कहावत है कि समय किसी का इंताजर नहीं करता। सिर्फ वनडे क्रिकेट में ही नहीं उम्र सीमा दिक्कत बनती है, बल्कि टेस्ट क्रिकेट में भी उम्र ढलने के साथ खेलना मुश्किल हो जाता है। टेस्ट क्रिकेट कभी-कभी ज्यादा उम्र के खिलाड़ियों के लिए और घातक साबित हुआ है। किसी भी महान क्रिकेटर की बड़ी-बड़ी पारियां हमारे जेहन में सालों तक ताजा रहती हैं, लेकिन समय बीतने के साथ उनके प्रदर्शन में गिरावट आने लगती है।
कई दिग्गज खिलाड़ियों को उम्र बढ़ने के बाद दिक्कत हुई है। आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही क्रिकेटरों पर जो अपने पीक पर तो काफी शानदार रहे, लेकिन समय ढलने के साथ ही उनके प्रदर्शन में गिरावट आती गई।
3 ऐसे महान क्रिकेटर जिन्होंने अनावश्यक रुप से अपने टेस्ट करियर को लंबा खींचा
(नोट- इस पोस्ट का मतलब किसी भी महान क्रिकेटर की क्षमता पर उंगली उठाना नहीं है)
3.वसीम अकरम
वसीम अकरम को कौन भूल सकता है। उनकी स्विंग गेंदबाजी अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों के पसीने छुड़ा देती थी। पाकिस्तान के इस महान तेज गेंदबाज ने 1985 में ऐतिहासिक ईडन गार्डन में अपना डेब्यू किया और 1999 तक 91 टेस्ट मैचों में 383 विकेट लिए, जिसमें उन्होंने 22 बार 5 एक मैच में 5 विकेट लेने का कारनामा किया।
लेकिन समय बीतने के साथ ही उनकी गेंदों का पैनापन कम होता गया और आखिर के 13 टेस्ट मैचों में वो मात्र 31 विकेट ही ले सके। 2002 में वसीम अकरम ने टेस्ट मैचों से संन्यास ले लिया, लेकिन 2003 वर्ल्ड कप तक वो वनडे मैच खेलते रहे।
2. रिकी पोंटिंग
2000 के मध्य तक रिकी पोंटिंग दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक थे। अपने लंबे-लंबे शॉट से वो बड़े-बड़े गेंदबाजों के पसीने छुड़ा देते थे।ऑस्ट्रेलियाई टीम की कप्तानी करते हुए उन्होंने काफी रन बनाए और ऑस्ट्रेलियाई टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, लेकिन समय बीतने के साथ उनके भी हाथ ढीले पड़ते गए।
10 दिसंबर 2010 से लेकर दिसंबर 2012 में अपने संन्यास तक पोंटिंग 18 टेस्ट मैचों में 34.12 की औसत से केवल 1058 रन ही बना सके। उससे पहले उन्होंने 150 मैचों में 54.27 की शानदार औसत से 39 शतक लगाते हुए 12,000 से भी ज्यादा रन बनाए थे, लेकिन दुर्भाग्यवश उनका पुल शॉट जो उनका सबसे मजबूत पक्ष था वही उनकी कमजोरी बन गया।
उन्हीं के साथ खेले दिग्गज खिलाड़ी माइकल क्लार्क ने खुलासा किया था कि अगर पोंटिंग संन्यास ना लेते तो ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ता उन्हें टीम से ड्रॉप भी कर सकते थे।
1.सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर, एक ऐसा नाम जिससे दुनिया का हर क्रिकेट फैंस भली-भांति परिचित है। सचिन ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत 1989 में की थी। वानखेड़े स्टेडियम में जब सचिन ने अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला तो उनकी विदाई के वक्त हर किसी की आंखें नम थीं। यहां तक कि टीम के साथी खिलाड़ियों की भी आंखें नम थीं। हर कोई दुनिया के सबसे बेहतरीन क्रिकेटर के संन्यास से दुखी था।
हालांकि आखिर के कुछ सालों में सचिन का प्रदर्शन उतना खास नहीं रहा, जिसे देखकर महसूस होने लगा कि सचिन के संन्यास का वक्त करीब आ गया है। 2010/11 में दक्षिण अफ्रीका दौरे के दौरान उन्होंने डेल स्टेन को काफी अच्छे से खेला, लेकिन तेंदुलकर अपने आखिरी के 23 टेस्ट मैचों में 32.34 की औसत से 1229 रन ही बना सके। दुनिया में सबसे ज्यादा शतक का रिकॉर्ड बनाने वाले इस बल्लेबाज के बल्ले से इस दौरान एक भी शतक नहीं लगा।
अगर 2011 वर्ल्ड कप के बाद सचिन ने संन्यास ले लिया होता तो शायद 177 मैचों में 56.94 की औसत से 14, 692 रन पर उनके करियर का शानदार अंत होता। सचिन के संन्यास लेने के बाद कहा जाने लगा था कि भारतीय फैंस क्रिकेट देखना कम कर देंगे, लेकिन यहीं से विराट कोहली का उदय हआ। कोहली ने सचिन को अपना आदर्श मानकर उनकी कमी पूरा करने की कोशिश की।