लक्ष्य का पीछा करते हुए खेली गई टेस्ट मैचों की 5 बेहतरीन पारियां

YOUNIS

टेस्ट मैचों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें खिलाड़ियों को अपनी गलती सुधारने का दोबारा मौका मिलता है। अगर खिलाड़ियों की आत्मशक्ति मजबूत हो तो पहली पारी में असफल होने के बावजूद वह दूसरी पारी में शानदार वापसी करते हुए जबरदस्त पारी खेलते हैं।

क्रिकेट के लम्बे प्रारूप टेस्ट मैचों में दूसरी पारी का काफी महत्व होता है और खिलाड़ियों को यह मौका मिलता है कि वह मैच पर अपनी छाप छोड़ पाये।

यहां हम वैसी ही 5 जबरदस्त पारियों को देखेंगे जो टेस्ट मैच की दूसरी पारी में खेली गई थी, लेकिन उनके इस शानदार प्रदर्शन के बावजूद कई बार टीम जीत तक नहीं पहुंच पाई। फिर भी वह पारी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गयी।

(इसमें हम सिर्फ़ उन्हीं पारियों का ज़िक्र कर रहे हैं जो रनों का पीछा करते हुए आईं हैं)

यूनिस खान (171* बनाम श्रीलंका)

पाकिस्तान की तरफ से सर्वाधिक रन बनाने वाले इस बल्लेबाज को कम ही मौकों पर वो श्रेय मिला है जिसके वह असली हकदार हैं। फिर भी इस बल्लेबाज ने कई मौकों पर टीम को अपने प्रदर्शन के बूते मुश्किलों से बाहर निकाला है।

ऐसा ही एक मौका था जब श्रीलंका दौरे पर पाकिस्तान की टीम को पालेकेले में जीत के लिए 377 रनों की जरूरत थी। मैच में काफी समय बचा था, इसलिए पाकिस्तान के लिए मैच बचाना काफी मुश्किल था।

लेकिन, यूनिस खान ने उस मौके पर टीम के लिए शानदार पारी खेल उसे जीत तक पहुंचाया। उनके 171 नाबाद रनों की पारी के बदौलत पाकिस्तान ने इस मैच को 7 विकेटों से जीत लिया और यह टेस्ट मैचों में सफल लक्ष्य का पीछा करते हुए पाक टीम का सबसे बड़ा स्कोर भी है। यह एशिया में दूसरा और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को छठा सबसे बड़ा हासिल किया गया लक्ष्य है।

विराट कोहली (141 बनाम ऑस्ट्रेलिया)

KOHLI

विराट कोहली के शानदार करियर का सबसे दुखद समय उस समय आया जब 2014 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के समय एडिलेड टेस्ट में दोनों पारियों में उनके शतक के बावजूद भारतीय टीम 48 रनों से मैच हार गई।

भारत को मैच जीतने के लिए 357 रनों की जरूरत थी और मुरली विजय और विराट कोहली के बीच हुए 157 रनों की साझेदारी की वजह से भारतीय टीम मैच पर अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी थी।

कोहली ने जबरदस्त पारी खेली और उनके हर एक शॉट से पूरा देश झूम रहा था। कोहली अपने तरकश में मौजूद सारे शॉट खेल रहे थे और सभी को लगने लगा था कि भारत लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेगा।

भारतीय टीम लक्ष्य के पास पहुंच ही रही थी तभी कोहली ऑस्ट्रेलिया के स्पिन गेंदबाज नैथन लॉयन की शार्ट गेंद पर आउट हो गए। उनके बाद कोई भारतीय बल्लेबाज पिच पर नहीं टिक पाया और ऑस्ट्रेलिया ने मैच को 48 रनों से जीत लिया।

रिकी पॉन्टिंग (156 बनाम इंग्लैंड)

PONTING

बड़े खिलाड़ी उस समय खड़े होते हैं जब टीम को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जब कोई अन्य खिलाड़ी खेल भी नहीं पाता उस मौके पर यह खिलाड़ी टीम की नैया पार लगता है।

2005 एशेज सीरीज के मैनचेस्टर में हुए टेस्ट मैच में रिकी पॉन्टिंग ने एशेज इतिहास की सबसे बेहतरीन पारियों में से एक खेली।

मेहमान टीम को अंतिम दिन मैच बचने के लिए बल्लेबाजी करते हुए पूरा दिन निकालना था। इंग्लैंड टीम जीत के सपने देख रही थी लेकिन उनके और जीत के बीच ऑस्ट्रेलिया के कप्तान आ गए।

पंटर पिच पर टिके रहे और उन्होंने इंग्लैंड के प्रत्येक गेंदबाजों को विकेट के लिए तरसा दिया। एश्ले जाइल्स, स्टीव हर्मिसन,मैथ्यू होगार्ड, साइमन जोंस औरएंड्र्यू फ्लिंटॉफ के गेंदबाजी आक्रमण को उन्होंने तहस नहस कर दिया।

पॉन्टिंग 156 के निजी स्कोर पर पवेलियन लौट गए और मैच में अभी 4 ओवर बाकी थे लेकिन 11वें क्रम के ग्लेन मैक्ग्रा ने पॉन्टिंग की कोशिश को जाया नहीं होने दिया और ऑस्ट्रेलिया ने मैच बचा लिया।

फॉफ डु प्लेसिस (110* बनाम ऑस्ट्रेलिया)

FAF

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड के मैदान पर दक्षिण अफ्रीका को मैच जीतने के लिए 430 रनों की आवश्यकता थी और 45 रनों पर उसके 4 बल्लेबाज पवेलियन लौट चुके थे। उसके बाद पिच पर पहुंचे, अपना पहला मैच खेल रहे डु प्लेसिस ने डीविलियर्स के साथ मिलकर रन बनाना छोड़कर रक्षात्मक क्रिकेट खेलना मुनासिब समझा।

ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज लगातार आक्रमण कर रहे थे, फॉफ और डीविलियर्स लगातार गेंदों को रोक रहे थे।

2012 के उस दिन टी20 के इन दो बल्लेबाजों ने टेस्ट मैचों के महान बल्लेबाजों की तरह बल्लेबाजी की। डीविलियर्स 220 गेंदों में 33 रन बनाकर आउट हो गए।

लेकिन, डु प्लेसिस पिच पर टिके रहे और 376 गेंदों पर 110 रनों की नाबाद पारी खेली और 8 घंटे बल्लेबाजी कर अपने देश के लिये टेस्ट मैच बचा लिया।

सचिन तेंदुलकर (103* बनाम इंग्लैंड)

SACHIN

भारतीय क्रिकेट प्रशंसक सचिन तेंदुलकर की पूजा करते हैं और हमेशा उनसे उम्मीद करते हैं कि उनका यह महान बल्लेबाज जरूरत के समय टीम के लिए खड़ा रहे। यह एक ऐसा ही मौका था जब इस बल्लेबाज ने सभी खेल प्रेमियों को झूमने का मौका दिया।

मुम्बई में नवंबर 2008 में हुए आतंकी हमले से पूरा देश सदमे में था और इसी हमले की वजह से इंग्लैंड की टीम भारत का दौरा बीच मे छोड़ वापस लौट गई थी। लेकिन, दिसंबर में फिर इंग्लैंड की टीम वापस आयी और चेन्नई में हुए टेस्ट मैच में उसने भारत के सामने जीत के लिए 387 रनों का लक्ष्य रखा।

वीरेंदर सहवाग ने बेखौफ बल्लेबाजी करते हुए 68 गेंदों पर 83 इन बनाकर भारतीय पारी की अच्छी नींव रखी और मेजबान टीम को लगने लगा कि वह मैच में कुछ अनहोनी कर सकते हैं।

सचिन के घरेलू शहर के आंसू रुके भी नहीं थे कि पूरे देश के उम्मीदों का बोझ उठाये पिच पर एक नई उम्मीद के साथ वह उतर चुके थे। उन्होंने शुरुआती आक्रमण को झेला और फिर फ्री होकर खेलने लगे।

ग्रीम स्वान गेंद को टर्न करा रहे थे, एंड्रू फ्लिंटॉफ रिवर्स स्विंग करा रहे थे लेकिन मास्टर ब्लास्टर ने सभी का डट कर सामना किया और कोई भी उन्हें डिगा नहीं पाया।

317 मिनट की बल्लेबाजी और 196 गेंदों का सामना कर सचिन तेंदुलकर ने अपना शतक पूरा किया और टीम इंडिया को जीत दिलाई, इस जीत को सचिन ने मुंबई के लोगों को समर्पित किया था।

लेखक: तान्या रूद्र
अनुवादक: ऋषिकेश