'हिटमैन' रोहित शर्मा की अनसुनी कहानियां

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भारतीय क्रिकेट टीम के दिग्गज खिलाड़ी रोहित शर्मा का जन्म 30 अप्रैल 1987 को हुआ था। उनके पिता गुरुनाथ शर्मा, उन दिनों एक निजी फर्म में केयरटेकर की भूमिका में कार्यरत थे और उनकी माँ गृहणी थीं। जब रोहित सिर्फ डेढ़ साल के थे तो उनका परिवार डोम्बिवली शिफ्ट हो गया था। दो बच्चों का खर्च उठा रहे रोहित के पिताजी को असुविधा न हो इसलिए रोहित ज़्यादातर वक़्त अपने दादाजी और चाचा के साथ ही रहते थे और केवल छुट्टियों में घर जाते थे।

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बचपन से ही रोहित की क्रिकेट के प्रति दीवानगी देखने लायक थी। घंटो क्रिकेट खेलने के बाद, वो अपने परिवार के सदस्यों के साथ क्रिकेट पर चर्चा करते थे। उल्लेखनीय है कि रोहित के चाचा अपने स्कूल और कॉलेज के लिए क्रिकेट खेल चुके थे और ज़रूरत पड़ने पर वो ही रोहित को सुझाव देते थे। बाद में जाकर पूरे विश्व में अपने धाकड़ बल्लेबाज़ी का लोहा मनवाने वाले रोहित की जड़ें शायद अपने घर में मजबूत हुई थीं। रोहित का खेल के प्रति रुझान देखकर, उनके चाचा और उनके दोस्तों ने पैसे मिलाकर उनका दाखिला 1999 में एक क्रिकेट अकादमी में करवाया। बस प्रोफेशनल क्रिकेट में रोहित की एंट्री यहीं से हुई।

आज के युग में सीमित ओवर्स की क्रिकेट में आसानी से छक्के मारने वाले रोहित का करियर बतौर ऑफ स्पिनर शुरू हुआ। तभी कोच दिनेश लड़ ने रोहित को अपना स्कूल बदलने की सलाह दी। रोहित को स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल में दाखिला लेने को कहा गया क्यूंकि यहां की क्रिकेट कोचिंग और ट्रेनिंग काफी बेहतर थी। अपने घर की आर्थिक स्थिति से परिचित, रोहित स्कूल में दाखिला लेने से संकोच कर रहे थे क्यूंकि वो जानते थे कि वे शायद ही इस स्कूल की फीस चुका पाएं। पर मेहनती और जुझारू लोगों को ज़िन्दगी अवसर ज़रूर देती है। कोच दिनेश लड़ ने रोहित के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था करवाई और अगले 4 साल तक रोहित को फीस भरने से छूट दी गयी ताकि वे अपने क्रिकेट पे ध्यान दे सकें। लड़ ने रोहित की बैटिंग प्रतिभा को जल्दी ही भांप लिया और उनकी बैटिंग सुधारने में लग गए।

स्कूल क्रिकेट में नंबर 8 और 9 में बैटिंग करने वाले रोहित को कोच लड़ ने एक मैच में ओपनिंग करने भेज दिया और वे अपने कोच के भरोसे पर खरे उतरे। बतौर ओपनर अपने पहले ही इंटर स्कूल मैच में रोहित ने नाबाद 120 रनों की पारी खेली, शायद भारतीय क्रिकेट में रोहित और ओपनिंग स्लॉट की कहानी उसी दिन ही तय हो गयी थी। अगले चार साल, रोहित अपने बैटिंग तकनीक को सुधारने में व्यस्त रहे और उस दौरान जब भी रोहित बल्ला उठाते, क्रिकेट और भी खूबसूरत खेल लगने लगता।

देवधर ट्रॉफी 2005 में रोहित ने वेस्ट ज़ोन के लिए खेलते हुए घरेलु क्रिकेट में पर्दापण किया। हालांकि रोहित तभी सुर्ख़ियों में आये जब उन्होंने नार्थ ज़ोन के खिलाफ उदयपुर में 123 गेंदों में 142 रनों की पारी खेली। अपने अच्छी बल्लेबाज़ी फॉर्म वे फर्स्ट क्लास क्रिकेट में भी ले गए जहां इंडिया ए के लिए खेलते हुए, रोहित ने कई उम्दा परियां खेली।

2006 -2007 सीजन में अंततः रोहित ने रणजी ट्रॉफी में मुंबई के लिए पर्दापण किया, पर गुजरात के खिलाफ एक दोहरे शतक के अलावा रोहित कोई भी खास करिश्मा नहीं दिखा पाए। हालांकि सेलेक्टर्स रोहित की प्रतिभा को जल्दी ही भांप गए थे और एक साधारण रणजी सीजन के बावजूद, 20 वर्षीय रोहित को आयरलैंड के खिलाफ सीमित ओवरों की श्रंखला के लिए टीम में शामिल किया गया और इसी दौरे पर रोहित ने अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में पहला मैच खेला। हालाकि पहले मैच में रोहित की बैटिंग नहीं आई।

अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में पहला यादगार योगदान रोहित ने 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अर्धशतक लगा कर किया। ये रोहित का भारत के लिए पहला मैन ऑफ़ द् मैच अवॉर्ड था| घरेलु क्रिकेट में अपनी प्रतिभा से सबका मन मोहने वाले रोहित शर्मा भारतीय टीम में अपनी जगह मजबूत नहीं कर पाए और अगले 5 साल टीम से अंदर- बाहर होते रहे। यहां तक कि 2007 में पर्दापण करने वाले रोहित को 2011 वर्ल्ड कप टीम में भी जगह नहीं मिली। दिसंबर 2012 तक, रोहित ने 81 एकदिवसीय पारियों में महज 30 के औसत से 2000 से भी कम रन बनाए थे जिसमे केवल 2 शतक मौजूद थे। ये दोनों शतक एक ही श्रंखला में लगाने के अलावा, रोहित अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे थे|

मुश्किल दौर से गुज़र रहे रोहित को चैंपियंस ट्रॉफी में मिली ओपनिंग स्लॉट शायद टीम मैनेजमेंट का रोहित पे आखिरी दांव था, पर रोहित ने इस मौके को दोनों हाथों से भुनाया और पीछे मुड़कर न देखा। आज रोहित सीमित ओवरों के खेल में भारत के मैच विनर हैं, मुंबई इंडियंस और टीम इंडिया की कप्तानी कर अपनी टीम को कई ट्रॉफी जिता चुके हैं और उनकी अच्छी कप्तानी से प्रभावित, रोहित को भविष्य का नियमित कप्तान भी माना जा रहा है। टेस्ट क्रिकेट में हालांकि रोहित अभी भी अपनी जगह पक्की नहीं कर पाएं हैं। पर अपने मज़बूत इरादों से एकदिवसीय रेटिंग्स में नंबर 2 बल्लेबाज़ बन चुके रोहित के लिए सबसे बड़ा चैलेंज वो खुद हैं।

अगली बार जब रोहित अपने परिचित अंदाज़ में फ्रंट फुट से गेंद को पुल स्ट्रोक के ज़रिये बाउंड्री लाइन के बहार पहुंचाते दिखे, तो याद रखिएगा ये अकेले रोहित की सफलता नहीं, ये कहानी है माँ-बाप की जो 2 बच्चों का खर्च उठाने में उतने सक्षम नहीं थे, ऐसे चाचा की जो क्रिकेट खेलते तो थे पर भारत के लिए खेलना जिनकेे लिए बस सपना रह गया, दादा- दादी की जिनके सामने वो बड़े हुए और एक ऐसे कोच की जिसने सबसे पहले रोहित में वो देखा, जो शायद छोटे रोहित ने खुद में भी न देखा हो। पर सबसे बढ़कर ये कहानी है मेहनत और विश्वास की। विश्व में एक मात्र बल्लेबाज़ जिसने 50 ओवरों में तीन दोहरे शतक लगाए हों, ये हैं भारत के इकलौते "हिटमैन"- रोहित शर्मा ।

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