एक टीम जो मैच-फिक्सिंग से झटका खा बैठी थी, एक देश जिसे खिलाड़ियों के कारण शर्मिंदा होना पड़ा था, एक जुनूनी खेल जिसपर लोगों का गुस्सा बहुत बढ़ गया था। इतनी गंभीर परेशानियों के बीच सौरव गांगुली एक आदमी की तरह मैदान में आए और सारे मामलों को अपने सिर पर लेते हुए न सिर्फ टीम में नया जोश जगाया बल्कि जिस तरह हम क्रिकेट देखते थे, वह गर्व वाली भावना भी लौटाई। 'दादा' के नाम से लोकप्रिय गांगुली ने बहुत ही प्रतिभावान खिलाड़ियों की फौज तैयार की, जिन्होंने नम्र व्यक्तियों की छवि से बहार निकलते हुए जूझारू अहम अपनाया और विश्व की टीम से लोहा लेने में कोई घबराहट नहीं दिखाई। भारतीय क्रिकेट टीम को टीम इंडिया कहा जाने लगा और फिर प्रतिष्ठा की यात्रा शुरू हो गई। 'बंगाल टाइगर' ने 44 बरस पूरे कर लिए हैं, हम उन पांच कप्तानी फैसलों पर गौर करेंगे जो 'दादा' ने लिए और उनसे भारतीय क्रिकेट में बदलाव आया : #1 बादलों से ढंके हेडिंग्ले पर टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने का फैसला 2002 में इंग्लैंड दौरे पर तीसरा टेस्ट लीड्स में खेला जाना था। हेडिंग्ले जो अपने बादलों से ढंके रहने और हरी पिच के लिए विश्व में मशहूर है। यह परिस्थिति भारतीय टीम के लिए बिलकुल विपरीत थी। गांगुली ने टॉस जीतकर सबको चौंकते हुए बल्लेबाजी का फैसला किया वो भी उस पिच पर जो तेज गेंदबाजों के लिए बेहद मददगार थी। पहले बल्लेबाजी करने का फैसला इसलिए लिया गया था क्योंकि भारत के पास अनिल कुंबले और हरभजन सिंह के रूप में दो स्पिनर मौजूद थे, गांगुली उन दोनों का चौथे और पांचवे दिन उपयोग करना चाहते थे। यह फैसला मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ क्योंकि भारतीय टीम ने पहली पारी में 628 रन बनाए। इंग्लैंड की टीम कभी भी इस दबाव से उबर नहीं सकी और अनिल कुंबले से आखिरी पारी में 4 विकेट भी चटकाए। भारत ने एक पारी और 46 रन से यह टेस्ट जीता। अनिल कुंबले और हरभजन सिंह की जोड़ी ने पहली पारी में भी तीन विकेट लिए थे। दादा के इस फैसले ने अपने बल्लेबाजी लेने का कारण भी साबित किया। #2 वीरेंदर सहवाग को ओपनर बनाना दिल्ली के धाकड़ बल्लेबाज वीरेंदर सहवाग ने भारत के लिए मध्यक्रम के बल्लेबाज के रूप में डेब्यू किया था और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बेहतरीन 105 रन बनाए थे। हालांकि गांगुली शुरुआत से ही सहवाग को मैच-विजेता खिलाड़ी मानते थे और इसलिए टेस्ट में उन्हें ओपनिंग करने के लिए भेज दिया। कई लोगों का मानना था कि सहवाग की तकनीक टेस्ट मैचों के लिहाज से सही नहीं है, लेकिन सभी बातों और विचारों को दरकिनार करते हुए कप्तान ने बल्लेबाज में विश्वास भरा और भरोसा दिलाया कि वह क्रिकेट के सबसे लंबे प्रारूप में ओपनर के रूप में सफल रह सकते हैं। बाकी इतिहास है, सहवाग ने खेल के सर्वश्रेष्ठ ओपनर्स के रूप में अपने करियर का अंत किया। मानना ही पड़ेगा कि कप्तान का जबर्दस्त स्ट्रोक था यह भी। #3 ईडन गार्डन्स टेस्ट मैच में सचिन तेंदुलकर से गेंदबाजी कराना 2001 में ईडन गार्डन्स के ऐतिहासिक टेस्ट को भारतीय क्रिकेट के इतिहास का सबसे भावनात्मक मैच माना जाता है। इस टेस्ट के लिए वीवीएस लक्ष्मण, हरभजन सिंह और राहुल द्रविड़ के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है, लेकिन एक घटना जो इस टेस्ट को याद करते समय आसानी से दिमाग से फिसल जाती है वो है गांगुली का आखिरी दिन सचिन तेंदुलकर को गेंद थमाना। 161/3 के स्कोर के साथ ऑस्ट्रेलिया की टीम मैच सुरक्षित करने की तरफ बढ़ रही थी। हरभजन एक छोर से लगातार परेशान कर रहे थे और चायकाल के बाद उन्होंने स्टीव वॉ व रिकी पोंटिंग को आउट कर दिया। एक छोर से वेंकटपति राजू प्रभावी साबित नहीं हो रहे थे लिहाजा गांगुली ने सचिन से गेंदबाजी कराने का फैसला किया। सचिन ने एडम गिलक्रिस्ट और मैथ्यू हेडन का महत्वपूर्ण विकेट लिए। दोनों ही बल्लेबाज स्वीप शॉट खेलने गए और एल्बीडब्ल्यू आउट हुए। इसके बाद सचिन ने शेन वॉर्न को भी अपना शिकार बनाया। फिर अन्य विकेट लेना गेंदबाजों के लिए महज औपचारिकता भर बची थी। #4 वन-डे मैचों में राहुल द्रविड़ से विकेटकीपिंग कराना सौरव गांगुली ने बड़ा फैसला लेते हुए वन-डे मैचों में राहुल द्रविड़ को विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी सौंपी। यह फैसला टीम में संतुलन बनाए रखने के लिए लिया गया था। हालांकि द्रविड़ इस जिम्मेदारी के साथ सुखी नहीं थे, लेकिन उन्होंने टीम की खातिर ऐसा करना स्वीकार किया। इससे भारतीय टीम को सीमित ओवेरों के मैच में एक अतिरिक्त बल्लेबाज को शामिल करने की मोहलत मिल गई। इससे भारतीय टीम को बड़े लक्ष्य का पीछा करते समय फायदा हुआ। द्रविड़ की जिम्मेदारी के बारे में पूछने पर गांगुली ने कहा था, 'मैं समझता हूं कि यह जिम्मेदारी उनके लिए कड़ी है, लेकिन हमें समझना होगा कि टीम पहले है। यही कारण है कि मैंने ओपनिंग छोड़कर तीसरे या चौथे क्रम पर बल्लेबाजी करने का फैसला लिया।' #5 भारतीय क्रिकेटर्स की अगली पीढ़ी को संवारना भारतीय क्रिकेट की अगली पीढ़ी को संवारने का श्रेय भी सौरव गांगुली को ही जाता है। युवराज सिंह, जहीर खान, मोहम्मद कैफ, विरेंदर सहवाग और हरभजन सिंह कुछ ऐसे युवा थे जिन्होंने आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठाई और प्रदर्शन करके भारतीय टीम का लंबे समय तक हिस्सा रहे। यह सभी आगामी समय में भारतीय टीम के मैच विजयी खिलाड़ी बने। और यह खिलाड़ी 2011 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य भी बने। इरफान पठान को टीम में शामिल करने की वजह भी गांगुली ही थे। गांगुली के नेतृत्व में पठान अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे। और तो और एमएस धोनी को भी गांगुली की सलाह पर ही टीम इंडिया में शामिल किया गया था। एक कप्तान जिसने टीम को मैच-विजयी खिलाड़ियों का समूह दिया, और एक कप्तान जो सिर्फ जीत के बारे में सोचता था, सौरव गांगुली सभी मायनों में एक लीडर थे।