इन 4 वजहों से हम कह सकते हैं कि पृथ्वी शॉ अगले सचिन तेंदुलकर नहीं हैं

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क़रीब 5 साल पहले हैरिस शील्ड इलाइट डिविज़न टूर्नामेंट में एक 13 साल के बच्चे ने 546 रन की विशाल पारी खेली थी। आज वही लड़का टीम इंडिया के लिए टेस्ट क्रिकेट खेलने लगा है। अपने पहले टेस्ट मैच में ही शतक जमाकर उसने अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं। हम बात कर रहे हैं पृथ्वी शॉ की, जिसकी तुलना आजकल क्रिकेट इतिहास के महानतम बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर से की जाने लगी है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि किसी बल्लेबाज़ की तुलना रिटायर्ड खिलाड़ी से की गई हो।

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जब 1990 के दशक में सचिन का जलवा था तब अकसर उनकी तुलना सर डॉन ब्रैडमैन से की जाती थी। उनको अगला ब्रैडमैन कहा जाता था, लेकिन सचिन ने सभी को ग़लत साबित किया और पहले सचिन तेंदुलकर बने। कोहली की तुलना आज भी सचिन से की जाती है, लेकिन विराट ने साबित किया कि वो बिलकुल अलग हैं। पृथ्वी शॉ और सचिन में कई समानताएं हैं जैसे दोनों का जन्म मुंबई में हुआ, दोनों ही छोटे कद के हैं और दोनों ने ही कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया।

इन सभी समानताओं के बावजूद, कुछ कारण है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि वो अगले सचिन तेंदुलकर नहीं, बल्कि पहले पृथ्वी शॉ हैं।


#1 दोनों खिलाड़ियों का दौर अलग-अलग है

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पृथ्वी ने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ अपने टेस्ट करियर का आग़ाज़ किया, और पहले ही मैच में शतक लगाया है। सचिन ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ डेब्यू किया था, लेकिन पहला शतक इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मैनचेस्टर में बनाया था। दोनों ने ही शतक अपनी किशोरावस्था में बनाया था, लेकिन हालात बिलकुल अलग थे। सचिन ने विदेश में मज़बूत इंग्लिश गेंदबाज़ी अटैक के ख़िलाफ़ शतक लगाया था। वहीं पृथ्वी ने औसत विंडीज़ बॉलिंग अटैक के ख़िलाफ़ सेंचुरी लगाई है। इसका मतलब ये कतर्ई नहीं है कि हम पृथ्वी के शतक को कम आंक रहे हैं। समझने वाली बात ये है कि सचिन के दौर में गेंदबाज़ों का दबदबा था। आज के दौर में क्रिकेट का खेल बल्लेबाज़ों के अनुकूल बन गया है। इसलिए दोनों खिलाड़ियों की तुलना करना सही नहीं है।

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#2 दोनों के खेलने का तरीका अलग है

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सचिन और पृथ्वी दोनों ने ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शुरुआती कामयाबी हासिल की थी लेकिन दोनों के खेलने का तरीका बिलकुल अलग है। सचिन एक आक्रामक बल्लेबाज़ नहीं थे, वो पिच पर जमने में थोड़ा वक़्त लगाते थे। वो हालात को समझकर सही वक़्त पर अटैक करते थे। दूसरी तरफ़ पृथ्वी शॉ शुरुआत से ही अटैक के मूड में रहते हैं। उनके खेलने का तरीका सहवाग से थोड़ा मिलता-जुलता है। वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ अपने पहले टेस्ट मैच में उन्होंने काफ़ी कम गेंद में शतक लगाया था।

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#3 बल्लेबाज़ी का क्रम

किसी भी बल्लेबाज़ के लिए बैटिंग पोज़ीशन उसके करियर में अहम रोल अदा करता है। हमने देखा है कि कई बार बल्लेबाज़ी का क्रम चेंज करने पर खिलाड़ी का करियर पूरी तरह बदल जाता है। सचिन वनडे में ओपनिंग करते थे, लेकिन टेस्ट में नंबर 4 पर बल्लेबाज़ी के लिए आते थे। शॉ हमेशा से ही सलामी बल्लेबाज़ रहे है। दोनों पोज़ीशन पर खेलने में अलग तरह की चुनौती होती है। ओपनर को नई गेंद से खेलना पड़ता है और हालात को समझते हुए लंबी पारी खेलनी होती है। वहीं जब कोई नंबर 4 पर बल्लेबाज़ी करता है तो उसके लिए विकेट को बचाए रखने की चुनौती होती है। ये एक और वजह है कि दोनों की तुलना नहीं की जा सकती।

#4 आख़िरकार ऐसा करना जल्दबाज़ी होगी

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पृथ्वी ने अभी महज़ 14 प्रथम श्रेणी मैच खेले हैं और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी उनका अनुभव कम है। अभी उन्हें लंबी दूरी तय करनी है, उन्हें न सिर्फ़ भारत बल्कि विदेशों में भी अपनी क़ाबिलियत का लोहा मनवाना है। शॉ ने अभी तक वनडे में डेब्यू नहीं किया है, जहां अलग तरह की चुनौती होती हैं। पृथ्वी को अपने पूरे करियर में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना है। इसलिए सचिन से उनकी तुलना करना बेहद जल्दबाज़ी होगी।

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लेखक- ब्रोकन क्रिकेट

अनुवादक- शारिक़ुल होदा

Edited by निशांत द्रविड़
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