सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, इन खेलों में भी भारत की रही है एक अलग पहचान

ऐसे देश में जहां क्रिकेट के लिए एक अलग जुनून है और सफलता के हर पल को पूरे देश में धूमधाम और खुशी के साथ मनाया जाता है, वहां ऐसे भी कई पल आये हैं, जहां अन्य खेलों में भी देश के गौरव को ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत कर हमारे खिलाड़ियों ने बढ़ाया है। पिछले कुक समय में भारतीय खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में अपने बेहतरीन प्रदर्शन और सफलताओं के चलते भारत की खेलों की दुनिया में विश्व मंच पर एक अलग ही पहचान बनायी हैं। आईये एक नज़र डाले उन खेलों पर, जिन्होंने देश का गौरव का कार्य किया है। वैसे तो सात दशकों में, कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए कई पदक विजेता रहे हैं, लेकिन यहाँ हम सिर्फ ओलंपिक खेलों, विश्व चैंपियनशिप, एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में हासिल उपलब्धियों को ध्यान में रखा है, क्योंकि इन प्रतियोगिताओं में प्राप्त उपलब्धियों का हर खेल में विशेष महत्व है। #1 क्यू स्पोर्ट्स

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भारतीय खिलाड़ियों ने क्यू स्पोर्ट्स के खेल में असाधारण प्रदर्शन किया है और देश के नाम को खेल में विश्व स्तर पर ले गए। विल्सन जोन्स बिलियर्ड्स में देश के पहले चैंपियन (1958 और 1964) विश्वविजेता बने थे। तीन बार के विश्व चैंपियन माइकल फेरेरा (1977, 1981, 1983) अपनी पीढ़ी के सबसे प्रभावशाली खिलाड़ियों में से एक थे। सेठी 1980 के दशक (1985, 1987) और 2001 में कई विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स चैंपियन रहे। साथ ही 1992, 1993, 1995, 1998, 2006 और 2009 में विश्व पेशेवर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीती। आखिरी कुछ समय में पंकज आडवाणी, गीता सेठी के उत्तराधिकारी बन गए हैं और बिलियर्ड्स और स्नूकर दोनों में एक से अधिक बार विश्व चैंपियन बनकर उच्च स्तर के खेल का प्रदर्शन किया है। आडवाणी ने आईबीएसएफ वर्ल्ड बिलियर्ड्स (2005, 2007, 2008, 2012) और आईबीएसएफ स्नूकर चैम्पियनशिप (2003) में कई बार जीत हासिल की है। साथ ही वर्ल्ड प्रोफेशनल बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप में भी जीत हासिल की है (2009, 2012 और 2014)। इनके अलावा कुछ अन्य भारतीयों ओम अग्रवाल, रूपेश कोठारी, ध्रुव सीतावाला, अशोक शांडिल्य, मानन चंद्र, आलोक कुमार और आदित्य मेहता ने भी विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफलतायें हासिल की हैं। # 2 शूटिंग

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शूटिंग को हमारे देश में निशानेबाज़ी हमेशा से एक पहचान मिली है। करनी सिंह, भीम सिंह, भुवनेश्वरी कुमारी और राजा रणधीर सिंह इनमे उल्लेखनीय नाम थे जिन्होंने 60 और 70 के दशक में राष्ट्रीय शूटिंग सर्किट पर प्रभाव बनाये रखा। भारत ने हमेशा से बेहतरीन निशानेबाज़ों को उभरते हुए देखा पर कोई भी सफलता हासिल नहीं कर सका जब तक कर्नल (तब मेजर) राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एथेंस में 2004 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत के लिए रजत पदक जीता था। इसके बाद अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक (10 एम एयर राइफल) जीत कर भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम क्षण जोड़ दिया। अन्य निशानेबाज़ों में गगन नारंग एक सफल निशानेबाज़ के रूप में उभरें है जिन्होंने आईएसएसएफ वर्ल्ड मीट्स में भारत के लिए पदक जीते है और 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर अपने गौरव को और बढ़ाया। पूर्व पिस्तौल निशानेबाजों जसपाल राणा और समरेश जंग ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक जीते। हाल के वर्षों में सूबेदार विजय कुमार ने 2012 के ओलंपिक में रजत पदक जीता था और वही सेना के एक अन्य निशानेबाज जीतू राय एक नई शूटिंग सनसनी के रूप में देखे गए और पहले ही एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक (50 एम पिस्टल) जीतकर अभूतपूर्व सफलता अर्जित की। इसके अलावा 2015 आईएसएसएफ वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में जीतू ने एक रजत पदक भी जीता। महिला निशानेबाजों की बात करें तो अंजली वेदपाठक 1990 के दशक में भारत की अग्रणी शूटर हुआ करती थी। वेदपाठक ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक जीते। # 3 शतरंज viswanathan-anand-3 शतरंज, एक खेल है जिसमे तीव्र मानसिक बुद्धि, उच्चस्तर की एकाग्रता के साथ स्मृति की आवश्यकता होती है और इस खेल में भारतीयों ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमेशा सराहनीय प्रदर्शन किया है। जब बात शतरंज की हो तो कैसे कोई भी विश्वनाथन आनंद का नाम भूल सकता है। एक ऐसे युग में जब सोवियत संघ के ग्रांडमास्टरस का शासन हुआ करता था ऐसे में उभरे हमारे अपने शतरंज के जादूगर चेन्नई के विश्वनाथन आनंद। आनंद ने 2000 में वर्ल्ड शतरंज चैंपियनशिप जीती और फिर 2007, 2008, 2010,2012 में विश्व चैंपियन रहे। महिलाओं में कोनेरू हम्पी ने भारत की नंबर एक महिला खिलाड़ी के रूप में लम्बे समय तक पहचान बनाई। तनिया सचदेव और द्रोणवल्ली हरिका ने भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत के लिए पदक जीतें हैं। # 4 बैडमिंटन

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प्रकाश पदुकोण भारत के पहले विश्वस्तरीय शटलर थे और 70 के दशक के अंत में भारतीय बैडमिंटन का दबदबा बनाये रखा। 1980 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतकर उन्होंने एक अलग पहचान बनाई और फिर 1983 में आईबीएफ विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक 1981 के विश्वकप में पुरुष एकल का खिताब भी जीतने में सफल रहे। इसके बाद 90 के दशक में पुलेला गोपीचंद का नाम उभरा, जिन्होंने 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन शीर्षक जीतकर इतिहास को दोहराया। गोपीचंद का खेल में एक महत्वपूर्ण योगदान भी रहा क्यूंकि बैडमिंटन के खेल की गुड़वत्ता प्रदान करने के लिए उन्होंने एक अकादमी खोली औरअकादमी में बेहतरीन युवा खिलाड़ियों का निर्माण हुआ। मधुमिता बिष्ट 80 के दशक में देश की शीर्ष महिला शटलर बनके उभरी और फिर कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों की पदक विजेता अपर्णा पोपट ने 90 के दशक में एक अलग पहचान बनाई। हाल के वर्षो में साइना नेहवाल एक कामयाब खिलाड़ी बनके उभरी हैं। न सिर्फ कई दफा सुपर सीरीज बल्कि 2015 के विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप फाइनल में रजत पदक भी जीतीं और 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता रही हैं। इसके अलावा ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा, लगभग एक दशक के लिए अग्रणी युगल जोड़ी रही हैं। हाल फिलहाल में पीवी सिंधू और पी कश्यप, किदंबी श्रीकांत जैसे ऐसे खिलाड़ी उभरें है जिन्होंने विभिन मंचों पर सफलता पा कर देश का गौरव बढ़ाने का कार्य किया है। # 5 लॉन टेनिस

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1960 और 1961 में विंबलडन के सेमीफाइनल तक रामनाथन कृष्णन पहुंचे और फिर कृष्णन ने 1966 में डेविस कप में जयदीप मुखर्जी और प्रेमजीत लाल जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन किया था। 70 के दशक में अमृतराज भाइयों के नाम उभरा , जब दोनों ने 1974 में भारत को डेविस कप के फाइनल में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अपने करियर के शीर्ष पर विराजमान रहते हुए विजय अमृतराज विंबलडन (1 973, 1981) और यूएस ओपन (1973, 1974) के क्वार्टर फाइनल में पहुंचे थे। मगर भारतीय टेनिस की विश्व स्तर पर एक अलग पहचान बनी जब लियंडर पेस और महेश भूपति फ्रेंच ओपन (1999 और 2001) और विंबलडन (1999) को जीतकर टेनिस के इतिहास में सबसे शक्तिशाली युगल जोड़ी बन उभरे। "द इंडियन एक्सप्रेस" के नाम से लोकप्रिय यह जोड़ी 1999 में सभी चार ग्रैंड स्लैम के फाइनल में पहुंची थी। साथ ही पेस ने अटलांटा ओलंपिक (1996) में पुरुष एकल में कांस्य पदक जीता था। लिएंडर और महेश दोनों ही युगल खिलाड़ियों के रूप में बहुत सफल रहे हैं और युगल और मिश्रित युगल वर्ग में कई ग्रैंड स्लैम पिछले वर्षों में एटीपी सर्किट पर जीते हैं। इसके बाद सानिया मिर्जा विश्वस्तर पर भारत की अग्रणी महिला टेनिस स्टार बनकर उभरी हैं। सानिया ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पदक जीते हैं और 2015 में स्विस खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस के साथ विंबलडन और यूएस ओपन जीत सफलता का इतिहास रचा। हाल के वर्षों में सोमदेव देववर्मन,युकी भांबरी, साकेत मायनी और सनम सिंह का भी नाम उभरा परन्तु वह सफलता नहीं हासिल कर सके। रोहन बोपन्ना ने इसी साल फ्रेंच ओपन का युगल ख़िताब जीत भारत को टेनिस में एक और सफलता दिलाई है। # 6 एथलेटिक्स

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नॉर्मन प्रिचर्ड 1900 ओलिंपिक की 200 मीटर और 200 मीटर हर्डल में सिल्वर पदक जीतकर भारत के लिए ओलिंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने थे। मिल्खा सिंह ने 60 के दशक में, 1958 एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर में भारत के लिए खिताब जीते थे। 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने 400 मीटर स्प्रिंट स्पर्धा जीती, फ्लाइंग सिख नाम से मशहूर 400 मीटर में चौथे स्थान पर थे और 1960 के रोम ओलंपिक में कांस्य से बस थोड़े से चूक गए थे। हाल के वर्षों में सरस्वती साहा, रचितिता मिस्त्री और अनिल कुमार ने एशियाई स्तर पर स्प्रिंट आयोजनों में अच्छा प्रदर्शन किया है। श्रीराम सिंह, शिवथ सिंह, गोपाल सैनी और बहादुर प्रसाद ने मध्य और लंबी दूरी की एशियाई ट्रैक और फील्ड मीटिंग की दौड़ में अपना दबदबा बनाये रखा। लम्बी कूद के खिलाडी टी सी योनाहन ने 1970 के तेहरान एशियाई खेलों की लम्बी कूद प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। फील्ड प्रतियोगिताओं में प्रवीण कुमार, शक्ति सिंह, बहादुर सिंह, सीमा अंटील, नीलम जे सिंह, कृष्ण पुनिया और हरवंत कौर ने एशियन एथलेटिक मीट्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। पीटी ऊषा 80 के दशक में भारतीय एथलेटिक्स की 'गोल्डन गर्ल' बन गई। "पायोली एक्सप्रेस" नाम से प्रसिद्ध पी टी उषा ने एशियाई स्तर पर एथलेटिक सम्मेलनों मे अपनी दौड़ से देश के गौरव की तरफ कदम बढ़ाये। पी टी उषा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लॉस एंजिल्स में 1984 के ओलंपिक में आया था जब वह 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रही और सेकंड के सौवें भाग से कांस्य पदक जीतते जीतते रह गयी। 80 के दशक में, शाइनी विल्सन और एम डी वाल्साम्मा ने एशियाई ट्रैक और फील्ड स्पर्धाओं में अपना लोहा मनवाया। अंजू बॉबी जॉर्ज 2003 में लंबी कूद की विश्व एथलेटिक चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। # 7 मुक्केबाजी

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मुक्केबाजी की बात करे भारतीय मुक्केबाज एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में एक अलग ही रुतबा रखते है। विजेंदर सिंह एक बेहतरीन मुक्केबाज़ के तौर पर उभरे जब उन्होंने 2008 बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। फिर 2009 में एआईबीए की विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पदक जीते हैं। वहीं विकास कृष्णन यादव ने भी 2011 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। एम सी मैरीकोम भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला मुक्केबाज रहीं है। ओलंपिक कांस्य पदक विजेता (2012 लंदन ओलंपिक) और पांच बार की विश्व चैंपियन (2001, 2005, 2006, 2008, 2010), मेरी कॉम अपनी पीढ़ी की एक प्रभावशाली मुक्केबाज़ रहीं हैं। अन्य मुक्केबाजों में, एल सरिता देवी, सरजुबाला देवी और कविता चहल ने अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी मुकाबले में पदक जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया है। पिछले दशक में हमारे देश ने अखिल कुमार, सोम बहादुर पुन, नानाओ सिंह, सुरनजय सिंह, दिनेश कुमार, जितेंदर कुमार, मनोज कुमार, जय भगवान, वी जॉनसन और परमजीत सामोटा के रूप ऐसे कुशल मुक्केबाज़ों पेश किया है, जिन्होंने एशियाई और राष्ट्रमण्डल खेलों में देश का गर्व से प्रतिनिधित्व करते हुए पदक जीतें है। # 8 कुश्ती

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कुश्ती लंबे समय से भारतीय इतिहास का एक हिस्सा रही है। कुश्ती की पहलवानी शैली और प्रशिक्षण की अखाड़ा प्रणाली भारतीय कुश्ती का पर्याय रही है। गामा पहलवान जैसी प्रसिद्ध पहलवानों को 'रुस्तमे ज़माना ' जैसे खिताबों मिले। साथ ही, चंदगी राम, हरिश्चंद्र बिरजदार और मारुति माने जैसे प्रतिष्ठित पहलवानों ने प्रतिष्ठित हिंद केसरी खिताब जीता। हम में से कई इस बात से अनजान हैं कि खाशाबा झादव ने 1952 हेलसिंकी में हुए ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया था। 2010 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर सुशील कुमार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक कुशल पहलवान के रूप में उभरे हैं। कुमार ने ओलंपिक में लगातार पदक जीतकर (2008 में कांस्य और 2012 में रजत) भारतीय कुश्ती इतिहास में अपना नाम बनाया है। 2012 में लंदन ओलंपिक कांस्य पदक विजेता योगेश्वर दत्त ग्रीको-रोमन श्रेणी में अग्रणी पहलवानों में से एक हैं। इस बीच रियासत कुमार, बजरंग कुमार, अमित कुमार और संदीप तुलसी यादव जैसे अनुभवी पहलवानों ने फिला कुश्ती चैंपियनशिप के हाल के संस्करणों में पदक जीते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाएं भी पुरषों से कम नहीं रही हैं। अलका तोमर, गीताका झाकर, बबिता कुमारी और गीता फाोगट ने एशियाई और राष्ट्रमंडल में पदकों की झोली भर देश को गौरवान्वित किया है। # 9 भारोत्तोलन

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भारतीय इतिहास में महान भारोत्तोलको का उत्त्पादक रहा है पहाड़ी राज्य मणिपुर, लेकिन कोई भी कुंजुरानी देवी की क्षमता से मेल नहीं खा सका है। कुंजरानी 90 के दशक के दौरान प्रभावशाली भारोत्तोलक थी और विश्व और एशियाई भारोत्तोलन चैंपियनशिप में पदक जीतकर देश का गौरव लौटाती रहीं। एक कदम और आगे बढ़ते हुए कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। सानमचा चानू थिंगबजान, नंगबाम सोनिया चानू और मोनिका देवी, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धाओं में मंच पर अपनी जगह बनायी ऐसे उल्लेखनीय भारोत्तोलकों का निर्माण करने की मणिपुर की एक पुरानी परंपरा रही है। पुरुष वर्ग में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर कातुलू रवि कुमार हाल के वर्षों में भारत की उज्ज्वल उम्मीद के रूप में उभरे हैं। वहीं सुखेन डे और सतीश शिवलिंगम ने हाल ही में संपन्न ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर शानदार भविष्य की उम्मीद दिखाई है। # 10 तीरंदाजी

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शूटिंग की ही तरह भारत ने विश्वस्तरीय धनुर्धारियों को भी सफलता अर्जित करते देखा है, जिन्होंने लक्ष्य भेद देश का समय समय पे गौरव बढ़ने का कार्य किया है। 90 के दशक में लिम्बा राम भारत के अनुभवी ओलंपियन थे, जिन्होंने एशियाई तीरंदाजी चैंपियंस में पदक जीते थे। जयंत तालुकदार, राहुल बनर्जी, तरुणदीप राय और मंगल सिंह चंपिया ने भी अंतराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीत कर भारत को पिछले डेढ़ दशक से गौरवान्वित किया है। हाल के वर्षों में अभिषेक वर्मा, संदीप कुमार और रजत चौहान ने बुसान के 2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। रजत चौहान 2015 के विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में हमारे देश के लिए पहले व्यक्तिगत रजत पदक विजेता बने। महिलाओं के वर्ग में, दीपिका कुमारी को हमारे राष्ट्र की अब तक की बेहतरीन धनुर्धर के तौर पर देखा किया जाता है। कुमारी एक पूर्व जूनियर विश्व चैंपियन रही हैं और आईटीएएफ विश्व कप (2011, 2012, 2013) में रजत पदक भी जीती हैं। कुमारी ने डोला बनर्जी, बोम्बेला देवी लैशराम और चेक्रोवोलु स्वुरो जैसी अनुभवी तीरंदाजों के साथ मिलकर काम किया और विश्व स्तर पर एक मजबूत भारतीय महिला टीम का निर्माण किया है। 2015 की विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में रिमिल बुरीयुली, दीपिका कुमारी और लक्ष्मीरीनी माजी की भारतीय टीम ने रिकर्व स्पर्धा (टीम) में रजत पदक जीता। इन खेलो के अलावा भी ऐसे कई खेल हैं जहां भारतीय खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। मसलन कैरम विश्व विजेता ए मारिया इरुडायम (1991 और 1995) भी हैं पर दुर्भाय से उन्हें वो पहचान नहीं मिली जो अपने खेल में महारथी रहे खिलाड़ी को मिलनी चाहिए। लेखक: गौतम लालोट्रा अनुवादक: राहुल पांडे

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