पैरा एथलीट अशोक मुन्ने ने मोटर स्पोर्ट्स में किया आश्चर्यजनक प्रदर्शन

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मजबूत हौसले और मन में कुछ करने की चाह हो, तो असम्भव चीजें भी संभव हो जाती है। यही कर दिखाया है नागपुर के दिव्यांग बाइक राइडर अशोक रामलाल मुन्ने ने। उनका जीवन चक्र 2008 में हुए एक ट्रेन हादसे के बाद बदलता है। इसमें उन्हें अपने दाएं पांव का बलिदान देना पड़ा। घुटने से नीचे तक अशोक का पैर कट गया। मुश्किल घड़ी में लोग उन्हें हीन भावना से देखने लगे और ऐसा सोचने लगे कि अब ये कुछ करने लायक नहीं रहा।

बचपन से ही एडवेंचर स्पोर्ट्स के शौक़ीन मुन्ने ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत कर कुछ अलग करने की ठानी। उन्होंने मैराथन में भाग लेना शुरू किया, इसके बाद मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट भी हासिल किया। यहीं नहीं रुकते हुए योग के सभी आसान सीखे और सबको बता दिया कि हिम्मत और जोश के मिश्रण से क्या प्राप्त किया जा सकता है।

इन सबके बाद अशोक मुन्ने ने स्विमिंग में हाथ आजमाए और आज वे बिना रुके 5 किलोमीटर तक तैर सकते हैं। यहां से इस व्यक्ति ने अंडर वॉटर होने वाले स्कूवा डाइविंग, पैरा ग्लाइडिंग आदि करते हुए 2012 में मिरापिक क्लाइम्ब कर सबको दांतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर कर दिया। यहां चढ़ने वाले वे पहले दिव्यांग एथलीट बने। इसी साल वे नॉर्थवे से साढ़े आठ हजार की उंचाई पर एवरेस्ट भी चढ़ने में कामयाब रहे और उन लोगों को गलत साबित कर दिया, जो उन्हें दुर्घटना में पैर गंवाने के बाद किसी काम का नहीं मानते थे। लद्दाख में भी उन्होंने राइडिंग में भाग लिया और 'हम किसी से कम नहीं' वाली कहावत को चरितार्थ किया।

हाल ही में अशोक ने सबसे खतरनाक मानी जाने वाली हिमाचल प्रदेश की बाइक रेस 'रैड दा हिमालया' में भाग लेकर सबको चकित कर दिया, इस बारे में उन्होंने स्पोर्ट्सकीड़ा से बातचीत की, आइए आपको भी इससे रूबरू कराते हैं:

रैड दा हिमालया में जाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

राजस्थान के जैसलमेर में रेतीले टीलों में एक बाजा (BAJA) नामक प्रतियोगिता होती है और उसका एक सदस्य मुझे मिला था। वहां से मुझे रैड द हिमालया के बारे में पता चला। उन्होंने मुझे बताया कि मैं इसमें भाग लूँगा तो बहुत अच्छा लगेगा और यह एक नया अनुभव भी होगा। इसलिए मैंने इसमें हिस्सा लेने का निर्णय लिया।

भारतीय मोटर स्पोर्ट्स क्लब फेडरेशन से लाइसेंस मिलने में आपको क्या समस्या आई?

उन्होंने (FMSCI) मुझे साफ़ मना कर दिया था कि पहाड़ पर बाइक कभी चलाई नहीं है तो कैसे मोड़ पर चलाएगा। बाइक रोकने के लिए क्या करेगा। रैड के डायरेक्टर विजय पनमाल सर ने उनसे कहा कि यह एवरेस्ट और मिरापिक पर चढ़ा है, इसके अलावा कई स्पोर्ट्स में भाग लेता है, तो यहां बाइक क्यों नहीं चला सकता। उन्होंने मेरे लिए पूरी तरह से स्टैंड लिया और अड़े रहे। अंत में शारीरिक मजबूती वाले कुछ टेस्ट लेकर मुझे लाइसेंस दिया गया।

रैली के दौरान आपका सबसे मुश्किल पल कौन सा रहा?

यह रेस के तीसरे दिन की बात है जब मैंने हवा का दबाव कम करके के लिए कुछ समय के लिए हेलमेट निकालकर हाथ में लिया। यह मेरे हाथ से छूटकर 60 से 70 फीट गहरी खाई में से नदी में गिर गया। बिना हेलमेट के रेस में हिस्सा लेने का नियम नहीं है। मैं पहाड़ से फिसलकर नदी में गया और आने का रास्ता नहीं होने के बाद भी जैसे-तैसे करके वापस आया। इसके बाद मुझे वहां सभी का सपोर्ट मिला। हालांकि मेरा समय बर्बाद हो चूका था लेकिन मैंने इसे फिर शुरू किया और उस दिन रेस पूरी होने के बाद हेलमेट उतारा, तब उसमें पानी जमकर बर्फ बन चूका था। मैंने आराम करके अगले दिन फिर शुरू किया।

रैली के दौरान आपका सबसे यादगार पल?

मैंने इस तरह के स्पोर्ट्स में पहली बार भाग लिया था और मैंने यही सोचा था कि कर पाऊंगा तो ठीक है, नहीं कर पाया तो बाहर हो जाऊंगा लेकिन मैं गया। बाइक को स्लिप होने से बचाना, खतरनाक मोड़ पर निकालना और कई प्रकार की तकनीकें मैंने रैली के दौरान ही सीखी और ये सभी चीजें मेरे लिए यादगार है।

देश में अन्य कई प्रकार के मोटर स्पोर्ट्स इवेंट्स में भाग लेने की कोई योजना?

हाँ, अगला लक्ष्य जैसलमेर के रेगिस्तान में होने वाली बाजा (BAJA) प्रतियोगिता में भाग लेना मेरा लक्ष्य है। इसके बाद आगे के बारे में कुछ सोचूंगा। फिलहाल मैं उसमें भाग लेना चाहूंगा।

Edited by Naveen Sharma