सचिन तेंदुलकर वो शख़्सियत हैं जिनका नाम क्रिकेट की दुनिया में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है, उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत साल 1989 में की थी। अपने करियर के शुरुआती दौर में उन्होंने कई नाकामियों का भी सामना किया है, उन्हें उस वक़्त ये लग रहा था कि शायद वो टीम इंडिया के साथ इतना लंबा करियर नहीं खेल पाएंगे। सचिन तेंदुलकर ने वनडे में डेब्यू करने के 5 साल बाद पहला शतक लगाया था, टेस्ट में भी ख़ुद को स्थापित करने में सचिन को थोड़ा वक़्त लग गया था। हांलाकि सचिन के हुनर का पता दुनिया को पहली ही अंतरराष्ट्रीय सीरीज़ में लग गया था, लेकिन उन्होंने ख़ुद को साबित करने के लिए उन्हें इंतज़ार करना पड़ा था। पहले शतक के बाद जैसे अंतरराष्ट्रीय शतकों का अंबार लग गया था। आज वो टेस्ट और वनडे में शतक लगाने के मामले में सबसे आगे हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि सचिन क्रिकेट के बेताज बादशाह रहे हैं उनके करियर की अवधि और रिकॉर्ड इस बात को साफ़ बयान करते हैं। वो क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं और उनका टीम इंडिया के लिए योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है। लेकिन 3 भारतीय क्रिकेटर ऐसे भी हैं जिन्होंने सचिन की तरह साल 1989 में अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन क्रिकेट की दुनिया में मास्टर ब्लास्टर जैसा नाम नहीं कमा सके, आइए इन 3 खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं।
#3 रॉबिन सिंह
अगर फ़ील्डिंग की बात करें तो रॉबिन सिंह भारतीय क्रिकेट में बड़ा नाम थे, वो पहले ऐसे क्रिकेटर थे जिन्होंने इस बात को समझा कि भारतीय हालात में फ़ील्डिंग की अहमियत क्या है, उन्होंने इस क्षेत्र में काफ़ी काम किया और विपक्षी टीम के रन रोकने में काफ़ी मदद भी की। रॉबिन पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने टीम इंडिया के लिए साल 1989 में डेब्यू किया था। उन्होंने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ पोर्ट ऑफ़ स्पेन में पहला वनडे मैच खेला था। हांलाकि उस मैच में वो कुछ ख़ास नहीं कर पाए और 5 गेंदों में महज़ 3 रन ही बना पाए। वो 1990 के दशक में टीम इंडिया के एक अहम सदस्य थे। उन्हें कई अच्छे प्रदर्शन के बदौलत साल 1998 में एक टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला, लेकिन ये उनके लिए पहला और आख़िरी टेस्ट मैच साबित हुआ। उनका वनडे करियर जारी रहा इसकी वजह ये थी कि भारत के पास रॉबिन सिंह और जडेजा के सिवा कोई ज़्यादा अच्छा मध्य क्रम का बल्लेबाज़ नहीं था। 136 वनडे मैच में उन्होंने 26 की औसत से 2985 रन बनाए थे, जिसमें एक शतक भी शामिल था।
#2 सलिल अंकोला
सलिल अंकोला महाराष्ट्र के ऐसे दूसरे खिलाड़ी थे जिन्होंने साल 1989 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया था। उन्होंने अगले ही साल सचिन के साथ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपना पहला वनडे मैच खेला था। अंकोला सोलापुर से ताल्लुक रखते थे और तेज़ गेंदबाज़ी के लिए जाने जाते थे। उन्हें 7 साल के दरमियान सिर्फ़ 20 वनडे और एक टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला था। हांलाकि अंकोला ज़्यादा हुनरमंद खिलाड़ी नहीं थे, लेकिन उनमें जो भी क़ाबिलियत थी वो उसका पूरा इस्तेमाल करते थे। उनका अंतरराराष्ट्रीय करियर कुछ ख़ास नहीं रहा, लेकिन उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि वो टीम इंडिया के लिए खेलने का ख़्वाब पूरा हुआ। अंकोला ने 20 वनडे मैच में 47 की औसत और 62 के स्ट्राइक रेट से 13 विकेट हासिल किए थे। एकलौते टेस्ट मैच में उन्होंने 64 की औसत और 90 के स्ट्राइक रेट से 2 विकेट लिए थे।
#1 विवेक राज़दान
विवेक राज़दान दिल्ली के तेज़ गेंदबाज़ थे उन्होंने साल 1989 और 1990 में टीम इंडिया के लिए क्रिकेट खेला था। वो दिल्ली और तमिलनाडु दोनों ही टीम की तरफ़ से रणजी ट्रॉफ़ी खेल चुके हैं। 1980 के दशक में ऐसा देखने को मिला था कि टीम इंडिया में कई युवा खिलाड़ियों को मौका दिया गया था, लेकिन हर कोई सचिन के जितना कामयाब नहीं हो पाया था। राज़दान उन खिलाड़ियों में से थे जिन्हें टीम इंडिया में काफ़ी कम उम्र में शामिल किया गया था, लेकिन उनकी चमक जल्द ही फीकी पड़ गई थी। राज़दान की तरह शिवरामकृष्णन भी काफ़ी छोटी उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए थे, लेकिन वो भी लंबी पारी खेलने में नाकाम रहे। राज़दान ने सिर्फ़ 2 टेस्ट और 3 वनडे मैच खेले हैं। 2 टेस्ट मैच में उन्होंने 28 की औसत की औसत और 48 के स्ट्राइक रेट से 5 विकेट हासिल किए थे। ये अब तक एक रहस्य बना हुआ है कि एक पारी में 5 विकेट लेने के बावजूद उन्हें फिर मौका क्यों नहीं दिया गया। लेखक- वरुण देवानाथन अनुवादक – शारिक़ुल होदा