3 ऐसी छोटी पारियां जिसने 2011 विश्वकप में भारत के तकदीर को बदल दिया

Australia v India - 2011 ICC World Cup Quarter-Final

क्रिकेट के मैच में हार और जीत दोनों ही मौकों पर कई शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है। ऐसे प्रदर्शन को कई दशकों तक याद किया जाना चाहिए। कई बार ऐसा भी होता है कि इन पारियों को भूला दिया जाता है और समय के साथ लोगों के ध्यान से विलुप्त हो जाता है, लेकिन इनके बिना इतिहास कुछ और हो सकता था। युवराज का ऑलराउंड प्रदर्शन, ज़हीर की घातक गेंदबाजी, धोनी और गंभीर की मैच जिताऊ पारी और सचिन के प्रदर्शन को भारत के विश्वकप 2011 विजेता बनने में अहम माना जाता है। इस दौरान कुछ ऐसी भी पारियां थी जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया लेकिन इन पारियों ने भारत को विश्वविजेता बनाने में अहम भूमिका निभाई। आज हम उन्हीं 3 छोटी पारियों की बात करेंगे जिसकी मदद के बिना भारत के लिए 28 साल बाद विश्व कप उठाना मुश्किल हो जाता: #3 ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में रैना की पारी 2011 विश्व कप के दौरान भारत की सबसे बड़ी ख़ासियत थी जरूरत के मौके पर अच्छा प्रदर्शन करना, खासकर नॉक-आउट मुकाबलों में। इन मैचों का दबाव ही अलग होता है। जहां एक खराब ओवर या एक विकेट की वजह से आपको विश्व कप से हाथ धोना पड़ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम ने सही समय पर अपने प्रदर्शन का स्तर ऊपर उठा लिया और जब भी मौका मिला टीम ने उसे भुनाया। भारत के लिए लक्ष्य 260 ही था पर ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के खिलाफ विश्वकप नॉक आउट मुकाबले में यह बिल्कुल आसान नहीं था। 38वें ओवर तक आधी भारतीय टीम पवेलियन लौट चुकी थी और टीम को अभी जीत के लिए 74 और रनों की दरकार थी। किसी अन्य दिन की बात होती हो ऑस्ट्रेलिया तुरन्त विपक्षी टीम को समेट कर मैच अपनी झोली में डाल चुका होता पर इस बार रैना और युवराज क्रीज पर थे और भारतीय टीम की उम्मीद बची थी। युवी 2011 विश्वकप के दौरान गजब का फॉर्म में थे और इस मैच में भी उनका प्रदर्शन जारी रहा। दूसरे छोड़ पर रैना ने अपनी छोटी पारी से भारतीय टीम को लक्ष्य से नहीं भटकने दिया। ऑस्ट्रेलिया जैसी तेज गेंदबाजी वाली टीम के खिलाफ रैना ने 28 गेंदों पर 34 रनों की नाबाद पारी खेली। जिसमें दो चौके और एक छक्का शामिल था। मैच के बाद धोनी ने कहा कि हमें करीब 70 रन चाहिए थे और अंतिम बल्लेबाजों की जोड़ी क्रीज पर थी और हमें भरोसा था कि अगर दोनों बल्लेबाज 50 ओवर खेल जाते तो हम मैच जीत जाएंगे। दोनों ने दबाव को काफी अच्छी तरह झेला। रैना ने बाद में बताया कि सचिन ने उनसे बोला था "तुमने अभी हमारे लिए विश्वकप जीत लिया है।" इस तरह के मैचों में ऑस्ट्रेलिया ही वो टीम थी जो भारत को विश्वकप से बाहर कर सकती थी, लेकिन भारतीय टीम ने दबाव में होने के बाबजूद मैच अपने नाम कर लिया। #2 पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में रैना की पारी Indian batsman Suresh Raina plays a shot विश्वकप सेमीफाइनल, वो भी अपनी सरजमीं पर सामने पाकिस्तान की टीम, एक खेल प्रेमी को इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। दोनों देशों के प्रधानमंत्री उस दिन मैदान के अंदर ही थे। वैसे शब्द ही नहीं बने जो उस दिन मैदान के अंदर और पूरे देश का माहौल बयां कर सके। रैना ने उस दिन छोटी पर बहुमूल्य पारी खेली। मोहाली के दोहरी उछाल वाली पिच पर भारतीय बल्लेबाजों के लिए पाकिस्तान की गेंदबाजी को झेलना मुश्किल हो रहा था। वहाब रियाज़ अपने चरम पर थे और स्पिनर भी कसी हुए गेंदबाजी कर रहे थे। इसके बावजूद पाकिस्तान की टीम गलतियां की जा रही थी और सचिन के कई कैच छोड़े। इन सब के बावजूद भारतीय टीम का स्कोर 37 ओवरों में 187/5 हो गया था और सचिन पवेलियन लौट गए। तभी रैना क्रीज पर पहुंचे 5 ओवर के बाद धोनी भी पवेलियन लौट गए और भारत का स्कोर 205/6 हो गया। अब रैना के साथ सिर्फ निचले क्रम वाले बल्लेबाजी ही बचे थे। रैना ने वहां छक्के-चौके से नहीं शालीनता से बल्लेबाजी की क्योंकि उनका विकेट गिरने के बाद सिर्फ गेंदबाज ही बचते। रैना ने एक छोड़ सम्भाले रखा और एक-दो रन लेकर स्कोर बोर्ड चलते रहे और 39 गेंदों में 36 रनों की छोटी पर बहुमूल्य पारी खेली। इस पारी के दौरान रैना ने मात्र 3 चौके लगाए और अंत तक पिच पर टिके रहे। भारतीय पारी 260 पर समाप्त हुई और गेंदबाजों के अच्छा लक्ष्य मिल गया, जिसे उन्होंने बचा लिया। सचिन तेंदुलकर को 85 रनों की पारी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया लेकिन रैना की पारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी। यह पारी उनके करियर की सभी यादगार पारियों में से एक है। #1 कोहली की फाइनल की पारी Indian batsman Virat Kohli plays a shot "मास्टर ऑफ रन चेज" के नाम से मशहूर कोहली के यहां पहुंचने की यह शुरुआत थी। अपनी छोटी पारी से कोहली ने अन्य बल्लेबाजों के लिए मंच सजा दिया। श्रीलंका ने भारत के सामने 275 का लक्ष्य रखा और गेंदबाजी में सबकुछ उनके अनुसार ही चल रहा था जब लसिथ मलिंगा ने सहवाग और सचिन दोनों को पवेलियन भेज दिया और भारत का स्कोर मात्र 31 रन ही था। कई लोगों के जेहन में 2003 और 1996 की यादें ताजा होने लगी थी। कोहली भी शायद यही सोच रहे होंगे। उस रात सभी सांस रोके बैठे थे, गंभीर और कोहली ने तीसरे विकेट के लिए 93 गेंदों में 83 रन जोड़े। कोहली के लिए अपने पहले विश्वकप में अच्छी शुरुआत थी और पहले ही मैच में उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ शतकीय पारी भी खेली थी। उस पारी के बाद भी कोहली ने बड़ी पारी नहीं खेली लेकिन छोटी छोटी पारियों से योगदान दे रहे थे। फाइनल में दबाव के बीच कोहली ने 45 गेंदों पर चार चौकों की मदद से 35 रनों की पारी खेली। जब वो आउट हुए तो भारत का स्कोर 21.4 ओवरों में 114/3 था और लक्ष्य अभी भी काफी दूर था, लेकिन शुरुआती झटकों से टीम उबर चुकी थी और आने वाले बल्लेबाजों के लिये मंच तैयार हो चुका था, जिसके बाद गंभीर, धोनी और युवी ने मिलकर भारतीय टीम को लक्ष्य तक पहुंचा दिया। कोहली ने उसके बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि सचिन के आउट होने के बाद उन्हें भी लगा था कि मैच खत्म हो गया है। इस पारी को कोहली युग की शुरुआत कहा जा सकता है। लेखक- प्रशांत कुमार अनुवादक- ऋषिकेश सिंह

Edited by Staff Editor
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