आज से 20 साल पहले लॉर्ड्स में भारत की तरफ से दो नए खिलाड़ियों ने अपना पहला टेस्ट खेला था। उस मैच में दोनों के चयन के समय किसी ने सोचा नहीं होगा कि दोनों भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे महान खिलाड़ियों में शुमार हो जाएंगे। अभी तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम यहाँ पर किसकी बात कर रहे हैं। यहाँ बात हो रही है भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तानों में एक सौरव गांगुली और कई सालों तक टीम इंडिया की 'दीवार' कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ की। दोनों ने टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत एक साथ की और आज संन्यास लेने के कई साल बाद भी क्रिकेट में अपना योगदान अलग-अलग तरह से दे रहे हैं। यहाँ हम उन 10 यादगार लम्हों के बारे में बात करेंगे जिसमें ये दोनों क्रिकेटर शामिल थे और उन्हें एक क्रिकेट प्रेमी कई सालों तक भुला नहीं पाएगा। #1 पहला लॉर्ड्स टेस्ट 1996 के विश्व कप के बाद भारतीय टीम तीन टेस्ट मैचों की सीरीज के लिए जून में इंग्लैंड गई। उस टीम में कई अनुभवी खिलाड़ियों को शामिल किया गया था, वहीँ नए खिलाड़ियों में बंगाल के सौरव गांगुली और कर्नाटक के राहुल द्रविड़ और वेंकटेश प्रसाद को शामिल किया गया था। पहला टेस्ट हारने के बाद भारत को दो झटके लगे। नवजोत सिंह सिद्धू टीम को छोड़ कर वापस आ गए और संजय मांजरेकर चोटिल होने के कारण दूसरे टेस्ट के लिए उपलब्ध नहीं थे। इसी कारण से दो नए खिलाड़ियों को अपना पहला मैच खेलने का मौका मिल गया। इंग्लैंड के पहले पारी के 344 के जवाब में भारतीय टीम को दो शुरूआती झटके लगे और तब सौरव गांगुली खेलने आये। उन्होंने इंग्लैंड के गेंदबाजों का बखूबी सामना किया। स्कोर जब 202/5 हो गया तब नए बल्लेबाज राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली का साथ देने आये। गांगुली ने उस पारी में 131 रन बनाये और टीम को बढ़त दिलाने अहम योगदान दिया। राहुल द्रविड़ अभाग्यशाली रहे कि अपना शतक नहीं बना सके और 95 रनों पर आउट हुए। लेकिन इस मैच ने दो महान क्रिकेटरों के क्रिकेट जीवन का पहला अध्याय लिख दिया था। #2 1999 विश्व कप में श्रीलंका के खिलाफ जबरदस्त साझेदारी 1999 के विश्व कप में भारत अपने पहले दो मैच हार चुका था और अगले राउंड में जाने के लिए बाकी तीनों लीग मैच जीतने जरुरी थे। श्रीलंका के खिलाफ टांटन में भारत पहले बल्लेबाजी करने उतरा और सदगोपन रमेश के रूप में पहला विकेट जल्दी गिर गया। यहाँ ओपनर गांगुली का साथ देने आये राहुल द्रविड़ और उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। दोनों ने दूसरे विकेट के लिए 318 रन जोड़ दिए और श्रीलंका को मैच से बाहर कर दिया। गांगुली ने 183 और द्रविड़ ने 145 रनों की पारी खेली और भारत ने 373/6 का विशाल स्कोर खड़ा किया। जवाब में श्रीलंका के पास इसका कोई जवाब नहीं था और वो 157 रनों से मैच हार गए। #3 2001 ईडन गार्डन्स की एतिहासिक जीत मैच फिक्सिंग युग के बाद सौरव गांगुली के ऊपर कप्तानी की जिम्मेदारी आ गई थी। 2001 में ऑस्ट्रेलिया की टीम अपने जबरदस्त रिकॉर्ड के साथ भारत के दौरे पर आई थी। मुंबई में पहला टेस्ट जीतकर ऑस्ट्रेलिया ने 16 टेस्ट लगातार जीतने का रिकॉर्ड बना दिया था। कोलकाता के दूसरे टेस्ट की पहली पारी तक ऑस्ट्रेलिया लगातार 17वें जीत की ओर बढ़ रहा था। ऑस्ट्रेलिया के पहली पारी के 445 के जवाब में भारतीय टीम सिर्फ 171 रन बनाकर आउट हो गई थी। लेकिन मैच पलटा भारत की दूसरी पारी में जब वीवीएस लक्ष्मण ने राहुल द्रविड़ के साथ पांचवें विकेट की साझेदारी में रिकॉर्ड 376 रन जोड़ डाले। लक्ष्मण ने 281 और द्रविड़ ने 180 रनों की पारी खेली थी और भारत ने 657 रन बनाकर पारी घोषित की। हरभजन सिंह की जबरदस्त गेंदबाजी के सामने ऑस्ट्रेलियाई टीम 212 रन बनाकर आउट हुई और फॉलोऑन के बावजूद भारत ने मैच जीत लिया। ये जीत आज भी भारत के टेस्ट इतिहास के सबसे शानदार जीत मानी जाती है और इसी के साथ सौरव गांगुली के एक सफल कप्तान बनने की शुरुआत हुई थी। #4 2002 इंग्लैंड दौरा, शानदार फॉर्म में द्रविड़ और दादा लॉर्ड्स में नैटवेस्ट ट्रॉफी का एतिहासिक फाइनल जीतने के बाद भारत को इंग्लैंड के खिलाफ चार टेस्ट खेलने थे। पहले टेस्ट में हार के बाद भारत ने दूसरा टेस्ट बढ़िया बल्लेबाजी की बदौलत ड्रॉ करवाया। इस टेस्ट में राहुल द्रविड़ ने दूसरी पारी में 115 रन बनाये, वहीँ गांगुली अभाग्यशाली रहे कि 99 रनों पर आउट हो गए। दादा ने पहली पारी में भी अर्धशतक लगाया था। तीसरे टेस्ट में राहुल द्रविड़ ने बहुत ही लाजवाब शतक लगाया और भारत ने वो मैच पारी और 46 रनों से जीतकर इतिहास रच दिया। द्रविड़ के 148 के अलावा पहली पारी में सचिन तेंदुलकर और गांगुली ने भी शतक लगाया था। चौथा टेस्ट ड्रॉ करवाकर भारत ने इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज ड्रॉ करवाई। इस आखिरी टेस्ट में द्रविड़ ने 217 रनों की बेमिसाल पारी खेली थी और उन्हें मैन ऑफ़ द सीरीज चुना गया था। द्रविड़ ने सीरीज में 602 और गांगुली ने 351 रन बनाये थे और इसी सीरीज के साथ गांगुली की कप्तानी में द्रविड़ का 'गोल्डन एरा' शुरू हुआ था। इस सीरीज के दौरान एक और मज़ेदार घटना हुई जब लॉर्ड्स का फाइनल जीतने के बाद सौरव गांगुली ने अपनी टीशर्ट लहराई थी, जब उसके बाद वही चीज़ हरभजन सिंह करने लगे तो राहुल द्रविड़ ने उन्हें मना करते हुआ कहा कि टीम में एक ही सलमान खान काफी है। #5 2003 , एक यादगार विश्व कप 2003 के विश्व कप से पहले किसी ने सोचा नहीं था कि भारतीय टीम फाइनल में खेलेगी। विश्व कप से पहले न्यूजीलैंड में भारत को काफी बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था और ऐसे में उन्हें कोई फेवरेट नहीं मान रहा था। ग्रुप स्टेज में पहले मैच में भारत ने किसी तरह नीदरलैंड्स को हराया था। दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 9 विकेट से हराकर झटका दिया लेकिन इसके बाद भारत ने बहुत ही जबरदस्त वापसी की। सचिन तेंदुलकर बहुत ही शानदार फॉर्म में थे और उसी के साथ सौरव गांगुली का भी बल्ला चल रहा था। टीम की भलाई के लिए उप-कप्तान राहुल द्रविड़ विकेटकीपर की भूमिका निभाई और कई उपयोगी पारियां भी खेली। भारत ने इसके बाद ज़िम्बाब्वे, पाकिस्तान, नामीबिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, श्रीलंका और केन्या को लगातर मैचों में हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई। सेमीफाइनल में उन्होंने फिर से केन्या को हराया और फाइनल में उनका सामना ऑस्ट्रेलिया से हुआ। हालाँकि भारत फाइनल में 125 रनों से हार गया लेकिन फिर भी उस समय के क्रिकेट फैन्स के लिए ये एक बहुत ही यादगार विश्व कप रहा। #6 एडिलेड की यादगार जीत 2003 के अंत में भारतीय टीम चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने ऑस्ट्रेलिया गई। पहले ब्रिसबेन टेस्ट में सौरव गांगुली ने बहुत ही उम्दा शतक लगाया और भारत ने टेस्ट ड्रॉ करवाया। दूसरे एडिलेड टेस्ट की पहली पारी में रिकी पोंटिंग के 242 रनों रनों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने 556 रन बनाये जिसके जवाब में भारत ने राहुल द्रविड़ के लाजवाब 233 रनों की पारी की बदौलत 523 रन बनाये। दूसरी पारी में अजित अगरकर ने 6 विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिया को सिर्फ 196 रनों पर पवेलियन भेज दिया। राहुल द्रविड़ ने एक बार फिर टीम को सँभालते हुए 72 रन बनाये और भारत ने विदेशी धरती पर एक एतिहासिक जीत दर्ज की। भारत इसके बाद हालाँकि मेलबर्न टेस्ट हार गया और सिडनी टेस्ट ऑस्ट्रेलिया ने ड्रॉ करवाकर सीरीज 1-1 से ड्रॉ करवा ली, लेकिन राहुल द्रविड़ की बेहतरीन बल्लेबाजी और कप्तान के तौर पर गांगुली की ये सफलता इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। #7 ग्रेग चैपल युग, गांगुली टीम से बाहर और द्रविड़ कप्तान 2005 में सौरव गांगुली के कहने पर ही ग्रेग चैपल को टीम का कोच बनाने को कहा था। लेकिन ग्रेग चैपल ने आते ही सबसे पहली गाज गांगुली पर ही गिराई। ज़िम्बाब्वे के दौरे के बाद गांगुली को न सिर्फ कप्तानी से हटाया गया, बल्कि उन्हें टीम से भी बाहर कर दिया गया। हालाँकि इस फैसले का देश भर में काफी विरोध हुआ और गांगुली ने 2006 के दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर टीम में वापसी की। जोहान्सबर्ग के पहले टेस्ट में गांगुली ने उपयोगी अर्धशतक लगाया और राहुल द्रविड़ दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट जीतने वाले पहले भारतीय कप्तान बने। लेकिन इसके बाद 2007 के विश्व कप से भारत की पहले राउंड में ही विदाई हो गई और इसी के साथ ग्रेग चैपल को भी कोच के पद से हटा दिया गया। इस समय को भारतीय क्रिकेट के सबसे ख़राब दौर के तौर पर जाना जाता है और सचिन तेंदुलकर ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र भी किया है। #8 2007, इंग्लैंड में सीरीज जीत एक बहुत ही खराब दौर के बाद भारतीय टीम तीन टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने इंग्लैंड गई। पहला टेस्ट भारत ने जैसे-तैसे ड्रॉ करवाया लेकिन दूसरे टेस्ट में ज़हीर खान की कहर बरपाती गेंदों की बदौलत भारत ने जीत हासिल कर ली। जब भारत ने ये टेस्ट जीता तो क्रीज़ पर राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली ही मौजूद थे। तीसरा टेस्ट ड्रॉ हो गया और भारत ने इंग्लैंड को उन्हीं की धरती पर टेस्ट सीरीज में हरा दिया। ये टेस्ट सीरीज द्रविड़ के कप्तानी में जीती गई एक यादगार जीत थी। #9 संन्यास और कमेंट्री बॉक्स में आगमन इंग्लैंड की सीरीज के बाद गांगुली का फॉर्म काफी बढ़िया हो गया और उसे उन्होंने अपने आखिरी मैच तक बरक़रार रखा लेकिन इस बीच द्रविड़ का फॉर्म कुछ खराब हो गया था। उन्होंने कप्तानी भी छोड़ दी थी और अनिल कुंबले नए टेस्ट कप्तान थे। 2008 में जब ऑस्ट्रेलिया चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने भारत आई तो उससे पहले गांगुली ने कह दिया कि ये उनकी आखिरी टेस्ट सीरीज होगी। इस सीरीज में गांगुली ने शानदार बल्लेबाजी की और शान के साथ क्रिकेट को अलविदा कहा। द्रविड़ हालाँकि इसके बाद खेलते रहे और 2011 के इंग्लैंड दौरे पर उन्होंने चार मैचों में तीन शतक जड़कर आलोचकों को जवाब दिया। भारत ये सीरीज 4-0 से हारा था लेकिन फिर भी द्रविड़ की बल्लेबाजी को मौजूद समय की सबसे बेहतरीन बल्लेबाजी में से एक माना गया। इसके बाद उन्हें एकदिवसीय सीरीज में भी टीम में चुना गया जो उनकी आखिरी सीरीज थी। 2011-12 ऑस्ट्रेलिया के टेस्ट दौरे पर द्रविड़ का बल्ला खामोश रहा और उन्होंने मार्च में क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। इसके बाद दोनों ही क्रिकेटरों ने कमेंट्री में हाथ आजमाया और इसी दौरान 2014 में भारत के इंग्लैंड दौरे के दौरान दोनों एक साथ कमेंट्री कर रहे थे। इस बातचीत में द्रविड़ और गांगुली के बीच 2007 के इंग्लैंड दौरे को लेकर काफी गंभीर चर्चा हुई और सुनने वालों को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये हो क्या रहा है। हालाँकि एक नीरस से टेस्ट मैच में इन दोनों की इस तथाकथित बहस के कारण जान आ गया था। इस बातचीत में मुख्य रूप से गांगुली की गेंदबाजी को लेकर चर्चा हो रही थी जिसपर द्रविड़ ने कहा था कि गांगुली अगर थोड़ी और तेज़ गेंदबाजी करते तो वो ज्यादा बेहतर गेंदबाज होते। इसपर गांगुली ने जवाब दिया था कि अगर वो भारत के प्रधानमंत्री होते तो और भी बहुत कुछ कर सकते थे। हर्षा भोगले इन दोनों के साथ कमेंट्री बॉक्स में मौजूद थे और उन्होंने उस लम्हे का भरपूर मज़ा लिया। #10 क्रिकेट में अलग-अलग तरह से योगदान बरकरार क्रिकेट से रिटायर होने के बाद भी ये दोनों भारतीय क्रिकेट से किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं। जहाँ गांगुली को सचिन और लक्ष्मण के साथ बीसीसीआई की सलाहकार समिति में जगह दी गई, वहीँ द्रविड़ को भारतीय अंडर 19 और भारत 'A' का कोच बनाया गया। द्रविड़ के देखरेख में भारतीय अंडर 19 टीम इस साल विश्व कप के फाइनल में भी पहुंची थी, जहाँ उन्हें वेस्टइंडीज से हार का सामना करना पड़ा। जगमोहन डालमिया की मौत के बाद सौरव गांगुली को बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उन्होंने वर्ल्ड टी20 में पाकिस्तान के खिलाफ एक यादगार मैच आयोजित करवाया। एक बेमिसाल करियर के बाद ये दोनों क्रिकेटर अब युवा क्रिकेटरों की खोज में लगे हुए हैं। जहाँ उम्मीद है कि जल्द ही राहुल द्रविड़ भारतीय टीम के कोच बन सकते हैं , वहीँ सौरव गांगुली के लिए अब अगला लक्ष्य शायद बीसीसीआई का अध्यक्ष पद है। मैं अपने आप को काफी खुशकिस्मत मानता हूँ कि राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली के करियर के हर आयाम को मैंने देखा है और एक समय में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए इनके अलावा सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंदर सहवाग और अनिल कुंबले को एक साथ खेलते देखना किसी भी क्रिकेट प्रेमी के लिए ज़िन्दगी भर के तोहफे के समान है। शायद इसी कारण से भारतीय क्रिकेट के उस दौर को सुनहरा दौर कहते हैं।