ओलंपिक विश्व की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता जहां समूचा विश्व अनेक प्रकार के खेलों में अपने देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को भेजता है। ओलंपिक में व्यक्तिगत खिलाड़ी समेत अनेक खेलों की टीमें भी हिस्सा लेती हैं और देश के लिए पदक जीतने का सपना सजाती हुई दुनिया के सबसे बड़े खेल महोत्सव में कदम रखती हैं। जाहिर है जब पूरा विश्व इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस समय 130 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत से भी अनेक पदक जीतने की उम्मीद की जाती है। लेकिन यह अभी तक भारत का दुर्भाग्य ही रहा है कि यह देश सिर्फ एक टीम खेल को छोड़कर कभी भी स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर सका है। वैसे तो भारत की तरफ से ओलंपिक में व्यक्तिगत रूप में अभिनव बिंद्रा ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल किया था। लेकिन क्या आपको पता है कि टीम खेल में हॉकी ऐसा खेल था जिसने लगातार भारत की झोली में लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक डाले थे।
जब ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण का दूसरा नाम बना हॉकी
साल 1928 इस समय भारत ने पूरे विश्व में हॉकी के मैदान में अपनी धाक दिखाई। इस समय विश्व हॉकी में भारत को सिर्फ हॉकी में हिस्सा लेने वाले देश के रूप में देखा जाता था। लेकिन 26 मई 1928 वो दिन जब भारतीय हॉकी ने विश्व में जीत का ऐसा डंका बजाया जिसकी इबारत ओलंपिक के पहले स्वर्ण पदक से लिखी गई। हालांकि पहली बार 1920 में भारत ने ओलंपिक में अपनी टीम भेजी थी लेकिन 1928 ओलंपिक की टीम कई मायनो में खास थी। वैसे तो 1908 लंदन ओलंपिक में हॉकी को पहली बार जगह मिली थी लेकिन यह खेल 1885 से ही भारत में अपने पैर पसार चुका था। इसी वर्ष कलकत्ता (मौजूदा समय में कोलकाता) के एक क्लब ने पहली बार हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन किया था। इसके बाद बॉम्बे ( मौजूदा समय में मुंबई) ने 1886 में आगा खान कप को आयोजित किया।
देश में पहली बार औपचारिक स्थापना 7 सितंबर 1925 को हुई जब आईएचएफ ने ग्वालियर में एक मीटिंग के दौरान कर्नल ब्रुस टर्नबुल को अपना अध्यक्ष और एनएस अंसारी को सचिव के रूप में चुना। 10 मार्च 1928 वह दिन जब 13 सदस्यीय भारतीय हॉकी टीम (तीन खिलाड़ियों लंदन में टीम के साथ जुड़े थे) ने मुंबई से लंदन के लिए उड़ान भरी। इस समय आईएचएफ के दो अधिकारी और एक पत्रकार टीम के साथ इस एतिहासिक मौके का गवाह बनने के लिए मौजूद थे। भारतीय टीम के विमान ने 10 मार्च 1928 को लंदन के टिल्बरी डोक्स पर लैंड किया और यहां से एम्सटर्डम के लिए टीम रवाना हुई। इस समय भारत अंग्रेजी हुकूमत के अधीन आता था और 1908 और 1920 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली इंग्लिश टीम ने अपनी टीम ना भेजते हुए भारतीय टीम को भेजने का निर्णय लिया। 17 मई 1928 को भारतीय टीम ने ओलंपिक में अपना पहला मुकाबला खेला जहां ऑस्ट्रिया के खिलाफ 6-0 से टीम ने जीत हासिल की। इसके बाद भारतीय टीम ने टूर्नामेंट में रूकने का बिल्कुल नाम नहीं लिया और बेल्जियम को 9-0, डेनमार्क को 5-0 और स्विजरलैंड को सेमीफाइनल में 6-0 से मात देकर फाइनल में कदम रखा जहां स्वर्ण पदक के लिए उन्हें हॉलैंड से भिड़ना था।
जब भारत ने रचा इतिहास
26 मई 1928 शनिवार को ओलंपिक का फाइनल मुकाबला था। मैदान में आमने-सामने भारत और हॉलैंड की टीमें। अब तक के सभी रिकार्ड को तोड़ते हुए तकरीबन 24000 लोगों से मैदान भर चुका था। जयपाल सिंह सेमीफाइनल में भारत की कप्तानी कर इंग्लैंड के लिए वापस रवाना हो चुके थे। उप-कप्तान एरिक पिनीजर ने भारत की कप्तानी की जिम्मेदारी संभाली। भारत के सामने हॉलैंड की टीम और आखिरकार नतीजा वह रहा जिसने पूरी दुनिया में भारतीय हॉकी की धमक मचा कर रख दी थी। भारतीय टीम ने हॉलैंड को फाइनल में 3-0 के अंतर से रौंद दिया था और भारत को पहली बार हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाया था। यह वह समय था जब पूरी दुनिया जान चुकी थी कि भारत के रूप में दुनिया को नया विजेता मिल चुका है। 29 मई को ओलंपिक स्टेडियम में पुरस्कार वितरण समारोह रखा गया जहां एरिक पिनीजर के नेतृत्व वाली भारतीय टीम को स्वर्ण पदक से नवाजा गया। यह पहला मौका था जब किसी पहली एशियन टीम ने ओलंपिक के इतिहास में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। इस ओलंपिक से भारतीय टीम बिना कोई मैच हारे स्वर्ण पदक जीतकर लौटी थी। भारत ने 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक में 5 मुकाबले खेले थे जिसमें से पांचों में टीम ने जीत हासिल की थी। भारत ने 1928 ओलंपिक में 29 गोल दागे थे वही टीम की खाए गए गोलों की संख्या शून्य थी।
1928 ओलंपिक में भारतीय टीम का सफर
लीग मुकाबले- भारत ने ऑस्ट्रिया को 6-0 से रौंदा ( ध्यानचंद 4, शौकत अली 1, मॉरिस गेटेले 1)
भारत ने बेल्जियम को 9-0 से दी मात ( फिरोज खान 5, फ्रेड्रेरिक सीमैन 2, जोर्ज मार्थिन्स 1, ध्यानचंद 1)
भारत ने डेनमार्क को 5-0 से हराया ( ध्यानचंद-4 फ्रेड्रेरिक सीमैन 1)