क्रिकेट प्रशंसकों के लिए वह एक बहुत भावुक क्षण होता है जब कोई महान खिलाड़ी खेल को अलविदा कहता है। लेकिन, यह उन खिलाड़ियों के लिए और भी अधिक भावुक और विशेष मौका बन जाता है, जब वो उसी मैदान पर अपना अंतिम मैच खेलते हैं जहां उन्होंने अपना पहला क्रिकेट मैच खेला रहा हो। यह वैसा ही होता जैसे उनकी आँखों के सामने उनके क्रिकेट जीवन के 15-16 साल का पूरा सफ़र किसी ने रख दिया हो। सभी महान खिलाड़ियों को ऐसी भव्य विदाई नहीं मिलती है जिसके वो हकदार होते हैं। वहीं कुछ क्रिकेटर बहुत भाग्यशाली होते हैं कि अपना आखिरी टेस्ट वही खेलने को मिलता जहाँ से उन्होंने शुरुआत की हो, और क्रिकेट इतिहास में यह अवसर कुछ की खिलाड़ियों को मिला है। यहाँ हम ऐसे ही 4 बड़े नाम वाले खिलाड़ियों पर नज़र डाल रहे जिनके टेस्ट करियर का अंत वहीं हुआ जहाँ शुरुआत हुई:
# 4 ग्रीम स्मिथ (केप टाउन)
टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में किसी भी टीम द्वारा किसी कप्तान के ऊपर लगाये गये सबसे बड़े दांव में से एक था जब अफ्रीका ने ग्रीम स्मिथ को टेस्ट कप्तान नियुक्त किया, मगर आगे चलकर यह दांव बेहद सफल रहा और दक्षिण अफ्रीका के लिए 109 टेस्ट में 53 जीत दिला स्मिथ सबसे ज्यादा टेस्ट मैच जीतने वाले कप्तान बन गए। बल्ले के साथ, उन्होंने 47 के औसत से 9265 रन बनाए। 8 मार्च 2002 को न्यूलैंड्स, केप टाउन में ऑस्ट्रेलियाई टीमों के खिलाफ स्मिथ का कैरियर शुरू हुआ। अपने पहले टेस्ट मैच में, उन्होंने घातक ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजी आक्रमण के सामने 3 और 68 रन बनाए। इसके 15 महीने बाद ही उनके कंधे पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी आई जब उन्हें 23 साल की उम्र में टेस्ट कप्तान बनाया गया। स्मिथ ने कप्तानी का भार सफलतापूर्वक संभाला और अफ्रीकी क्रिकेट को निरंतर आगे ले जाते रहे। अपनी आखिरी श्रृंखला में फॉर्म से बाहर होने के कारण, उन्हें एहसास हो गया कि अब संन्यास लेने का समय आ गया है। स्मिथ ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ केप टाउन में अपने अंतिम टेस्ट के चौथे दिन की शुरुआत से पहले अपने संन्यास की घोषणा की। वह अपनी आखिरी श्रृंखला में 7.5 की औसत से केवल 45 रन ही बना सके थे।
# 3 शेन वॉर्न (सिडनी)
इसमें कोई आश्चर्य की बात नही कि क्यों शेन वॉर्न को 'लेग स्पिन' के भगवान का दर्जा दिया जाता है। विवादों से प्रभावित करियर में उन्होंने बल्लेबाजों को अपनी जादुई लेग-स्पिन द्वारा 145 टेस्ट मैचों में 708 बार आउट किया। 2 जनवरी 1992 को वॉर्न ने प्रतिष्ठित सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर भारत के खिलाफ अपना डेब्यू किया और भारत के खिलाफ कई अन्य मौकों की तरह उनका प्रदर्शन अच्छा नही रहा। वॉर्न ने 45 ओवरों से 1/150 के आंकड़ों के साथ मैच समाप्त किया, जो एक भुला देने वाला आंकड़ा था। उनका चमत्कारी करियर 15 साल बाद इंग्लैंड के खिलाफ जनवरी 2007 में उसी स्थान पर समाप्त भी हुआ, जहाँ से शुरू हुआ था। वॉर्न ने अपनी आखिरी टेस्ट पारी (71) में बल्ले के साथ अपना शीर्ष स्कोर बनाया और दो विकेट लिए। चाहे ‘बॉल ऑफ़ दी सेंचुरी’ नाम से प्रसिद्ध वह गेंद जिस पर उन्होंने माइक गैटिंग का विकेट लिया या फिर 2005 में एंड्रयू स्ट्रॉस का विकेट, वॉर्न ने समय समय पर अपनी चमत्कारों से भरी गेंदबाज़ी से सबको हैरत में डाला।
# 2 जैक्स कैलिस (डरबन)
क्रिकेट इतिहास के महानतम क्रिकेटरों में से एक, जैक्स कैलिस का टेस्ट कैरियर बॉक्सिंग डे टेस्ट 1995 को शुरू हुआ और 2003 को अंत हुआ था। उनके नाम 18 साल के टेस्ट मैच क्रिकेट के करियर 166 टेस्ट,में 13289 रन, 292 विकेट और 45 शतक हैं, और वह सर्वाधिक शतक लगाने की सूची में दूसरे स्थान और टेस्ट रन-बनाने के मामले में तीसरे स्थान पर हैं। कैलिस के करियर की शुरुआत दिसंबर 1995 में किंग्समेड, डर्बन में इंग्लैंड के खिलाफ हुई थी। बारिश से प्रभावित मैच में, कैलिस ने केवल एक रन बनाया और उस टेस्ट में गेंदबाजी भी नहीं की। एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर के रूप में उनका करियर 1999 में पटरी पर लौटा और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। 2013 के बॉक्सिंग डे टेस्ट में उनकी आखिरी पारी डरबन में भारत के खिलाफ आयी थी। कैलिस ने अपने आखिरी टेस्ट की आखिरी पारी में 115 रनों की बेहतरीन पारी खेली। वह एक वास्तविक ऑलराउंडर की पहचान हैं।
# 1 रिकी पॉन्टिंग (पर्थ)
सर डॉन ब्रैडमैन के बाद ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज के रूप में माने जाने वाले, रिकी पॉन्टिंग ने टेस्ट और ओडीआई दोनों में ऑस्ट्रेलियाई टीम का पूरी दुनिया में सफलतापूर्वक नेतृत्व करते हुए वर्चस्व स्थापित करवाया। 168 टेस्ट में पॉन्टिंग ने 51.85 की औसत से 13378 रन बनाये, जिनमे 41 शतक शामिल हैं और वह दूसरे सर्वाधिक रन-स्कोर बनाने वाले खिलाड़ी हैं। तस्मानिया से आने वाले एक युवक ने 1995 में श्रीलंका के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। पर्थ के मैदान (वाका) पर 96 रन बना उन्होंने अपनी क्षमता सभी को दिखा दी। टेस्ट क्रिकेट में इसके बाद उनके अगले कुछ साल कुछ ख़ास नही गये और फिर तीन साल बाद, उनका करियर 1999-00 में पटरी पर लौटा। पर्थ में ऑस्ट्रेलिया बनाम दक्षिण अफ्रीका के एक दिन पहले 29 नवंबर 2012 को, पॉन्टिंग ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की। भले ही बतौर बल्लेबाज उनके लिए उनकी आखिरी सीरिज़ भुला देने वाली रही हो, जहाँ वह 6.4 के औसत से केवल 32 रन बना सके, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनका अंतिम साल का औसत 42 का एक सम्मानजनक औसत रहा जो कि इस खिलाड़ी की क्षमता को बयां करता है। लेखक: अथर्व आप्टे अनुवादक: राहुल पांडे