भारतीय महिला टीम ने 2017 विश्वकप में फाइनल तक का सफर तय कर सभी को अपना मुरीद बना लिया हालांकि दुर्भाग्य से टीम को फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ 9 रनों से शिकस्त झेलनी पड़ी। भारतीय कप्तान मिताली राज ने अपने बल्ले के अलावा मैदान पर भी शानदार रणनीति अख्तियार करते हुए टीम को इस सफर तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया। इन सबके बावजूद मिताली राज को यह विश्वकप ख़ास नहीं लगा। मिताली ने 2005 में अपनी कप्तानी में विश्वकप फाइनल में सफर तय करने वाला समय यादगार बताया है।
एक क्रिकेट वेबसाईट से बातचीत करते हुए मिताली ने कहा कि 2005 के दौरान सरकार, बीसीसीआई आदि से कोई समर्थन नहीं था। इसके अलावा सपोर्ट स्टाफ भी टीम में नहीं था इसके बाद भी टीम ने फाइनल तक का सफर तय किया यह यादगार रहा। उन्होंने कहा कि हां यह विश्वकप भी अहम था लेकिन मेरी कप्तानी में 2005 का विश्वकप ही अहम स्थान रखेगा।
इसके बाद मिताली राज ने कहा कि महिला स्पोर्ट्स के लिए वह सुविधाएं नहीं मिलती, जो मिलनी चाहिए। बाकी देश शुरू से ही इसमें इन्वेस्ट करना शुरू कर देते हैं लेकिन भारतीय महिला स्पोर्ट्स में ऐसा नहीं है। हालांकि मिताली ने 90 और 2000 में महिला स्पोर्ट्स की स्थिति से आज की परिस्थिति ठीक बताई है।
गौरतलब है कि भारतीय टीम ने 2005 में भी विश्वकप के फाइनल में जगह बनाई थी। इस दौरान भी कप्तान मिताली राज ही थी। भारत को उस समय फाइनल मुकाबले ए ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। ऑस्ट्रेलिया को भारत ने 2017 विश्वकप में सेमीफाइनल में शिकस्त देकर उस पराजय का बदला चुका दिया।
टीम के शानदार प्रदर्शन के बाद बीसीसीआई के अलावा राज्य क्रिकेट संघों ने खिलाड़ियों का स्वागत करने के अलावा पुरस्कार भी वितरित किये, जबकि 2005 में ऐसा कुछ नहीं था। यही कारण रहा कि मिताली राज ने उस विश्वकप को यादगार करार दिया। उस समय टीम को वह पहचान नहीं मिली थी, जिसकी वह हकदार थी।