10 ऐसे मौके जिन्हें भारतीय क्रिकेट प्रेमी कभी याद करना नहीं चाहेंगे

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भारतीय क्रिकेट टीम ने पिछले कुछ समय में अपने आप को दुनिया के सबसे मजबूत टीम के रूप में स्थापित किया है।

1932 में हुए अपने पहले मैच से ही भारतीय टीम ने अपने प्रशंसकों को लगातार झूमने का मौका दिया है। 1952 में वीनू मांकन्ड और पंकज राय साझेदारी, 1971 में सुनील गावस्कर की वेस्टइंडीज की धरती पर पारियां, विश्वकप जीतना और ऐसे ही कई व्यक्तिगत पारियां।

इन सब के अलावा कुछ ऐसी नहीं बातें हैं जिसे भारतीय खेल प्रेमी भुलाना चाहते हैं। 2009 में धोनी का सभी खिलाड़ियों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेकर आना, गलत आउट दिए जाने के बाद सुनील गावस्कर का मैच बंद करवाने की कोशिश और मंकीगेट विवाद।

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आईये ऐसे ही 10 घटनाओं के बारे में आपको बताते है जिसे भारतीय खेल प्रेमी हमेशा के लिए भुलाना चाहेंगे:

सुनील गावस्कर के 174 गेंदों पर 36 रनों की पारी

सुनील गावस्कर क्रिकेट के महान बल्लेबाजों में गिने जाते हैं और उनके आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं। जब उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लिया तो टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज थे। उन्होंने 125 मैचों में 51.12 की औसत से 10122 रन थे।

हालांकि, टेस्ट की तरह वो एकदिवसीय मैचों में वैसी छाप नहीं छोड़ पाए। उन्होंने 108 एकदिवसीय मैचों में 35.13 की औसत से 3092 रन बनाए हैं। उन्होंने भारतीय टीम के लिए कई यादगार पारियां खेली है लेकिन एक ऐसी पारी है जिसे वो हमेशा के लिये भुलाना चाहेंगे, यह पारी है पहले विश्वकप में इंग्लैंड के खिलाफ खेली गयी थी।

पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड की टीम ने 60 ओवरों में 334/4 रन बनाए। उनकी तरफ से डेनिस एमिसने 137 और क्रिस ओल्ड ने 30 गेंदों पर 51 रनों की पारी खेली। उस समय के हिसाब से 335 का लक्ष्य काफी बड़ा था। भारत के लिए सलामी बल्लेबाजी करने उतरे गावस्कर ने 1764 गेंदों पर 36 रनों की नाबाद पारी खेली और भारतीय टीम 69 ओवरों में 132/3 रन ही बना पाई और इंग्लैंड ने इस मैच को 202 रनों के बड़े अंतर से जीत लिया।

यह पारी किसी भी भारतीय बल्लेबाज की सबसे गैरजिम्मेदाराना पारी थी।सौरव गांगुली और ग्रेग चैपल विवाद

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मई 2005 में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान ग्रेग चैपल 2 साल के अनुबंध पर भारतीय टीम के कोच बने और उनका कार्यकाल 2007 विश्वकप तक चलने वाला था। उनके कोचिंग करने का तरीका काफी अलग था। वो लगातार बल्लेबाजी क्रम में बदलाव करते रहते थे जिसकी वजह से टीम के खिलाड़ी और खेल प्रेमी दोनों ही उनसे परेशान रहते थे।

इसी वजह से भारतीय कप्तान सौरव गांगुली और उनके बीच विवाद काफी बढ़ गया। चैपल में तो सभी के सामने टीम सब में गांगुली को बीच की अंगुली दिखा दी थी। इनका विवाद इतना बढ़ गया कि कोच ने गांगुली को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया। कोई भी भारतीय खेल प्रेमी इस प्रकरण को याद नहीं रखना चाहेगा।

टीम के अंदर इतना विवाद था कि भारतीय टीम एकजुट नहीं खेल पाई और 2007 विश्वकप के पहले ही दौर से बाहर हो गई। इसके बाद चैपल को उनके पद से हटा दिया गया।भारत बनाम वेस्टइंडीज, तीसरा टेस्ट बारबाडोस 1997

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किसी भी भारतीय खेल प्रेमी से पूछा जाए कि 90 के दशक में भारतीय टीम का सबसे बुरा समय कब था तो वो 1997 में बारबाडोस में वेस्टइंडीज के खिलाफ हुए टेस्ट मैच का नाम जरूर लेंगे। सचिन तेंदुलकर की कप्तानी वाली यह टीम 120 रनों के लक्ष्य का पीछा नहीं कर पाई और 38 रनों से मैच हार गई।

मैच के अंतिम दिन भारतीय बल्लेबाजों को देख कर ऐसा लगा ही नहीं कि वह लड़ने आये हैं। कर्टली एम्ब्रोस, इयान बिशप और फ्रैंकलिन रोज की गेंदबाजी के सामने भारतीय टीम 81 रनों पर ढेर हो गयी और वीवीएस लक्ष्मण ही एकमात्र ऐसे बल्लेबाज थे जो दहाई के आंकड़े को छू पाए।

कप्तान सचिन तेंदुलकर ने अपनी किताब में इस मैच का जिक्र करते हुए लिखा "सोमवार 31 मार्च 1997 का दिन भारतीय क्रिकेट के सबसे काले दिनों में एक था और मेरी कप्तानी का सबसे खराब दिन। इस हार ने मुझे बुरी तरह तोड़ दिया और मैंने अपने आप को दो दिनों तक कमरे में बंद रखा। जिससे मैं इस हार से उभर पाऊ। जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं तो आज भी वो हार मुझे दर्द देती है।"1996 विश्वकप सेमीफाइनल

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1996 का क्रिकेट विश्वकप भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा था और उस समय सचिन तेंदुलकर शानदार फॉर्म ने चल रहे थे। इसी वजह से भारतीय प्रशंसकों को उम्मीद थी कि भारतीय टीम इस बार विश्वकप की ट्रॉफी उठाएगी।

सचिन ने किसी को निराश नहीं किया और पहले ही दिन से गेंदबाजों पर टूट कर पड़े। बाकी खिलाड़ियों का भी अच्छा साथ मिला और भारत की टीम सेमीफाइनल में पहुंच गयी जहां ईडन गार्डन ने उसका मुकाबला श्रीलंका से होने वाला था।

लेकिन, भारतीय खिलाड़ी और फैन्स उस समय अचंभित रह गए जब भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला किया।

भारतीय गेंदबाजों ने अच्छी गेंदबाजी की और श्रीलंका की टीम को 251 रनों पर रोक दिया। जवाब में बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम को सचिन ने अच्छी शुरुआत दिलाई और एक समय टीम का स्कोर 98/1 था तभी सचिन 65 रन बनाकर आउट हो गए। उसके बाद जैसे विकेटों का पतझड़ लग गया और भारत का स्कोर 120/8 हो गया। विनोद कांबली और अनिल कुंबले पिच पर टिके थे। किसी भी भारतीय बल्लेबाज ने जिम्मेदारी नहीं दिखाई और श्रीलंका के स्पिनरों के सामने घुटने टेक दिए।

इसके बाद दर्शकों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। मैदान में बोतलें फेंकी और दर्शक दीर्घा में जगह-जगह आगजनी शुरू कर दी। इसके कारण आगे मैच नहीं हो पाया और मैच रेफरी ने श्रीलंका को विजेता घोषित कर दिया।

उस समय विनोद कांबली का रोते हुए मैदान से बाहर आना आज भी खेल प्रेमियों के दिल मे जिंदा है।अनिल कुंबले-विराट कोहली विवाद

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पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले ने भारतीय कोच के रूप में काफी अच्छा काम किया था। उनके एक साल के कार्यकाल में भारतीय टीम ने एक भी द्विपक्षीय सीरीज नहीं गंवाया था।

2017 चैंपियंस ट्रॉफी से पहले ये खबरें आई कि कप्तान और कोच के बीच सब कुछ सही नहीं चल रहा है। फिर भी दोनों इस बात से इंकार करते रहे। लेकिन, फाइनल में पाकिस्तान के हाथों मिली हार के कुछ ही दिनों बाद कुंबले ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उनका कार्यकाल खत्म होने में अभी एक दिन बाकी ही था।

इस्तीफे के बाद कुंबले ने सोशल मीडिया के द्वारा सभी के सामने कप्तान कोहली के साथ विवाद की बात मानी।

खेल में इस तरह के बातें होती रहती है दोनों को आपस मे ही इस बात को सुलझा लेना चाहिए था। यह समय भारतीय क्रिकेट के लिए काफी मुश्किलों भरा था।सनथ जयसूर्या 189; भारतीय टीम 54

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कितनी बार ऐसा देखने को मिलता है कि पूरी टीम मिलकर विपक्षी टीम के एक बल्लेबाज से भी कम रन बना पाती है? भारतीय टीम के साथ भी ऐसा हो चुका है और कोई भी भारतीय इस मैच को याद करना नहीं चाहता है।

शारजाह में खेले गये कोका कोला चैंपियंस ट्रॉफी 2000 के फाइनल मुकाबले में सनथ जयसूर्या ने अपनी 189 रनों की पारी की बदौलत भारतीय गेंदबाजों को उधेर कर रख दिया और अपने बूते टीम को 50 ओवरों में 299/5 तक पहुंचा दिया।

उन्होंने 161 गेंदों में 21 चौके और 4 छक्कों की मदद से 189 रन बनाए। सभी को लग रहा था कि जयसूर्या एकदिवसीय मैचों में 200 रनों की पारी खेलने वाले पहले बल्लेबाज बन जाएंगे लेकिन मैच में 12 गेंदें बाकी थी तभी सौरव गांगुली ने उन्हें आउट कर दिया।

300 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी गांगुली की टीम चामिंडा वास और मुरलीधर की गेंदबाजी के सामने बिल्कुल नहीं टिक पाई और पूरी टीम 54 रनों पर पवेलियन लौट गए। भारतीय टीम यह मैच 245 रनों से हार गई।घर से बाहर लगातार 8 टेस्ट हार

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2011 का साल भारतीय टीम के लिए लिए काफी शानदार रहा था। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम में 28 साल बाद विश्वकप पर कब्जा जमाया। परन्तु उसी साल भारतीय टीम ने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के सरजमीं पर काफी खराब प्रदर्शन किया।

विश्वकप जीत के कुछ ही महीनों बाद इंग्लैंड दौरे पर गयी भारतीय टीम वहां खेली 4 टेस्ट मैच की सीरीज के सारे मैच हार गई। उसके कुछ समय बाद भारतीय टीम 4 टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने ऑस्ट्रेलिया पहुंची लेकिन वहां भी परिणाम कुछ इसी तरह का रहा। ऑस्ट्रेलिया की टीम ने 4-0 से सिरीज़ अपने नाम कर लिया।

विश्वकप जीतने के एक साल के अंदर ही धोनी की कप्तानी पर सवाल उठने लगे और उनके बाहर होने की बात चलने लगी लेकिन श्रीनिवासन ने बीच मे आकर धोनी को बचा लिया।

इसके बाद 2014 में इंग्लैंड दौरे पर गयी भारतीय टीम ने लॉर्ड्स में टेस्ट मैच जीतकर विदेशी धरती पर 3 साल बाद कोई टेस्ट मैच अपने नाम किया।2013 आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग

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आईपीएल शुरू होने के बाद से कई युवा भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छे प्रदर्शन के दम अपनी पहचान बनाई और उन्हें भारतीय टीम के लिए खेलने का भी मौका मिला। इस तरह यह कहा आईपीएल भारतीय क्रिकेट के लिए काफी फायदेमंद रहा है लेकिन कई बार आईपीएल को लेकर ऐसी बातें सामने आई है कि लोगों का भरोसा इस पर से डगमगाने लगता है।

2013 में ऐसा ही एक विवाद सामने आया जब राजस्थान रॉयल्स के 3 खिलाड़ी श्रीसंत, अंकित चवन और अजीत चंदीला को स्पॉट फिक्सिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा चेन्नई सुपरकिंग्स के टीम प्रिंसिपल गुरुनाथ मेयप्पन और राजस्थान रॉयल्स के सह मालिक राज कुंद्रा पर भी सट्टा लगाने का आरोप लगा।

इन सब के बाद 3 खिलाड़ियों पर बीसीसीआई ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया वहीं चेन्नई और राजस्थान की टीम को 2 सालों के लिए बर्खास्त कर दिया गया।2007 विश्वकप से शर्मनाक तरीके से बाहर होना

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सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, युवराज सिंह, महेंद्र सिंह धोनी, अनिल कुंबले, हरभजन सिंह, ज़हीर खान ये कुछ ऐसे नाम थे 2007 विश्वकप में भारतीय का हिस्सा थे और 24 साल बाद विश्वकप ट्रॉफी जीतने का सपना लेकर वेस्टइंडीज गए थे।

लेकिन पहले ही दौर में बांग्लादेश और श्रीलंका के हाथों हार कर भारतीय विश्वकप से बाहर हो गईं। जिससे नाराज़ फैंस ने खिलाड़ियों के घर पर पथराव किया और उनका पुतला भी फूंका।

भारत की हार का सबसे बड़ा कारण था कोच ग्रेग चैपल का इस बड़े टूर्नामेंट से ठीक पहले सलामी बल्लेबाजों को बदल देना। इसके अलावा खिलाड़ियों के बीच आपस में भी तालमेल की कमी थी जिसका खामियाजा टीम को विश्वकप से बाहर होकर भुगतान पड़ा।भारतीय क्रिकेट का सबसे बुरा समय

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2000 में दिल्ली पुलिस को एक टेलीफोन की बातचीत हाथ लगी जो सट्टेबाजों और दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रॉनिय के बीच की थी। इस बातचीत से पुलिस इस निर्णय तक पहुंची कि दक्षिण अफ्रीका के कप्तान ने मैच हारने के लिए पैसे लिए हैं।

क्रॉनिय के खेलने पर उसी समय पाबंदी लगा दी गयी और उसके बाद हुए खोजबीन में पाकिस्तान के सलीम मलिक, उस समय के भारतीय कप्तान मोहम्मद अजरुद्दीन और बल्लेबाज अजय जडेजा का नाम भी सामने आया। इसके बाद भारतीय क्रिकेट चारों तरफ से दबाव में घिर गई। बीसीसीआई ने अज़हरुद्दीन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया वहीं अजय जडेजा पर 5 सालों का प्रतिबंध लगा।

इस समय को बीबीसी ने "भारतीय क्रिकेट का सबसे बुरा समय" बोलकर सम्बोधित किया। इसके बाद भारतीय क्रिकेट का कोई भविष्य नहीं दिख रहा था। सभी खिलाड़ी एक दूसरे को शक की नज़र से देखने लगे थे और टीम के पास कोई कप्तान भी नहीं था।

सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले जैसे बड़े खिलाड़ियों ने टीम को इससे बाहर निकालने के लिए काफी काम किया। टीम को कई सीनियर खिलाड़ी होने के बावजूद टीम की कमान सौरव गांगुली के हाथों में मिली और उसके बाद जिस तरह भारतीय क्रिकेट उभर कर आई वह ऐतिहासिक है।