रियो ओलंपिक गेम्स में भारतीय अभियान अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है और इसमें स्पष्ट रूप से समझ आया है कि मेडल कितना अहम है। वर्षों तक एथलीट दिमाग में सिर्फ एक लक्ष्य रखकर ट्रेनिंग करता है और उसे हासिल करने की जुगत में वह कई अन्य टूर्नामेंट्स खेलकर अपनी उपयोगिता साबित करने की कोशिश करता है। मगर सबसे बड़े मंच पर पोडियम की अहमियत सबसे अधिक होती है, जिसमें सिर्फ तीन एथलीटों को खड़े रहने का मौका मिलता है। यह विचार लगातार किया जा रहा है कि भारतीय एथलीट आखिर क्यों रियो 2016 में पदक नहीं जीत पा रहे हैं जबकि सभी उम्र वर्गों में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तेजी से बदल रहे हैं और भारत का सबसे बड़ा दल इसमें हिस्सा ले रहा है। भारत के लिए रियो में कई एथलीट चौथे स्थान पर रुक गए, लेकिन खेल जगत में चौथे नंबर के एथलीट को कौन याद रखता है। भारत के रियो में विफलताओं के बीच एक मामला दबी आवाज में चल रहा है कि पिता-माता अपने बेटे/बेटियों को खेल में करियर बनाने की इजाजत नहीं देते हैं। एक धनी देश में खेल में फैल होने को खुशी और सफलता के नीचे रखता है, लेकिन इसके साथ ही उसे करियर में भी दूसरी प्राथमिकता पर रखा जाता है। जहां दीपा करमाकर और ललिता बाबर ने अपनी क्षमता से अधिक झोंककर देश को प्रेरित करने की कोशिश की, वहीं औसत भारतीय युवा उस ऊंचाई को हासिल करने के लिए बहुत संघर्षरत है। भारतीय माता-पिता के लिए पेश की मिसाल पीवी सिंधु ने भारत के लिए बैडमिंटन में पदक की उम्मीद जगाई है। उन्होंने विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान वाली चीन की यांग विहान को मात देकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। सिंधु के पिता पीवी रमन्ना और मां विजया रमन्ना इस समय सिंधु के पास तो नहीं है, लेकिन वह हैदराबाद से 20 किमी की दूरी से अपनी बेटी का समर्थन कर रहे हैं। मगर उनके पिता ने अपनी बेटी की ट्रेनिंग के दौरान जो किया, वह कई भारतीय माता-पिता के लिए बड़ा उदाहरण साबित हो सकता है। एक रेलवे कर्मचारी और पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी सिंधु के पिता ने 8 महीने की छुट्टी ली थी, ताकि वह अपनी बेटी का ट्रेनिंग के दौरान समर्थन कर सके। इस समय के दौरान रमन्ना अपनी बेटी को पुलेला गोपीचंद की एकेडमी सुबह 4 बजे लेकर जाते थे। वह सिंधु से खेल की बारीकी को लेकर बात करते थे। सिंधु की मां (जो सोचतीं हैं कि उनकी बेटी चैंपियन है) के लिए यह मायने नहीं रखता कि पीवी कितना आगे जाएंगी। मगर रियो ओलंपिक्स से पूर्व उन्होंने कहा था, 'उसे अपनी उम्र वालो के समान अन्य चीजें करने का समय नहीं मिला क्योंकि वह ज्यादातर अभ्यास में व्यस्त रहती थी। पिछले पांच महीने उसके लिए बहुत कड़े थे।' क्या इससे भारतीय माता-पिताओं को प्रेरणा मिलेगी कि वह अपने बेटे/बेटी को खेल में करियर बनाने के लिए प्रेरित करें?