किसी भी क्रिकेटर के लिए टेस्ट मैचों में अपने देश का नेतृत्व करना एक विशेष पल होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जिसे वह जल्दी नहीं भूल पाते और यह मायने नहीं रखता कि वह खिलाड़ी टीम की अगुवाई कैसे करता है। वह अपने करियर में कितने मैच एक कप्तान के तौर पर खत्म करता है और ये सारी बातें जब उसका करियर खत्म होता तो याद रहे या न रहे उसके साथ हमेशा 'कप्तान' होने का टैग लगा रहता है। भारत के 85 साल के इतिहास में कुल 33 टेस्ट कप्तान बने हैं। हालांकि, कुछ को सिर्फ एक मैच में देश का नेतृत्व करने का मौका मिला है। कुछ लोगों के लिये याद रखने का अनुभव था, जबकि कुछ अन्य वापस उन परिणामों को देखना नही चाहेंगे। हम यहाँ इस सूची में वैसे ही खिलाड़ियों पर नज़र डाल रहे हैं, जिन्हें सिर्फ एक मैच के लिये देश की अगुवाई करने मौका मिला:
# 4 पंकज रॉय
बंगाल के इस पूर्व क्रिकेटर को 1954-55 के सीज़न में न्यूजीलैंड के खिलाफ वीनू मांकड के साथ 413 रनों की विश्व रिकॉर्ड साझेदारी के लिये सबसे ज्यादा याद किया जाता है। 1959 के इंग्लैंड दौरे के दूसरे टेस्ट में एक बार उन्हें भारत की कप्तानी करने का सम्मान मिला था । उस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत 168 रन पर आउट हो गया, लेकिन गेंदबाजों ने इंग्लैंड को एक समय 80/6 रनों पर रोक भारत की वापसी करा दी, मगर इसके बाद केन बैरिंगटन और उनके साथियों ने मेजबान टीम को बचाया और अपनी टीम को 58 रन की बढ़त दिलायी। तीसरी पारी में बल्लेबाजी करने के दौरान, भारतीय बल्लेबाजी फिर से विफल रही और 165 रन पर आउट हो गयी। इंग्लैंड ने आसानी से 108 रन बनाकर लक्ष्य प्राप्ति करते हुए आठ विकेट से मैच जीत लिया थे। भारत श्रृंखला के बाकी तीन मैच भी में हार गया और 5-0 से श्रृंखला हार गया।
# 3 हेमू अधिकारी
1958/59 सत्र में हेमू अधिकारी ने घर पर वेस्टइंडीज के खिलाफ एक टेस्ट में भारत का नेतृत्व किया। यह एक ऐसा दौरा था जिसमें मेहमान शुरुआत से ही हावी रहे और भारत ने जीत का परिणाम पाने के लिये पांच मैचों की श्रृंखला में चार कप्तानों को बदलने का फैसला किया। उनमें से एक अधिकारी भी रहे थे, जिनका बतौर कप्तान यह एकमात्र टेस्ट ड्रा के परिणाम के साथ समाप्त हो गया था। भारतीय क्रिकेट में उन्होंने अपने संन्यास के बाद एक बड़ा योगदान दिया था, जब उन्होंने 1971 में इंग्लैंड को उसी के घर पर हराते हुए भारत को एक ऐतिहासिक और उसकी इंग्लैंड में पहली टेस्ट श्रृंखला जीत दिलाने का काम किया था। # 2 चंदू बोर्डे नियमित कप्तान मंसूर अली खान पटौदी की अनुपस्थिति में 1967/68 दौरे पर बोर्डे ने एडिलेड ओवल में चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला के पहले मैच में भारत की अगुवाई की जिम्मेदारी ठीक वैसे ही संभाली, जैसे की 2014 के दौरे पर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की अनुपस्थिति में इसी स्थल पर विराट कोहली को कप्तानी की जिम्मेदारी उठानी पड़ी थी। बोर्डे के नेतृत्व में उतरी भारतीय टीम ने खराब प्रदर्शन किया और ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 529 रन बनाकर, भारत को 173 रन पर समेट दिया और फिर दूसरी पारी में 352 रनों पर भारत को समेट कर मैच एक पारी और 4 रन से जीत लिया था। इसके बाद अगले मैच में कप्तान नवाब पटौदी की वापसी हुई मगर भारत के भाग्य में बदलाव नहीं आया। अंततः भारत श्रृंखला 4-0 से हार गया था।
# 1 रवि शास्त्री
भारतीय क्रिकेट टीम के मौजूदा प्रमुख कोच ने भी एक बार भारत का नेतृत्व किया था , वह एक याद रखने वाला मैच बन गया क्योंकि मेजबानो ने 1988 में चेन्नई में वेस्टइंडीज को 255 रनों से हरा दिया था। भारत की ओर से अपना पहला ही मैच खेल रहे लेग स्पिनर नरेंद्र हिरवाणी ने क्रमशः दो पारियों में 61 रन देकर 8 और 75 रन देकर 8 विकेट लेते हुए विपक्षी टीम को खड़े भी होने नही दिया और अपनी टीम को जीत दिलायी। आज तक 136 रनों पर 16 विकेट लेने के उनके आंकड़े किसी भी गेंदबाज़ के पहले टेस्ट मैच में सर्वश्रेष्ठ आंकड़े हैं। इसके बाद रवि शास्त्री को लंबे समय तक रणजी ट्रॉफी में मुंबई का नेतृत्व करने का मौका तो मिला था, लेकिन उन्हें टेस्ट मैच क्रिकेट में दोबारा भारतीय टीम का नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला। लेखक: शंकर नारायण अनुवादक: राहुल पांडे