जो कामयाबी पृथ्वी शॉ ने अपने पहले टेस्ट मैच में हासिल की है वो हर युवा क्रिकेटर का ख़्वाब होता है। शॉ ने अपने डेब्यू टेस्ट में शानदार शतक लगाया था। जब वो वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ भारतीय पारी की शुरुआत कर रहे थे तो हर भारतीय क्रिकेट फ़ैंस की नज़र उन पर थी। उन्होंने मुंबई की घरेलू सर्किट में शानदार प्रदर्शन किया था। इसी की बदौलत उन्हें इतनी कम उम्र में टेस्ट खेलने का मौका मिला।राजकोट में हुए टेस्ट मैच में वैसा ही हुआ जैसा कि पृथ्वी शॉ चाहते थे। उम्मीद है कि वो अपना बेहतरीन खेल ऐसे ही जारी रखेंगे।
जिस तरह से पृथ्वी ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की है, उस से कई ऐसे बल्लेबाज़ों की यादें ताज़ा हो जाती हैं जिन्होंने इसी तरह अपने करियर का आग़ाज़ किया था, लेकिन वक़्त के साथ उनकी चमक फ़ीकी हो गई। हर क्रिकेटर अपनी शुरुआती कामयाबी को लंबे वक़्त जारी नहीं रख पाता, हर कोई लंबी रेस का घोड़ा बने ये ज़रूरी नहीं है। यहां उन 5 बल्लेबाज़ों को लेकर चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने शॉ की तरह अपने पहले टेस्ट मैच में शतक लगाया था, लेकिन जल्द ही वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से लापता हो गए।
#5 हामिश रदरफ़ोर्ड
स्टीफ़न फ़्लेमिंग के संन्यास लेने के बाद न्यूज़ीलैंड टीम को मज़बूत टॉप ऑर्डर बल्लेबाज़ों की तलाश थी। ब्रैंडन मैक्कुल की विदाई और मार्टिन गुप्टिल के अस्थाई फ़ॉम की का ख़ामियाज़ा कीवी टीम आज भी भुगत रही थी। ऐसे में हामिश रदरफ़ोर्ड से उम्मीद की जा रही थी कि वो न्यूज़ीलैंड टीम में नई जान फूंक देंगे। साल 2013 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ अपने पहले टेस्ट में रदरफ़ोर्ड ने 171 रन की पारी खेली थी। कीवी टीम मैनेजमेंट को लगा कि उन्हें भविष्य का सितारा मिल गया है, लेकिन ख़राब प्रदर्शऩ की वजह से वो अगले 15 टेस्ट के बाद टीम से बाहर हो गए।
क्रिक एडवर्ड्स के लिए भारत के ख़िलाफ़ अपने पहले टेस्ट मैच में शतक लगाना किसी सपने के सच होने जैसा था। 2011 में वो वेस्टइंडीज़ के उभरते हुए सितरे थे, उस वक़्त टीम इंडिया वेस्टइंडीज़ के दौरे पर गई थी। एडवर्ड्स ने हरभजन सिंह, प्रवीण कुमार, ईशांत शर्मा और मुनाफ़ पटेल जैसे शानदार गेंदबाज़ों का सामना करते हुए शतक लगाया। उनके साथ बल्लेबाज़ी करते हुए अनुभवी शिवनारायण चंद्रपॉल ने भी सैंकड़ा जड़ा था।
हांलाकि उसके बाद वैसा नहीं हुआ जैसा कि एडवर्ड्स चाहते थे। वो अगले कुछ टेस्ट मैच में अपनी बल्लेबज़ी को लेकर जद्दोजहद करते हुए दिखे। वेस्टइंडीज़ की टीम उस वक़्त मध्य क्रम के अच्छे बल्लेबाज़ों की तलाश कर रही थी। अगले 16 टेस्ट मैच में एडवर्ड्स ने एक और शतक और 8 अर्धशतक लगया था। लेकिन उसके बाद वेस्टइंडीज़ के चयनकर्ताओं ने उन्हें मौका नहीं दिया। एडवर्ड्स ने साल 2014 में अपना आख़िरी टेस्ट मैच खेला था। अब उन्हें दोबारा मौका मिलना मुश्किल है।
#3 फ़वाद आलम
क्रिकेट टीम के फ़वाद आलम हमेशा से चाहते थे कि वो टॉप ऑर्डर में कामयाबी हासिल करें, लेकिन उनका ख़्वाब कभी पूरा नहीं हो पाया। उनका जन्म एक पूर्व प्रथ्म श्रेणी के क्रिकेटर के घर में हुआ था। क्रिकेट उनके ख़ून में था इसलिए उन्होंने पाकिस्तान की अंडर-19 टीम में भी अपनी जगह बनाई। धीरे-धीरे वो कामायाबी हासिल करते गए और एक दिन उन्हें पाक टेस्ट में जगह मिल गई।
साल 2009 में उन्होंने श्रीलंकाई टीम के ख़िलाफ़ अपने टेस्ट करियर का आग़ाज़ किया था। सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि उन्हें महज़ 3 टेस्ट खेलाकर टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्होंने साल 2009 के बाद एक भी टेस्ट मैच में शिरकत नहीं की है। साल 2015 में उन्होंने बांग्लादेश के ख़िलाफ़ आख़िरी वनडे मैच खेला था। फ़िलहाल फ़वाद आलम की उम्र 33 साल की हो चुकी है, ऐसे में उन्हें दोबारा मौका मिलने की उम्मीद न के बराबर है।
#2 प्रवीण आमरे
देखने को मिलता है जब कोई भारतीय क्रिकेटर विदेश में अपने टेस्ट करियर का आग़ाज़ करता है और वो पहले ही टेस्ट में सेंचुरी लगाता है। हर भारतीय क्रिकेट फ़ैंस इस तरह की कामयाबी के लिए सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को याद करता है, क्योंकि इन दोनों खिलाड़ियों ने इंग्लैंड में ये कारनामा किया था। लेकिन ज़्यातर लोग प्रवीण आमरे को भूल जाते हैं। जब भारतीय टीम साल 1996 में दक्षिण अफ़्रीका के दौरे पर गई थी। तब प्रवीण ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला था।
उस टेस्ट में भारतीय टीम के 38 रन पर 4 विकेट गिर चुके थे। प्रवीण आमरे तब नंबर 6 पर बल्लेबाज़ी करने मैदान पर आए और शानदार शतक लगाया। सचिन के क्रिकेट गुरु रमाकांत अचरेकर ने कहा था कि वो मास्टर ब्लास्टर ले ज़्यादा बेहतर क्रिकेटर बनेंगे। लेकिन आमरे को जल्द ही सीन से बाहर हो गए। आज वो टीम इंडिया के कई टॉप बल्लेबाज़ों को कोचिंग देते हैं। वो दिल्ली डेयरडेविल्स टीम के साथ बतौर सहायक कोच जुड़े हुए हैं।
#1 एस वान ज़िल
कोलपाक नियम की वजह से कई हुनरमंद खिलाड़ियों को दक्षिण अफ़्रीकी टीम में खेलने का मौका नहीं मिल पाया है। इसका ख़ामियाज़ा प्रोटियाज़ टीम को तब भुगतना पड़ा जब उनके चमके सितारे स्टियान वान ज़िल को नियम के कारण राष्ट्रीय टीम से दूर रहना पड़ा। साल 2014 में उन्होंने वेस्टइंडीज़ टीम के ख़िलाफ़ सेंचुरियन के मैदान में अपने टेस्ट करियर का आग़ाज़ किया था और इस मैच में शतक लगाया था। अपने करियर के 12 टेस्ट मैच खेलने के बाद वो साल 2017 में इंग्लिश काउंटी टीम ससेक्स के साथ जुड़ गए थे। पहले अंतरराष्ट्रीय टेस्ट में शतक लगाने के बाद वो वो अगले 11 टेस्ट में 50 रन का आंकड़ा भी पार नहीं कर सके। साल 2016 में स्टियान ने अपना आख़िर टेस्ट मैच खेला था। दक्षिण अफ़्रीकी टीम के साथ कामयाबी न मिलने की वजह से वो इंग्लिश काउंटी में खेलने लगे। अगर वो टेस्ट में अपने अच्छे खेल को जारी रख पाते तो शायद वो आज प्रोटियाज़ टीम की शान होते।
लेखक- सास्थ्री
अनुवादक- शारिक़ुल होदा