खेल में टीमों को अक्सर एक सुखी परिवार के रूप में चित्रित किया जाता है और यह आम तौर पर टीम को संगठित रखने की एक छवि है जो ज्यादातर टीमें अपनाना पसंद करती हैं ताकि टीम में सकारात्मक माहौल और एनर्जी का असर उनके खेल पर सकारात्मक ही पड़े। हालांकि, टीम में खिलाड़ियों के बीच टकराव भी खेल का हिस्सा है और इस संबंध में भारतीय क्रिकेट टीम कोई अलग नहीं रही है।
एक बार फिर से वापस जाते हैं 1932 में, जब से भारत ने अपनी पहली टेस्ट सीरीज खेली है तभी से टीम में साथियों के बीच झगड़े काफी आम हो गए हैं। कभी कप्तानी को लेकर प्रतिस्पर्धा तो कभी दो खिलाड़ियों के बीच आगे निकलने की बुरी होड़ से तो कभी खिलाड़ियों के रवैये के मुद्दे को लेकर भारतीय क्रिकेट ने कई लड़ाईयां देखी हैं।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह रही कि कुछ प्रतिष्ठित भारतीय क्रिकेटरों में से कुछ में आपसी मनमुटाव के कारण अपने करियर में लंबे समय तक ऐसे विवादों में शामिल रहे हैं। यहां पर नजर डालते हैं ऐसे कुछ 5 सबसे बड़े विवादों पर-
#5 लाला अमरनाथ और विजयनगरम महाराज, 1936
भारत के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक लाला अमरनाथ का 1936 में इंग्लैंड दौरे के दौरान राजा के साथ झगड़ा हुआ और यह संभवतः देश के क्रिकेट इतिहास में पहला बड़ा विवाद था। विजयनगरम के महाराजा जिन्हें विज्जी के नाम से जाना जाता था वह भारत के दूसरे टेस्ट कप्तान थे लेकिन उन्हें किसी भी क्रिकेट की योग्यता के बजाय लॉबिंग की वजह से कप्तानी की जिम्मेदारी मिली थी और फिर 1936 का इंग्लैंड दौरा जल्द ही तमाशे में बदल गया।
अमरनाथ और कई अन्य सीनियर क्रिकेटर उनका सम्मान नहीं करते थे और इस दौरे के दौरान विज्जी ने अमरनाथ से बल्लेबाजी करने के लिए तैयार होने के लिए कहा लेकिन बल्लेबाजी करने के लिए उन्हें नहीं भेजा। चूंकि उनकी ऊंगली चोट में पहले से ही चोट थी इसलिए वह बल्लेबाजी करने में सक्षम नहीं थे और जब बल्लेबाजी करने गये तो वह सस्ते में आउट हो गए। ड्रेसिंग रूम में लौटने के बाद, उन्होंने चिल्लाकर कहा कि वह समझते है कि यहां क्या चल रहा था।
विज्जी ने इसे अपने निजी अपमान के रूप में ले लिया और अमरनाथ को पहले टेस्ट में भारत वापस भेज दिया। जिसके बाद दोनों ने कभी एक-दूसरे से आंख से आंख नहीं मिलायी।#4 वीरेन्द्र सहवाग और महेन्द्र सिंह धोनी
एक टेस्ट क्रिकेट में भारत का सबसे बड़ा सलामी बल्लेबाज था और शायद सबसे महान बल्लेबाज़ों में से एक था, जबकि दूसरा यकीनन भारत के अबतक का सबसे अच्छा कप्तान था और लेकिन दोनों के लिए साथ मिलकर खेलना मुश्किल भरा रहा। यह सब ऑस्ट्रेलिया में 2012 की त्रिकोणीय श्रृंखला के दौरान शुरू हुआ जब धोनी ने तीन शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों में से एक को बारी बारी जिसमें सहवाग, सचिन और गंभीर को विश्राम देने की बात कही और कहा कि उन्हें ऐसा करना होगा क्योंकि वे सभी मैदान में धीमी गति से दौड़ते थे, इसलिए उनका एक साथ खेलना संभव नहीं था।
अगले ही मैच में सहवाग ने शानदार कैच लिया और कहा, "क्या आपने मेरा कैच देखा है? पिछले 10 सालों से हम समान हैं। कुछ भी नहीं बदला है।" धोनी ने निश्चित रूप से एक कट्टर प्रतिस्पर्धा में शामिल होने से इनकार कर दिया लेकिन सहवाग को टीम से बाहर होना पड़ा।#3 राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर
भारत के दो महानतम बल्लेबाजों में एक बहुत ही बदसूरत लड़ाई थी जिस पर हर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक ने उस दिन चर्चा की होगी और इस बारें में तेंदुलकर ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा था। घायल सौरव गांगुली की जगह पाकिस्तान के विरुद्ध पहले टेस्ट के दौरान मुल्तान में राहुल द्रविड़ कप्तान थे और भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे खराब घोषणाओं में से एक था। जिसमें मैच के दूसरे दिन पारी को घोषित किया गया जब तेंदुलकर 194 रन खेल रहे थे।
ऐसा प्रतीत होता है कि द्रविड़ ने तेंदुलकर को पर्याप्त चेतावनियां देने के बाद घोषित किया था, लेकिन बाद में यह कहा गया है कि पारी की घोषणा को वादा अनुसार दो ओवर पहले ही कर दिया गया। इस घटना के दस साल बाद प्रकाशित अपनी आत्मकथा, 'प्लेइंग इट माय वे' में तेंदुलकर ने लिखा, 'राहुल ने कहा कि टीम के हितों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया। यह दर्शााना महत्वपूर्ण था कि हम व्यापार का मतलब और जीतना चाहते थे पर मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ। "
हालांकि तेंदुलकर ने इस बात पर जोर देकर कहा कि वह दोनों दोस्त हैं, पर जिस भावना के साथ उन्होंने एक दशक बाद लिखा था तो इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। पर द्रविड़ ने इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कहा।#2 सुनील गावस्कर और कपिल देव
1971 में अपने करियर की शुरुआत के साथ सुनील गावस्कर भारतीय क्रिकेट का सबसे बड़ा सितारा बन गये और सात साल बाद भारत को अपना अगला बड़ा स्टार मिला जब कपिल देव का आगमन हुआ। हालांकि, इन दोनों सितारों के रिश्ते कुछ सालों बाद तब खराब होने लगे जब पाकिस्तान के एक खराब दौरे के बाद 1983 में गावस्कर की जगह पर कपिल देव को कप्तान बनाया गया, जब भारत के दो सबसे महान क्रिकेटरों के बीच रिश्ते कुछ वर्षों के भीतर बदल गए थे। 1980 के दशक के मध्य में दोनों के बीच कप्तानी का आदान-प्रदान किया गया था और मैदान पर होने वाली घटनाओं में भी कोई सुधार नहीं आया था।
1983 में मद्रास (जो अब चेन्नई के नाम से जाना जाता है) टेस्ट में जब गावस्कर 236 रन पर खेल रहे थे तब कप्तान कपिल देव ने पारी घोषित करने की घोषणा कर दी और दोनों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गये। हालांकि, 1984 में एक और मामला तब सामने आया जब इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में कपिल देव आक्रमक शॉट खेलने के कारण आउट हो गये, वह मैच भारत हार गया और इस वजह से उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया।
देव का मानना था कि गावस्कर ने ऐसा किया है, जबकि उन्होंने अपनी पुस्तक ‘वन डे वन्डर्स’ में लिखा था कि वह चयन समिति की बैठक में भी उपस्थित नहीं थे। आखिरकार, बीसीसीआई अध्यक्ष एनकेपी साल्वे ने दोनों के बीच संघर्ष विराम के लिए एक बैठक बुलाई थी। इस सबके बावजूद गावस्कर और कपिल देव ने मीडिया पर इन बातों को उछालने का आरोप लगाया। हालात स्पष्ट रूप से उतने खराब नहीं थे।#1 सचिन तेंदुलकर और मोहम्मद अजरूद्दीन
जब 1989 में सचिन तेंदुलकर का आगमन हुआ तब मोहम्मद अजहरुद्दीन भारत के (और संभवत: विश्व में एक) सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे, लेकिन उन दोनों को मशहूर होने के बावजूद चीजें 1996 में खराब होने लगीं। 1996 विश्व कप से आश्चर्यजनक रूप से बाहर होने और इंग्लैंड के खराब दौरे के बाद, तेंदुलकर को कप्तान के रूप में अज़हर की जगह ला दिया गया और फिर दोनों के बीच चीजे कभी समान ही नहीं रही।
तेंदुलकर ने पाया कि अजहर बल्लेबाजी करते हुए प्रयास नहीं डाल दिया और संदेह किया कि वह टीम को तोड़ने की कोशिश कर रहे है। आखिरकार, उन्होंने 1998 में अजहर के हाथों अपनी कप्तानी से हाथ धोना पड़ा लेकिन 1999 में विश्वकप से भारत के बाहर होने के बाद उन्हें एक साल बाद फिर से कप्तान बनाया गया। इस बार, तेंदुलकर ने टीम में अज़हर को रहने की अनुमति नहीं दी और यहां तक कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया के कठिन दौरे पर ले जाने से भी इनकार कर दिया।
2000 के शुरूआती दिनों में अजहर भारतीय टीम में वापस आये और सचिन ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट सीरीज से इस्तीफा दे दिया और कहा कि यह कप्तान के रूप में उनकी आखिरी श्रृंखला होगी।
लेखक- सोहम समद्दर
अनुवादक- सौम्या तिवारी