किसी भी खिलाड़ी के लिए हमेशा करियर के पीक पर रहना आसान नही होता है। जरुरी नही कोई खिलाड़ी हमेशा अच्छे फॉर्म मे ही हो। दुनिया में कई ऐसे सफल खिलाड़ी हुए हैं जिनका प्रदर्शन करियर के अंत तक आते-आते गिर गया। कई खिलाड़ियों के साथ ऐसा हुआ है। आइए आपको बताते हैं उन 5 बल्लेबाजों के बारे में जिनका प्रदर्शन अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर उतना अच्छा नहीं रहा जितना कि शुरुआत में था। 1.एडम गिलक्रिस्ट गिलक्रिस्ट अपने जमाने के धाकड़ बल्लेबाज थे। आज भी जब ऑल टाइम महान खिलाड़ियों की टीम बनती है तो विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर गिलक्रिस्ट का नाम जरुर आता है। उनकी काबिलियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अपने करियर के दौरान उन्हे एक भी टेस्ट मैच से ड्रॉप नही किया गया। अगर दुनिया भर के विकेटकीपरों की बात करें तो गिलक्रिस्ट ने अपने समकालीन खिलाड़ी मार्क बाउचर से लगभग 2300 रन ज्यादा बनाए हैं। अगर हम गिलक्रिस्ट के करियर को दो भागों में बांटें तो वो एकदम अलग नजर आता है। 2005 एशेज सीरीज से पहले गिलक्रिस्ट एकदम अलग खिलाड़ी थे। उनका बल्ला जमकर बोल रहा था। लेकिन 2005 एशेज सीरीज के बाद गिलक्रिस्ट के बल्ले की धार कम हो गई। 2005 एशेज सीरीज से पहले उन्होंने 68 टेस्ट मैचो में 55.65 की औसत से 4500 रन बनाए थे। लेकिन उसके बाद 28 टेस्ट मैचो में गिलक्रिस्ट महज 30.21 की औसत से ही रन बना पाए। इस दौरान वो सिर्फ 2 ही शतक लगा पाए। हालांकि इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ पर्थ टेस्ट में टेस्ट इतिहास का दूसरा सबसे तेज शतक जड़ा। आइए आपको बताते हैं गिलक्रिस्ट के 2005 के पहले और बाद के आंकड़े।
बहुत से लोगों का मानना था कि 2011 वर्ल्ड कप के बाद सचिन तेंदुलकर को संन्यास ले लेना चाहिए था। लेकिन कहना अलग बात और उसे करना अलग बात। ये तब और भी मुश्किल हो जाता है जब कोई बल्लेबाज अपने करियर में 99 शतक लगा चुका हो और शतकों का शतक पूरा करने के लिए उसे महज 1 ही शतक चाहिए हों। 2011 वर्ल्ड कप में तेंदुलकर का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। उन्होंने टूर्नामेंट में 482 रन बनाए। उनसे ज्यादा सिर्फ तिलकरत्ने दिलशान के ही रन थे जिन्होंने 500 रन बनाए। वर्ल्ड कप से कुछ ही महीने पहले तेंदुलकर ने साउथ अफ्रीका में शानदार शतक जड़ा था। टेस्ट और वनडे दोनो ही फॉर्मेट में तेंदुलकर अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। हालांकि इसके बाद तेंदुलकर का प्रदर्शन अचानक एकदम नीचे आ गया। उस समय से लेकर अपने संन्यास के समय तक तेंदुलकर ने 23 टेस्ट मैच खेले। लेकिन हैरानी की बात ये रही कि 39 पारियों में वो एक भी शतक नहीं लगा सके। उनका औसत सहवाग और गंभीर से भी नीचे चला गया। हालांकि इस दौरान उन्होंने अपने शतकों का शतक जरुर पूरा किया।
विव रिचर्ड्स दुनिया के महान क्रिकेटरों में से एक हैं। दुनिया के किसी भी गेंदबाज की धज्जियां उड़ाने में वो सक्षम थे। वो इतनी विस्फोटक बल्लेबाजी करते थे कि गेंदबाज को लाइन लेंथ पर ध्यान देने का मौका ही नहीं मिलता था। रिचर्ड्स ने अपने खेल से क्रिकेटरों की पूरी जेनरेशन को प्रभावित किया। कई खिलाड़ी आज भी उन्हे अपना आइडल मानते हैं। हालांकि करियर के अंतिम पड़ाव पर आकर उनके बल्ले से रन निकलना कम हो गए। दिसंबर 1988 के बाद उनका प्रदर्शन गिरता गया।
विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग दुनिया के महान सलामी बल्लेबाजों में से एक हैं। जब तक वो क्रीज पर रहते थे रन बहते रहते थे। क्रिस गेल के बाद सहवाग बाउंड्री से रन बनाने के मामले में दूसरे नंबर पर हैं। गेल ने 66.15 प्रतिशत रन बाउंड्री से बनाए तो सहवाग ने 63.80 प्रतिशत रन बाउंड्री से बनाए। सहवाग सिंगल-डबल पर विश्वास नही रखते थे सिर्फ चौके-छक्कों की मदद से वो अपनी पारी को आगे बढ़ाते थे। वो शायद दुनिया के अकेले ऐसे बल्लेबाज होंगे जो अपने करियर के पहले तिहरे शतक के मुहाने पर खड़े होकर छक्का लगाने की हिम्मत रखते हों। उन्होंने अपने टेस्ट करियर में एक नहीं बल्कि 2-2 तिहरे शतक जड़े। लेकिन उनका बल्ला भी करियर के अंत में खामोश होने लगा। 2010 से लेकर 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनी आखिरी सीरीज तक सहवाग का बल्ला खामोश ही रहा। इस दौरान 20 टेस्ट मैचो में सहवाग केवल एक ही शतक लगा पाए। उनका औसत महज 28.77 का रह गया।
लेखक- हिमांक भनोत अनुवादक-सावन गुप्ता