Asian Games 2018 : स्वर्णिम दांव लगाने को तैयार भारतीय पहलवान

एशियाई खेलों में हमेशा से भारतीय पहलवानों का दबदबा रहा है। पदक के लिहाज से इसे शीर्ष के कामयाब खेलों में शामिल किया जा सकता है। 2020 ओलंपिक से पहले आयोजित इस सेमी फाइनल में भारतीय पहलवान जोर-आजमाइश के लिए पूरी तरह तैयार हैं। भारत अब तक इस प्रतियोगिता में कुल 56 पदक जीत चुका है। इसमें 9 सोना, 14 रजत और 33 कांसा शामिल हैं। इसी साल अप्रैल में गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय पहलवानों ने 12 पदक जीते हैं और उनके हौसले बुलंद हैं। कुश्ती में पदक जीतने के मामले में भारत यहां नंबर एक रहा था। हालांकि यह हमें और भारतीय पहलवानों को अच्छी तरह पता है कि एशियाई खेलों में मुकाबला कहीं ज्यादा कठिन है। यहां गोल्ड कोस्ट के प्रदर्शन को दोहरा पाना भारत के लिए मुश्किल है। भारत के लिए पिछले एशियाई खेलों में योगेश्वर दत्त ने सोने का तमगा हासिल किया था। वे इस बार वहां नहीं जा रहे हैं लेकिन उनके शिष्य बजरंग पूनिया से देश को शीर्ष पदक की उम्मीद है। पिछले एशियाई खेलों में बजरंग ने रजत पदक जीता था वहीं नरसिंह यादव को कांस्य से संतोष करना पड़ा था। महिला वर्ग में विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ कांस्य पदक मिला था। 65 किलो भार वर्ग में बजरंग भारत की अगुआई करेंगे तो विनेश 50 किलो वर्ग में उतरेंगी। हालांकि ऐसे ही भारत के हर पहलवान से बेहतर की उम्मीद होगी। आज उन्हीं में से कुछ की चर्चा करते हैं। सुशील कुमार दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील भारत की ओर से एशियाई खेलों में स्वर्ण के प्रबल दावेदार हैं। उन्होंने गोल्ड कोस्ट में 74 किलो ग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है। वह जॉर्जिया में ट्रेनिंग कर रहे हैं और इंडोनेशिया में उनका लक्ष्य देश को पदक दिलाने के साथ एशियाई खेलों में अपने खराब रिकॉर्ड को सुधारना भी होगा। उनके नाम अब तक सिर्फ 2006 एशियाई खेलों का कांस्य पदक ही है। सुशील बीच में कुछ साल मैट से बाहर रहे लेकिन कॉमनवेल्थ में अपने शानदार प्रदर्शन से उन्होंने जता दिया कि अब भी उनमें काफी दम है। बजरंग पूनिया 2013 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य, 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत, 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण के साथ यासर दोगु इंटरनेशनल में बजरंग के शानदार कुश्ती ने भारतीय प्रशंसको में एक उम्मीद जगा दी है। योगेश्वर के इस शिष्य ने कई मौके पर खुद को साबित किया है। वे एशियाई खेलों में पदक के प्रबल दावेदार तो हैं ही लेकिन देश उनसे सिर्फ स्वर्ण की उम्मीद करेगा। विनेश फोगाट विनेश महिला वर्ग में एकमात्र ऐसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता है। वह इंडियोन में हुए एशियाई खेलों में जीते गए कांस्य पदक के रंग को बदलने के लिए बेताब हैं। एशियन चैंपियनशिप में विनेश के नाम पांच पदक दर्ज हैं वहीं उन्होेने दो कॉमनवेल्थ में भी पदक जीते हैं। साक्षी मलिक रियो ओलंपिक में पदक जीतने वाली साक्षी मलिक भारत के लिए सबसे बड़ी पदक उम्मीद हैं। रियो ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। एशियाई खेलों के 62 किग्रा वर्ग में साक्षी चुनौती पेश करेंगी। कॉमनवेल्थ में कांस्य पदक जीतने वाली इस पहलवान को अब भी एशियाई खेलों में पहले पदक की तलाश है। हालांकि हाल के दिनों में उन्होंने उस स्तर का प्रदर्शन नहीं किया है जिसके भरोसे वह मिनी ओलंपिक में दावेदारी पेश कर सकें लेकिन साक्षी को उम्मीद है कि वह इंडोनेशिया में पदक जीतेगी। पिंकी, पूजा और दिव्या से भी पदक की उम्मीद यासर दोगु इंटरनेशनल में 55 किग्रा वर्ग में गोल्ड जीतने वाली पिंकी ने भी अपने हाल के खेलों से प्रभावित किया है। वहीं पूजा ढांडा, दिव्या काकरान और किरण विश्नोई से भी देश को पदक की उम्मीद है। कजाख्स्तान, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से मिलेगी चुनौती भारतीय पुरुष टीम में 125 किलो ग्राम वर्ग में सुमित मलिक भी चुनौती पेश करने को तैयार हैं। उनके अलावा संदीप तोमर 57 किलो ग्राम वर्ग, पवन कुमार 86 किलो ग्राम वर्ग और मौसम खत्री 97 किलो ग्राम वर्ग में देश के लिए पदक जीतने की कोशिश करेंगे। हालांकि इन्हें कुछ अन्य एशियाई देशों के पहलवानों से पार पाना होगा। एशियाई खेलों में जापान, ईरान और दक्षिण कोरिया हमेशा से कुश्ती में अपना जलाव बिखेरते रहे हैं। ज्यादातर मौके पर इन्हीं देशों के पास पदकों की संख्या ज्यादा होती है। इनसे कुछ बच जाता है तो मध्य एशिायई देश उन पर कब्जा करने के लिए जोर-आजमाइश करते हैं। इनमें कजाख्स्तान, मंगोलिया और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। अब तक के इतिहास को देखें तो कुश्ती में पदक जीतने के मामले में यही देश दहाई के आंकड़े में पहुंचते हैं। भारत के दहाई अंक में पहुंचने की चुनौती भारत अब तक एशियाई खेलों के कुश्ती स्पर्धा में नौ स्वर्ण पदक जीत चुका है। 2018 खेलों में उसके सामने अपने पदक की संख्या को दहाई अंक में पहुंचाने की चुनौती है। कुश्ती के लिहाज से 1962 का एशियाई खेल सबसे सफल रहा था। तब भारत कुल पदक के मामले में तीसरे स्थान पर रहा था। उस साल भारत के खाते में कुल 10 स्वर्ण पदक आए थे। कुश्ती दल के हाल के प्रदर्शन से देश के प्रशंसक इसी उम्मीद में बैठे हैं कि भारतीय पहलवान को ऐसा दांव लगाएंगे कि बाकि सभी देश चित हो जाएं और उनके खाते में सोना आ जाए।

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