प्रिंस ऑफ़ कोलकाता नाम से मशहूर भारत के सबसे सफल कप्तान सौरव गांगुली ने 1996 में अपने डेब्यू टेस्ट में शतक बनाया था। उसके बाद इसी सीरीज में उन्होंने एक और शतक बनाया था। 1999 के वर्ल्डकप में श्रीलंका के खिलाफ गांगुली ने टांटन में हुए मैच में 183 रन की पारी खेली। उन्होंने द्रविड़ के साथ मिलकर दूसरे विकेट के लिए 331 रन की साझेदारी निभाई थी। बंगाल टाइगर नाम से मशहूर दादा को 2000 में भारतीय टीम की कप्तानी का दायित्व सौंप दिया गया था। मैच फिक्सिंग के दंश से टीम को उबारते हुए गांगुली ने अपनी कप्तानी में 2000 में ही केन्या में हुए आईसीसी चैंपियंस ट्राफी के फाइनल तक टीम को पहुँचाया। जहाँ टीम फाइनल में कीवी टीम से हार गयी थी। दादा की कप्तानी में सहवाग, ज़हीर, युवराज, हरभजन और नेहरा जैसे खिलाड़ियों ने टीम में जगह बनाई थी। जिन्होंने लम्बे समय तक भारतीय क्रिकेट की सेवा की। लॉर्ड्स में हुए नेटवेस्ट ट्रॉफी का वह फाइनल मैच जिसे दादा की कप्तानी में भारत ने जीता था। इस फाइनल में मिली जीत का जश्न दादा ने जर्सी उतारकर मनायी थी। 2003 के वर्ल्डकप गांगुली ने भारतीय टीम की कप्तानी की थी। जहाँ भारत फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया से हार गया था। इसके अलावा गांगुली एक शानदार सलामी बल्लेबाज थे। उन्होंने सचिन के साथ कई साझेदारी निभाई थी। वनडे में दादा ने 22 शतक लगाये थे। 2005 में कोच ग्रेग चैपल के साथ गांगुली का विवाद भी हो गया था। जिसकी वजह से गांगुली से कप्तानी लेकर द्रविड़ को ये जिम्मेदारी सौंपी गयी। नवम्बर 2005 में उन्हें टीम से भी बाहर कर दिया गया। जनवरी 2006 में उन्हें टेस्ट टीम से भी बाहर कर दिया गया। जिसको लेकर कोलकाता के साथ पूरे देश में दादा को खूब सपोर्ट मिला। बाद में उनकी टीम में वापसी हुई। साल 2011 में गांगुली को आईपीएल में कोई खरीददार ही नहीं मिला। जबकि वह पहले तीन सीजन में कोलकाता के कप्तान थे। हालाँकि उनके कार्यकाल में टीम सेमीफाइनल में एक बार भी नहीं पहुँच पायी थी। लेकिन धोनी के बाद ये भारतीय बल्लेबाज़ दूसरा सबसे सफल भारतीय कप्तान रहा। साथ ही टेस्ट में वह धोनी के मुकाबले ज्यादा सफल साबित हुए थे। क्योंकि विदेशों में उनकी टीम को ज्यादा जीत मिली थी।