विश्व कुश्ती चैंपियनशिप 2018 का हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में समापन हो गया। भारतीय दल अपने प्रदर्शन से कई वर्षों बाद आश्वस्त होगा। 2015 के बाद से आए पदकों के अप्रत्याशित सूखे को न सिर्फ भारतीय पहलवानों ने शान से खत्म किया, बल्कि आने वाले सत्र के लिए काफी उम्मीदें भी जगाई। अगर कुछ जगहों पर नजदीकी अंतर से न चूकते, तो शायद यह भारतीय दल इस वर्ष इतिहास रच सकता था।
सुमित मालिक और ऋतु फोगाट के कांस्य से चूकने के बावजूद बजरंग पूनिया और पूजा ढांडा के अप्रत्याशित प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि भारत आने वाले खेलों के महाकुम्भ, टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए पूरी तरह तैयार है, और इसके लिए 2019 में वे किसी भी कसौटी पर खरे उतरने के लिए तत्पर हैं। इस दल की तैयारी से लगता है कि शायद टोक्यो में वो भी मिले जो कोई कल्पना भी कर न सके।
बजरंग पूनिया : स्वर्ण से चूकने के बावजूद रचा इतिहास
योगेश्वर दत्त के प्रसिद्ध शिष्य और कुश्ती के क्षेत्र के उभरते सितारे बजरंग पूनिया ने इस चैंपियनशिप में एक बार फिर इतिहास रचा, जब उन्होने 5 वर्ष के बाद भारत को एक रजत पदक दिलाने में सफलता हासिल की। फ़ाइनल में इन्हे युवा जापानी पहलवान तातुकों ओटोगुरो से 9-16 के नजदीकी अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
परंतु फ़ाइनल की राह इतनी भी सरल न थी। बजरंग पूनिया को क्यूबा के पहलवान और पिछले वर्ष के कांस्य पदाकधारी, अलेजान्द्रो वल्डेस के विरुद्ध काफी पसीना बहाना पड़ा, आखिर इन्होंने बजरंग की 4-1 की मामूली बढ़त को 4-3 तक जो सिमटाया था। ये बजरंग की सूझबूझ का ही कमाल था जो इन्हे वो अंतिम पॉइंट न नसीब हुआ, और 3 साल बाद भारत का विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक का सूखा खत्म हुआ। हालांकि ये सूझबूझ फ़ाइनल में काम नहीं आई, और बजरंग पूनिया सुशील कुमार के बाद भारत के दूसरे विश्व चैम्पियन बनने से चूक गए।
परंतु इस हार के बावजूद श्री बजरंग पूनिया ने इतिहास रचा, क्योंकि वे केवल चौथे ऐसे भारतीय रहे हैं, जिनहोने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के फ़ाइनल में कदम रखा है। इनसे पहले 1967 में बिशंभर सिंह ने, 2010 में सुशील कुमार ने और 2013 में अमित कुमार दहिया ने फ़ाइनल में जगह बनाई थी। बजरंग ने हाल ही में पिछले वर्ष 2017 अंडर 23 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक भी जीता और हम आशा करते हैं कि 2019 में टोक्यो ओलंपिक के लिए होने वाले क्वालिफायर में इन्हे ज़्यादा पसीना न बहाना पड़े, जिसके लिए इनके वर्तमान कोच और जार्जिया के विख्यात पहलवान, श्री शकों बेंतिनिडिस को काफी अथक परिश्रम करना पड़ेगा!
पूजा ढांडा: एशियाड के गम को भुला रचा नया इतिहास
शायद अगर किसी को एशियाई खेलों में अपने प्रदर्शन से बिलकुल भी संतुष्टि नहीं हुई होगी तो वो है पूजा ढांडा। प्रथम यूथ ओलंपिक 2010 में रजत पदक जीतने वाली पूजा को एशियाई खेलों के सेमीफ़ाइनल में हार का सामना करना पड़ा। उनके ऊपर दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब कांस्य पदक मुक़ाबले में भी उन्हे अपने जापानी प्रतिद्वंदी, कत्सुकी सकागामी से 1-6 से शिकस्त झेलनी पड़ी।
पर इन कड़वी यादों को पीछे छोड़ अपनी 'धाकड़' छोरी आई विश्व चैंपियनशिप के अखाड़े में। सबसे पहले उन्होने नाइजीरिया की पहलवान और वर्तमान राष्ट्रमंडल चैम्पियन, ओडुनायों आदेकुओरोए को चौंकाते हुये क्वार्टरफ़ाइनल में कदम रखा। परंतु इस बार भी उन्हे हार का सामना करना पड़ा, जब चीन की पहलवान रोंग निंगनिंग ने उन्हे पटक कर स्वर्ण की होड से बाहर कर दिया।
हालांकि रोंग के फ़ाइनल में पहुँचने से पूजा के लिए कांस्य पदक जीतने का द्वार खुल गया, और इस बार उन्होने कोई चूक नहीं की। पहले उन्होने अज़ेर्बाइजान की आलयोना कोल्स्निक को 8-3 से पटका और फिर नॉर्वे की पहलवान ग्रेस बुल्लेन को 10-7 से हरा कर इतिहास रच दिया। यह कांस्य पदक जीतने वाली पूजा चौथी महिला भारतीय पहलवान है, क्योंकि इनसे पहले 2006 में अल्का तोमर ने और 2012 में गीता और बबीता फोगाट ने कांस्य पदक जीता था। अब इस 'धाकड़' छोरी से भारत की उम्मीदें बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं!
नाज़ुक चूक : अभी बहुत कुछ हासिल करना है
हाल में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित पहलवान सुमित मलिक के लिए यह सत्र काफी उठापटक से भरा रहा। इस चैंपियनशिप में उन्हे एशियाड जैसी ही हार मिली, जब वह इतिहास रचते रचते रह गए।.
सुमित मलिक ने सभी को हैरत में डालते हुये सेमीफ़ाइनल का सफर तय किया। यह इसीलिए हैरानी वाली बात है क्योंकि सुपर हैवीवेट स्पर्धा [125 किलो] में आज तक कोई भारतीय पहलवान विश्व चैंपियनशिप के पहले राउंड से आगे नहीं बढ़ा, अंतिम चार में पहुँचना तो बहुत दूर की बात है।
पर सेमीफ़ाइनल में इस रोहतक के करोर गाँव से निकले युवा पहलवान के अनुभव की कमी साफ दिखी, जब चीनी पहलवान डेंग शिवेई ने इन्हे 5-0 से धो डाला। इसके बावजूद सुमित पदक की होड़ में बने रहे, क्योंकि वे सेमीफ़ाइनल में हिस्सा ले चुके थे। पर अनुभव की कमी यहाँ पर और भारी पड़ी, और इन्हे अमेरिका के पहलवान निक ग्वीयज़्डौस्की ने 2-0 की शुरुआती बढ़त के बावजूद 7-2 से हरा दिया, जिसके कारण इन्हे महज 5वें स्थान से संतोष करना पड़ा।
एक और नजदीकी चूक अप्रत्याशित रूप से आई प्रसिद्ध फोगाट वंश की सबसे युवा पहलवान, ऋतु फोगाट के हाथों। पिछले वर्ष अंडर 23 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाले ऋतु ने अपनी चचेरी बहन और एशियाड चैम्पियन विनेश फोगाट की जगह ली थी 50 किलो कैटेगरी में। इस कैटेगरी में सीनियर स्तर पर अपना पहला विश्व चैंपियनशिप खेलने वाली ऋतु ने उम्मीदों के इतर क्वार्टर फ़ाइनल में जगह बनाई।
जापानी प्रतिद्वंदी यूई सीसाकी से हारने के बावजूद कांस्य पदक की होड़ में वे बनी रही, और उन्होने कांस्य पदक स्पर्धा में कदम, पर अंत में उन्हे यूक्रेन की पहलवान ओकसाना लिवाच के हाथों 5-10 की हार का सामना करना पड़ा। पर इससे ऋतु की योग्यता बिलकुल भी नहीं छिप सकती, और यदि इन्हे विनेश से भिड़ना पड़ा, तो उन्हे अपने टोक्यो 2020 की उम्मीदों को ज्वलंत बनाए रखने के लिए टॉप फॉर्म में रहना होगा। इसी तरह रियो ओलंपिक में अप्रत्याशित कांस्य जीतकर सुर्खियों में आई साक्षी मलिक को भी ब्रॉन्ज के मुक़ाबले में हंगरी की मरियाना सस्तीन से 2-3 की हार का सामना पड़ा
क्या भारत टोक्यो 2020 में जलवा दिखा पाएगी?
विश्व चैंपियनशिप के प्रदर्शन से देखके तो इतना साफ है कि भारत टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए तैयार लग रहा है। बस उन्हे मैच के अंतिम सेकंड में आरामतलबी से बचना होगा, जिससे पासा भी पलट सकता है, जैसे सुमित मलिक और ऋतु फोगाट को भुगतना पड़ा। अगर इसे पार कर लिया, तो भारत को टोक्यो में इतिहास रचने से कोई नहीं रोक सकता।