पिछले कुछ सालों में भारत में कई शानदार बल्लेबाज़ उभर कर आए हैं, लेकिन हर किसी को टीम इंडिया में शामिल होने का मौक़ा नहीं मिला। ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने घरेलू सर्किट में लगातार बढ़ियां प्रदर्शन किया है लेकिन इसके बावजूद उन्हें बेहद कम अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का सौभाग्य हासिल है, कईयों को तो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का मौक़ा भी नहीं मिल पाया। ऐसा ख़ासकर तब हुआ था जब भारत में ‘फ़ैब 4’ यानी सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली का दौर था। हम यहां उन 5 बल्लेबाज़ों के बारे में चर्चा कर रहे हैं जो ‘सर्वश्रेष्ठ 4’ की वजह से टीम इंडिया में अपना करियर नहीं बना पाए।
#5 वसीम जाफ़र
वसीम जाफ़र सलामी बल्लेबाज़ी करते थे, उन्होंने साल 2000 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया था। जाफ़र ने 8 साल के अंतराल में महज़ 31 टेस्ट मैच ही खेले हैं। उनके योगदान को ज़्यादा तरजीह नहीं दी गई क्योंकि टीम इंडिया में कई अन्य दिग्गज खिलाड़ी भी शामिल थे। उन्होंने इस मुश्किल हालात से निकलने की कई बार कोशिशें कीं, उन्होंने विदेशों में कई शानदार पारियां खेलीं। एंटिगुआ में उन्होंने 212 और न्यूलैंड्स में उन्होंने 116 रन बनाए थे। साल 2007 में उन्होंने इंग्लैंड के ख़िलाफ़ नॉटिंघम के ट्रेंट ब्रिज मैदान में 62 रन की पारी खेली थी, इस मैच में भारत को जीत हासिल हुई थी। हांलाकि जाफ़र का औसत महज़ 34.10 था, लेकिन वो नई गेंद पर लगातार प्रहार करते थे जिससे मध्य क्रम के बल्लेबाज़ों को आसानी होती थी। लेकिन ज़्यादातर मैच में कई बड़े खिलाड़ी जाफ़र से बेहतर प्रदर्शन करते थे इसलिए उनकी पारी की चमक फीकी पड़ जाती थी। यही उनकी नाकामी की वजह बनी, वो साल 2008 के बाद एक भी टेस्ट मैच नहीं खेल पाए। टीम इंडिया से बाहर होने के बावजूद जाफ़र ने घरेलू सर्किट में शानदार प्रदर्शन जारी रखा। आज वो रणजी इतिहास में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं। उन्होंने प्रथम श्रेणी मैच में 17,000 से रन बनाए हैं। भले ही वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ज़्यादा कमाल नहीं दिखा पाए, लेकिन वो घरेलू सर्किट के सुपरस्टार बन गए।
#4 अमोल मज़ुमदार
अमोल मजुमदार रणजी में दूसरे सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि उन्होंने टीम इंडिया के लिए एक भी मैच नहीं खेला है। वो 7 बार रणजी ट्रॉफ़ी के विजेता रहे हैं, वसीम जाफ़र की तरह अमोल मजुमदार भी रणजी ट्रॉफ़ी के महानतम क्रिकेटर हैं। अमोल के बारे में कहा जाता है कि वो दबाव में काफ़ी अच्छा खेल दिखाते थे। ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि वो एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाए। अमोल ने साल 1993/94 में मुंबई टीम की तरफ़ से हरियाणा के ख़िलाफ़ रणजी में डेब्यू किया था और शानदार 260 रन की पारी खेली थी। मजुमदार ने 171 प्रथम श्रेणी मैच खेला था और 48.13 की औसत से 11,167 रन बनाए थे, जिसमें 30 शतक औऱ 60 अर्धशतक शामिल थे। लेकिन भारत के ‘सर्वश्रेष्ठ 4’ की वजह से इनकी टीम इंडिया में जगह नहीं बन पाए और वो एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच में शामिल नहीं हो पाए।
#3 मोहम्मद कैफ़
टीम इंडिया के इतिहास में मोहम्मद कैफ़ को लेकर दो बातें ज़रूर याद की जाती हैं, पहला 2002 में नैटवेस्ट ट्राई सीरीज़ का फ़ाइनल जहां उन्होंने मैच जिताउ पारी खेली थी और इंग्लैंड से जीत छीन ली थी, दूसरा वो युवराज सिंह की साथ फ़ील्डिंग में साझेदारी करते थे। हांलाकि उन्होंने वनडे में अपना बेहतर करियर बनाया लेकिन उन्होंने महज़ 13 टेस्ट मैच खेले हैं वो भी 5 साल के अंतराल में। वो टेस्ट में अपनी गहरी छाप छोड़ने में नाकाम साबित हुए। साल 2006 मोहम्मद कैफ़ के लिए शानदार रहा था। इस वक़्त सचिन तेंदुलकर चोटिल हो गए थे और सौरव गांगुली टीम से बाहर हो गए थे। कैफ़ ने इस दौरान 5 टेस्ट मैच में 317 रन बनाए थे। लेकिन जैसे ही दिग्गज खिलाड़ियों की वापसी हुई, कैफ़ को टीम से बाहर कर दिया गया।
#2 सुब्रमण्यम बद्रीनाथ
एस ब्रद्रीनाथ को तमिलनाडु की रन मशीन कहा जाता है। उनकी तकनीक शानदार थी और वो आईपीएल में अपनी विस्फोटक बल्लेबाज़ी के लिए जाने जाते थे, जहां वो चेन्नई सुपरकिंग्स का हिस्सा थे। उन्होंने टीम इंडिया के लिए कुछ ही मैच खेले हैं। साल 2008 में उन्हें टीम इंडिया के लिए पहला वनडे मैच खेला था, इसी सीरीज़ में विराट कोहली ने भी डेब्यू किया था। अपने पहले वनडे मैच में बद्रीनाथ ने भारत को 3 विकेट से जीत दिलाई थी, लेकिन बड़ा स्कोर न बनाने की वजह से उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। साल 2010 में उन्हें दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में शामिल किया गया था। अपने पहले टेस्ट में उन्होंने 56 रन बनाए थे। लेकिन बाकी पारियों में वो कुछ ख़ास खेल नहीं दिखा पाए थे। बाद में जब कई दिग्गज खिलाड़ियों की टीम में वापसी हुए तो बद्रीनाथ को बाहर कर दिया गया। रणजी में उन्होंने 7850 रन बनाए हैं।
#1 ऋषिकेष कानितकर
ऋषिकेष कानितकर हांलाकि इतने मशहूर खिलाड़ी नहीं रहे हैं, लेकिन उन्हें उस यादगार चौके के लिए याद किया जाता है जो उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ साल 1998 में इंडिपेंडेस कप के फ़ाइनल में लगाया था और टीम इंडिया को जीत दिलाई थी। वो उन बदकिस्मत खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का ज़्यादा मौक़ा नहीं मिला। ख़ासकर वो टेस्ट में अपना करियर नहीं बना सके। कनितकर ने साल 1997 में वनडे में श्रीलंका के ख़िलाफ़ डेब्यू किया था लेकिन उस मैच में उन्हें बल्लेबाज़ी का मौक़ा नहीं मिल सका था। उन्हें ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपने तीसरे मैच में बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिला था जहां उन्होंने अपनी छाप छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी और 57 रन बनाए। हांलाकि इसके बाद वो वनडे में कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाए। साल 1999/2000 में उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट मैच खेलने का मौक़ा मिला जहां भारत को करारी हार का सामना करना पड़ा। मेलबर्न में उन्होंने पहली पारी में 18 रन बनाए थे और दूसरी पारी में 45 रन जोड़े थे। अपने दूसरे टेस्ट मैच में उन्होंने 18 रन ही बनाए थे और इसके बाद उन्हें टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। हांलाकि घरेलू सर्किट में कनितकर का शानदार प्रदर्शन जारी रहा, लेकिन ठीक उसी वक़्त वीवीएस लक्ष्मण शानदार फ़ॉर्म में चल रहे थे ऐसे में कनितकर की वापसी नामुमकिन हो गई। उन्होंने घरेलू सर्किट में 52.26 की औसत से 10,000 से ज़्यादा रन बनाए थे। वो रणजी में 5वें सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। लेखक – साहिल जैन अनुवादक – शारिक़ुल होदा