चेन्नई सुपर किंग्स टी -20 क्रिकेट के इतिहास में सबसे शानदार फ्रैंचाइजी में से एक है। जिसने कई आईपीएल और चैंपियंस लीग के फाइनल में पहुंच और खिताब जीत कर हमेशा ही अपने प्रदर्शन को साबित किया है। सिर्फ दो कारण ही टी-20 के इतिहास में चेन्नई सुपर किंग्स की सफलता का राज बता सकते हैं। पहला ड्वेन ब्रावो, सुरेश रैना, फ़ाफ़ डू प्लेसी जैसी मजबूत कोर टीम की उपस्थिति, जो किसी भी स्थिति से अपनी टीम के लिए मैच जीता सकते हैं और दूसरा कारण चेन्नई के फ्रेंचाइजियों के पास एमएस धोनी जैसा कप्तान होना है जो गजब की खेल समझ और सबकी सोच से हटकर फैसले लेकर जीत दिलाने में विश्वास रखता है। इस टी-20 की दिग्गज टीम ने आईपीएल के नये सत्र की शानदार शुरुआत मुंबई इंडियंस और कोलकाता नाइट राइडर्स पर लगातार जीत के साथ की है। हालांकि धोनी के धुरंधरों को तीसरे बेहद नजदीकी मैच में किंग्स-XI पंजाब के हाथों हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन कहते हैं अच्छी से अच्छी टीम में कुछ ना कुछ खामी जरुर होती है। ऐसे ही कुछ कारण हैं जो चेन्नई के आईपीएल 2018 के अभियान को पटरी से उतरवा सकते हैं। आइए नजर डालते हैं ऐसी ही तीन कारणों पर जो कि चेन्नई के आईपीएल 2018 के सफर में रुकावट डाल सकते हैं।
#3 स्पिनर्स पर अत्यधिक निर्भरता
महेंद्र सिंह धोनी स्पिनरों को कप्तानी करना पसंद करते हैं यह बात जगजाहिर है। जब स्पिनरों के लिए फील्ड सेट करने की बात आती है तो धोनी को इसमें महारत हासिल है और साथ ही यह उनकी खेल समझ का ही कमाल है कि वह अनुमान लगा लेते हैं कि बल्लेबाज आगे क्या उम्मीद कर रहा है। संभवतः इसका नजारा सीएसके के आगामी सीजन के लिए अपनी टीम का चयन करते समय दिखता है। हालांकि उनकी टीम में कई मैच विनर स्पिनर शामिल हैं जो अपने दम पर मैच जीता सकते हैं और धोनी की यह पसंद अक्सर अंतिम एकादश में कई स्पिनरों को शामिल कर देखने के रूप में मिलती है। जो कि गंभीर रूप से टीम के संतुलन को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से मार्क वुड और लुंगी एनगिडी जैसे केवल दो विशेषज्ञ विदेशी तेज गेंदबाजों को टीम में रखकर। हालांकि ताहिर पहले दो मैचों में ( दो मैच में 1 विकेट) पूरी तरह से अपना रंग नहीं दिखा पाये हैं, लेकिन धोनी ने हरभजन को बेहद कम उपयोग में लिया है, इस ऑफ स्पिनर को शुरुआती दो मैचों में 4 ओवरों का अपना कोटा नहीं पूरा करने मिला है। स्पिनरों पर अतिरिक्त निर्भरता सीएसके के सामने घातक साबित हो सकती है, विशेष रूप से वानखेड़े या चिन्नास्वामी जैसे छोटे मैदानों पर।
#2 डेथ बॉलरों की कमी
सुपर किंग्स ने गुणवत्ता वाले स्पिनरों जैसे इमरान ताहिर, हरभजन सिंह, रविंद्र जडेजा और कर्ण शर्मा के साथ अपनी टीम में शामिल किया है, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें तेज गेंदबाजों की कोटे को बचा कर रखना होगा ताकि वह किसी तरीके से डेथ ओवरों में रनों के गति को कम कर सके। पहले दो मैचों में चेन्नई ने डेथ ओवरों में जमकर रन लुटाए हैं, कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ मैच में इसका उदाहरण देखने को मिला था, चेपॉक स्टेडियम में ब्रावो की गेंदबाजी पर आंद्रे रसेल ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करके टीम के स्कोर को 200 के पार पहुंचा दिया था। हालांकि सुपर किंग्स मैच जीतने में कामयाब रहे जिसके लिए उन्हें सैम बिलिंग्स की तेज बल्लेबाजी के लिए उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए पर चेन्नई को जल्द से जल्द अपनी डेथ गेंदबाजी की पहेली को सुलझाना होगा।
#1 अपने गढ़ चेपॉक में मैच का ना होना
ऊपर दिए गए कारणों के अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीएसके के मैचों का चेपॉक स्टेडियम में ना होना जो चेन्नई के भाग्य में बड़े पैमाने पर अपना रोल निभा सकता है। चेपॉक एक ऐसा ग्राउंड है जिसे सालों से सीएसके ने अपने गढ़ के रूप में बदल लिया है। गृहनगर में मैच होना किसी भी टीम के भविष्य के लिए बेहद मुख्य होता है और जैसा कि अब चेपॉक उनका होम ग्राउंड नहीं है। जिसके लिए सीएसके को अपनी टीम योजनाओं और रणनीतियों में बदलाव करना होगा। साथ ही सबसे अहम रूप से पुणे की खेल परिस्थितियों के अनुसार सामंजस्य बैठना होगा, पुणे को अब इस सीजन के शेष मैचों के लिए चेन्नई का होम ग्राउंड घोषित किया गया है। लेखक- यश मित्तल अनुवादक- सौम्या तिवारी