कभी हार ना मानने का रवैया एक खिलाड़ी को महान बनाता है। क्रिकेट में किसी भी खिलाड़ी की ताकत, चपलता, इच्छाशक्ति और सहनशक्ति का परीक्षण होता है। कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब चोट लगने के बावजूद खिलाड़ी को टीम के लिए खेलना जारी रखना पड़ता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मौके आएं हैं जब खिलाड़ियों ने टीम हित में अपने दर्द को कुछ समय के लिए भुलाकर यादगार प्रदर्शन किया है और टीम के लिए प्रेरणादायक खिलाड़ी बने हैं। क्रिकेट बहादुर लोगों का खेल है, क्रिकेटरों ने समय-समय पर मैदान पर अपना साहसिक प्रदर्शन किया है। तो आइये जानते हैं मैच के दौरान हुई ऐसी चार घटनाओँ के बारे में जब खिलाड़ियों ने चोटिल होने के बावजूद बल्ले या गेंद के साथ टीम के लिए शानदार प्रदर्शन किया है:
जब रॉस टेलर ने चोटिल होने के बावजूद नाबाद 181 रन बनाए
न्यूजीलैंड के रॉस टेलर सबसे अंडररेड खिलाड़ियों में से एक है। टेलर की आक्रमक बल्लेबाजी शैली उनके हाथ और आंख के समन्वय पर निर्भर करती है। उन्होंने अपने पूरे करियर में न्यूजीलैंड के लिए कई मैच जिताऊ पारियां खेली हैं लेकिन इस साल मार्च में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाद 181 की उनकी पारी उनके करियर की सबसे यादगार पारी थी। यह कीवी टीम के लिए बेहद मुकाबला था क्योंकि वे इंग्लैंड के खिलाफ 5 मैचों की श्रृंखला में 2-1 से पिछड़ रहे थे। रॉस टेलर अपने दाहिने पैर में चोट के कारण तीसरे एकदिवसीय मैच में नहीं खेल पाए थे और चौथे वनडे में वह 100 प्रतिशत फिट नहीं थे। लेकिन जब टीम को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, रोस टेलर ने पूरी तरह से फिट ना होने के बावजूद टीम के लिए मैच में ना केवल शिरकत की बल्कि मैच जिताऊ पारी खेली। विशाल 335 रनों का पीछा करते हुए, गुपटिल और मुनरो बिना कोई रन बनाए पवेलियन वापिस परत गए थे। टेलर ने टीम को संभालते हुए शानदार 181 * रन बनाए और टीम को जीत की राह पर ले गए। अपनी पारी में उन्होंने 17 चौके और 6 छक्के लगाए। इसका मतलब यह है कि टेलर ने इस हालत में 77 रन क्रीज़ के एक छोर से दूसरे छोर तक दौड़ कर बनाए जब उनका पैर चोटिल था।
जब अनिल कुंबले ने टूटे जबड़े के साथ गेंदबाजी की
वेस्टइंडीज (2002) के भारत दौरे के चौथे टेस्ट मैच में, 7 के निजी स्कोर पर बल्लेबाजी करते हुए तेज़ गेंदबाज़ मर्व डिलियन की एक गेंद कुंबले के जबड़े पर लगी, जिसके परिणामस्वरूप उनके जबड़े को गंभीर चोट लगी और रक्तस्राव भी हुआ। तीव्र दर्द होने के बावजूद, कुंबले ने 20 मिनट तक बल्लेबाजी करना जारी रखा और पारी की समाप्ति के बाद गेंदबाज़ी करने के लिए भी मैदान पर उतरे। अपने 14 ओवरों के स्पेल में उन्होंने महान बल्लेबाज़ ब्रायन लारा का विकेट लिया। भारत के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला यह गेंदबाज़ दुनिया के महानतम स्पिनरों में से एक हैं। उनकी तेज बुद्धि, बल्लेबाज के दिमाग को पढ़ने और सटीकता ने उन्हें टेस्ट मैचों में 619 विकेट दिलवाए। 'जंबो' के नाम से जाने जाते कुंबले निःसन्देह एक साहसिक खिलाड़ी रहे हैं।
जब ग्रीम स्मिथ ने टूटे हाथ के बावजूद की बल्लेबाज़ी
दक्षिण अफ्रीका के महानतम खिलाड़ियों में से एक, ग्रीम स्मिथ को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में खेले गए टेस्ट मैच को बचाने के लिए टूटे हुए हाथ और चोटिल दाहिनी कोहनी के साथ पारी की शुरुआत करने के लिए मैदान में उतरना पड़ा था। गौरतलब है कि स्मिथ चोटिल होने की वजह से मैदान में ना उतरने का मन बना चुके थे और उन्होंने मैच के 5 वें दिन अपनी किट भी नहीं ली थी। लेकिन जब मैच में सिर्फ 8.3 ओवर शेष थे और दक्षिण अफ्रीका ने 9वें विकेट खो दिए थे, मैच को बचाने के लिए स्मिथ को मैदान में उतरना पड़ा। हाथ और कोहनी में चोट के बावजूद वह क्रीज़ पर डटे रहे। स्मिथ और मखाया एनटिनी संजीदगी से बल्लेबाज़ी करते हुए मैच को ड्रॉ की ओर ले जा रहे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सिर्फ 11 गेंदें शेष रहते मिचेल जॉनसन ने स्मिथ को बोल्ड कर दिया। भले ही दक्षिण अफ्रीका ने वह मैच खो दिया लेकिन अपने जुझारूपन से कप्तान ग्रीम स्मिथ ने कई दिल जीते।
जब युवराज को हुईं खून की उल्टियां लेकिन फिर भी उन्होंने खेली मैच जिताऊ पारी
भारतीय टीम के सबसे उत्कृष्ट ऑलराउंडर्स में से एक, युवराज सिंह का कैंसर जैसी बीमारी के साथ लड़कर मैदान में वापसी करना सचमुच प्रेरणादायक है। विश्वकप 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ ग्रुप मैच से पहले, युवराज सिंह को खून की उल्टियां हो रही थीं और वो कुछ भी नहीं खा पा रहे थे। आराम करने की सलाह मिलने के बावजूद युवराज सिंह ने ना केवल वो मैच खेला बल्कि मैच जिताऊ शतक भी लगाया। 113 रन बनाने के अलावा उन्होंने 2 विकेट भी लिए, जिसके लिए उन्हें 'मैन ऑफ द मैच' चुना गया । स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद इस बहादुर खिलाड़ी ने टीम के लिए हर मैच खेला और दूसरी बार भारत को विश्व कप का ख़िताब जिताने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेखक: स्मित शाह अनुवादक: आशीष कुमार