Rio Olympics 2016: मुक्केबाज़ मनोज कुमार के ओलंपिक में पहुँचने की कहानी

मुक्केबाज़ मनोज कुमार ने जून 2016 में ताजकिस्तान के रखिमोव शक्वाकात्दज्हों को अजरबेजान के बाकू में एआईबीए वर्ल्ड ओलंपिक क्वालीफ़ायर में क्वार्टरफाइनल में 3-0 से हराकर रियो का टिकट कटवाया। ये मुक्केबाज़ रियो में भारत की तरफ से सबसे अनुभवी मुक्केबाज़ है। लेकिन 29 वर्ष के इस मुक्केबाज़ के लिए रियो तक का सफर आसान नहीं रहा है। कुमार ने 18 वर्ष की उम्र में बॉक्सिंग में अपना करियर बना लिया था। उनके भाई भी मुक्केबाज़ थे, लेकिन उनका राष्ट्रीय स्तर पर कभी चयन नहीं हुआ हालाँकि उन्होंने यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। मनोज ने उनके सपने को सच किया है। साल 2008 में मनोज ने 22 बरस की उम्र में राष्ट्रीय चैंपियन सोम बहादुर को हराकर इस ख़िताब को अपने नाम किया। इस मुक्केबाज़ ने उसके बाद पीछे मुडकर नहीं देखा। साल 2010 में हुए दिल्ली कामनवेल्थ खेलों में मनोज ने स्वर्ण पदक जीता। साल 2016 में दोहा में हुए एशियन खेलों में हरियाणा के राजौंद गाँव के मुक्केबाज़ ने सभी को निराश किया। मनोज का करियर साल 2010 में कामनवेल्थ खेलों तक अच्छा रहा उसके बाद उनके खेल में गिरावट आई। 5 साल के इंतजार के बाद इस मुक्केबाज़ ने 2015 में दोहा में स्वर्ण पदक जीता। लेकिन ये 5 साल उनके निराशा और विवाद से भरे रहे। साल 2012 में लन्दन ओलंपिक में वह क्वार्टरफाइनल मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के टॉम स्टाकर से खराब निर्णय की वजह से हार गये थे। साल 2014 में इस मुक्केबाज़ के साथ अर्जुन अवार्ड को लेकर भी विवाद जुड़ा रहा। जो हेडलाइन बना था। साल 2014 में हुए ग्लासगो कामनवेल्थ खेलों में वह क्वार्टरफाइनल फाइनल में ब्रिटेन के समुएल मैक्सवेल से 3-0 से हार गये। लेकिन कुमार ने हिम्मत नहीं हारी और वह एआईबीए की रैंकिंग में 64 किग्रा भार वर्ग में 6वें स्थान पर काबिज हैं। साल 2015 और इस साल कुमार का प्रदर्शन शानदार रहा है। लन्दन में ज्यादती होने की वजह से हारने वाले कुमार से रियो में लोगों स्वर्ण की आशा है। ये मुक्केबाज़ ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट जैसी किसी भी कंपनी के बगैर सपोर्ट का अच्छा प्रदर्शन करने को तैयार है। मनोज लन्दन की असफलता को इस बार स्वर्ण में बदलना चाहते हैं। इस मुक्केबाज़ का सामना थाईलैंड के वुट्टीचल मसुक, रूस के विताली दुनायट्सेव और क्यूबा के यस्नील टोलेडो से होगा। इसके अलावा मनोज को शिव थापा और विकास कृष्ण यादव का भी सहयोग करना होगा। इस वजह से कुमार के कंधे पर जिम्मेदारी भी है। साथ ही वह इस बार डार्क हॉर्स भी साबित हो सकते हैं।

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