1200 किलो का पत्थर उठाने का कारनामा किया 

WWE और प्रो रैसलिंग फैंस अंडरटेकर की रैसलमेनिया स्ट्रीक, जॉन सीना की 16 WWE चैंपियनशिप जीत, ब्रॉक लैसनर के 500 से ज्यादा दिन तक यूनिवर्सल चैंपियन रहने की बात पर हैरानी मेें पड़ जाते हैं। अगर हम आपको बताएं कि भारत में एक ऐसा रैसलर (पहलवान) हुआ, जो अपने 52 साल के करियर में किसी भी रैसलर के हाथों नहीं हारा, तो आप सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर ऐसा रैसलर कौन था, जिसने दशकों तक देशी-विदेशी रैसलरों को धूल चटाई, लेकिन कभी उनके हाथों चित्त नहीं हुए।

हम बात कर रहे हैं गुलाम मोहम्मद बक्श बट की, जिन्हें पूरी दुनिया 'द ग्रेट गामा' और 'गामा पहलवान' के नाम से जानती है। भारत में सदियों से कुश्ती होती आ रही है, और जाहिर सी बात है इस मिट्टी से अनेकों रैसलर पैदा हुए जिन्होंने देश का नाम रौशन किया। लेकिन गामा पहलवान का नाम और काम सबसे जुदा था।

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400 रैसलरों की प्रतियोगिता में दुनिया ने देखा 10 साल के बच्चे का हुनर

'द ग्रेट गामा' को दुनिया के सबसे महान रैसलरों में शुमार किया जाता है। उनका जन्म 22 मई, 1878 को अमृतसर के एक रैसलिंग परिवार में हुआ। 10 साल की छोटी से उम्र में एक बड़ा कारनामा करने की वजह से गामा चर्चा का केंद्र बन गए। उन्होंने एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिसमें 400 रैसलर शामिल थे। कम उम्र होने के बावजूद गुलाम मोहम्मद टॉप 15 रैसलरों में जगह बनाने में कामयाब रहे। इस कारनामे की वजह से उन्हें दतिया के महाराज ने अपने अंडर ट्रेनिंग दिलवानी शुरु की।

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गामा ने ट्रेनिंग में जमकर पसीना बहाया। ऐसा कहा जाता है कि वो रोजाना 5,000 स्क्वॉट्स (उठ्ठक-बैठक) और 3000 पुशअप्स किया करते थे। इतनी तगड़ी कसरत कर पाने के लिए वो बहुत मात्रा में हेल्दी खाना खाते थे। वो रोजाना कई लीटर दूध में बादाम-पिस्ता मिलाकर पीते थे। इसके अलावा घी और फ्रूट्स खाते थे।

17 साल की उम्र में रुस्तम-ए-हिंद को छकाया

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फोटो सौजन्य:pahelwani.com

गुलाम मोहम्मद ने साल 1895 में मात्र 17 साल की उम्र में भारत के रैसलिंग चैंपियन (रुस्तम-ए-हिंद) रहीम बक्श सुल्तानीवाला को चैलेंज कर दिया। गामा की हाइट 5 फुट 8 इंच थी, जबकि रहीम बक्श की हाइट करीब 7 फुट थी। इस मुकाबले को देखने गए ज्यादातर लोगों ने सोचा होगा कि भारत के रैसलिंग चैंपियन इस 17 साल के बच्चे को आसानी से हरा देंगे, मगर जो हुआ उसने गुलाम मोहम्मद की जिंदगी ही बदल दी। घंटों चली कुश्ती में कोई भी रैसलर विजेता नहीं बना और मुकाबला बराबरी पर छूट गया। ये मुकाबला भले ही बराबरी पर छूटा, पर इसने गुलाम मोहम्मद के करियर को नई ऊंचाई प्रदान की।

इस मुकाबले के करीब एक दशक बाद तक उन्होंने रहीम बक्श के अलावा भारत के बड़े-बड़े पहलवानों को धूल चटाई। भारत में अपनी धाक जमाने के बाद उनकी नजरें विदेशी पहलवानों को चित्त करने पर लग गई।

सात समंदर पार लहराया परचम

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फोटो सौजन्य: pahelwani.com

विदेशी पहलवानों को चैलेंज करने के लिए गुलाम मोहम्मद अपने छोटे भाई के साथ लंदन गए। कम वजन का होने की वजह से उन्हें टूर्नामेंट में एंट्री नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने कई रैसलरों को चैलेंज दिया, लेकिन किसी ने भी उनका चैलेंज स्वीकार नहीं किया।

गामा ने चार कदम आगे जाते हुए स्टेनिसलॉस ज़ाइबेस्को और फ्रैंक गॉच नाम के रैसलरों को चैलेंज दिया और कहा कि या तो उन्हें हरा देंगे या फिर प्राइज मनी जितना पैसा देकर घर चले जाएंगे। गामा का सामना स्टेनिसलॉस, फ्रैंक गॉच से तो नहीं हुआ लेकिन उन्होंने 2 दिनों में कई रैसलरों को हराकर टूर्नामेंट में जगह पक्की कर ली।

10 सितंबर, 1910 को लंदन में जॉन बुल वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में ग्रेट गामा का सामना वर्ल्ड फेमस स्टेनिसलॉस ज़ाइबेस्को से हुआ। 3 घंटे तक चले मुकाबले में गामा ने स्टेनिसलॉस को बुरी तरह छका दिया, हालांकि ये मुकाबला ड्रॉ रहा। चैंपियनशिप के विजेता के नाम के लिए दोनों रैसलरों के बीच एक और मुकाबले की तारीख 17 सितंबर मुकर्रर की गई। गामा से खौफ खाए स्टेनिसलॉस ज़ाइबेस्को इस मुकाबले के लिए पहुंचे ही नहीं और फिर गामा को विजेता घोषित कर दिया गया। इस पूरे दौरे के दौरान गामा ने दुनिया के कई बड़े-बड़े रैसलरों का मात दी।

भारत आकर बने रुस्तम-ए-हिंद

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फोटो सौजन्य: pahelwani.com

रुस्तम-ए-जमाना (वर्ल्ड चैंपियन) बनने के बाद गामा सिंह की नजरें रुस्तम-ए-हिंद बनने पर टिक गईं। इलाहाबाद में उनका सामना चैंपियन रहीम बक्श सुल्तानीवाला के साथ हुआ। सालों पहले दोनों के बीच हुआ मुकाबला भले ही ड्रॉ रहा, लेकिन इस बार जीत गामा सिंह की हुई और वो रुस्त-ए-हिंद बन गए।

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रुस्तम-ए-हिंद बनने के सालों बाद गामा सिंह का एक बार फिर से सामना स्टेनिसलॉस ज़ाइबेस्को के साथ भारत में हुआ। इस मैच को गामा ने आसानी ने अपने नाम कर लिया।

1200 किलो का पत्थर और ग्रेट गामा

साल 1902 में गामा ने वड़ोदरा (पहले बडौदा) में 1200 किलो का पत्थर उठाया था। वो पत्थर आज भी वडोदरा म्यूजिम में रखा हुआ है। दरअसल ग्रेट गामा एक रैसलिंग कम्पीटिशन में हिस्सा लेने के लिए वडोदरा गए थे, जहां उन्होंने 23 दिसंबर, 1902 को ये कारनामा किया।

1947 में बंटवारे के बाद गामा सिंह पाकिस्तान जा बसे। लंबी बीमारी से जूझते हुए उन्होंने 23 मई 1960 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

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Edited by
विजय शर्मा
 
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