ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पॉन्टिंग जब तक अपनी टीम की ज़िम्मेदारी संभाली थी वो दौर उनके लिए सर्वणिम काल कहा जाकता है। उनकी कप्तानी के दौरान कंगारू टीम में शेन वॉर्न, ग्लेन मैक्ग्रा और एडम गिलक्रिस्ट जैसे सितारों का विश्व क्रिकेट में दबदबा था। इन तीन शानदार खिलाड़ियों के संन्यास लेने के बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम में कई हुनरमंद खिलाड़ियों ने जगह बनाई लेकिन इनमें कई खिलाड़ी ऐसे भी रहे जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ज़्यादा कमाल नहीं दिखा पाए। हम यहां उन 5 ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिनमें हुनर की कोई कमी नहीं थी लेकिन उनका करियर रिकी पॉन्टिंग की कप्तानी के दौरान ज़्यादा नहीं उभर पाया।
#1 डेविड हसी
माइकल हसी के छोटे भाई डेविड हसी को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का मौक़ा काफ़ी देर से मिला था। साल 2008 में जब वो 31 साल के होने वाले थे तो उन्हें वेस्टइंडीज़ दौरे के लिए कंगारू वनडे टीम में चुना गया था। उस वक़्त तक डेविड ने सिर्फ़ 2 अंतरराष्ट्रीय टी-20 मैच खेला था। जिसमें उन्होंने 50 रन और 1 रन बनाया था। साल 2009 में उन्होंने स्कॉटलैंड के खिलाफ़ एकमात्र शतक बनाया था। साल 2011-12 की त्रिकोणीय सीरीज़ में उनहोंने शानदार प्रदर्शन किया था। उस सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया के अलावा भारत और श्रीलंका भी थे। उन्होंने 11 पारियों में 5 अर्धशतक बनाए थे जिसमें मेलबर्न में भारत के ख़िलाफ़ 30 गेंदों में 61* रन शामिल था। इस टूर्नामेंट में उन्होंने 54.88 की औसत और 101 की स्ट्राइक रेट से रन बनाए थे। डेविड हसी की बढ़ती उम्र उनके करियर के ज़्यादा नहीं चल पाने की वजह बनी। टीम में शामिल होने के लिए कई युवा खिलाड़ी इंतज़ार कर रहे थे, ऐसे में साल 2013 में डेविड को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया। डेविड हसी ने अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में 69 वनडे और 39 टी-20 मैच खेले हैं।
#2 स्टुअर्ट क्लार्क
स्टुअर्ट क्लार्क एक मीडियम पेस गेंदबाज़ थे जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम में अपनी जगह पक्की करने की पूरी कोशिश की थी, वो भी तब जब टीम में ग्लेन मैक्ग्रा, ब्रेट ली और जेसन गिलिस्पी जैसे धाकड़ गेंदबाज़ शामिल थे। स्टुअर्ट को कंगारू टीम में कई मौक़े मिले थे। साल 2006 में जब जेसन गिलिस्पी को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था उस वक़्त स्टुअर्ट को मौक़ा दिया गया था। उसी साल साउथ अफ़्रीका दौरे के लिए स्टुअर्ट को टीम में शामिल किया गया था, जहां उन्होंने अपने ज़बरदस्त प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया। साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ सीरीज़ में उन्होंने 15.85 की औसत से 20 विकेट हासिल किए थे। उनके इसी प्रदर्शन की बदौलत उन्हें मैन ऑफ़ द सीरीज़ के अवॉर्ड से नवाज़ा गया था। उस वक़्त स्टुअर्ट ने ग्लेन मैक्ग्रा की जगह हासिल कर ली थी क्योंकि मैक्ग्रा अपनी बीमार पत्नी का इलाज़ कराने गए थे। स्टुअर्ट का यही शानदार फ़ॉर्म 2006-07 की एशेज़ सीरीज़ में जारी रहा जहां उन्होंने अपनी घातक गेंदबाज़ी से अंग्रेज़ों के पसीने छुड़ा दिए थे। उस सीरीज़ में उन्होंने 17.04 की औसत से 26 विकेट हासिल किए थे। इसके बाद उन्हें भारत के ख़िलाफ़ भी खेलने का मौक़ा मिला और उन्होंने सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण को एक ही सीरीज़ में 2 बार आउट किया था। साल 2008 में वो वेस्टइंडीज़ के दौरे पर भी गए थे, जहां उन्होंने टेस्ट सीरीज़ में 19.31 की औसत से 13 विकेट हासिल किए थे। जमैका टेस्ट में उन्होंने अपने करियर की सबसे बेहतरीन गेंदबाज़ी की थी। उन्होंने 32 रन देकर 5 विकेट हासिल किए थे और इसी टूर्नामेंट में उन्हें मैन ऑफ़ द सीरीज़ के अवॉर्ड से नवाज़ा गया था। स्टुअर्ट क्लार्क ने अपने पूरे अंतरराष्ट्रीय करियर में 24 टेस्ट और 39 वनडे मैच खेले थे। इसके बाद वो अपनी चोट से उबर नहीं पाए और टीम में उनकी वापसी का रास्ता ख़त्म हो गया।
#3 नाथन हॉरिट्ज़
शेन वॉर्न के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई टीम को एक शानदार स्पिन गेंदबाज़ की तलाश थी। यही वजह है कि टीम में नाथन हॉरिट्ज़ को मौक़ा मिला। साल 2004 में उन्होंने मुंबई में टीम इंडिया के ख़िलाफ़ अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी। जब शेन वॉर्न ने संन्यास लिया उस वक़्त हॉरिट्ज़ को भुला दिया गया। तब तक टेस्ट टीम में ब्रैड हॉज ने अपनी जगह बना ली थी। साल 2008 में जब कंगारू टीम से ब्रैड हॉज और स्टुअर्ट मैक्गिल बाहर हो चुके थे, तब हॉरिट्ज़ ने न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय टीम में शानदार वापसी की थी। हॉरिट्स एक ऐसे गेंदबाज़ थे जो आक्रामक और रक्षात्मक दोनों तरह की गेंदबाज़ी करते थे। साल 2009 की एशेज़ सीरीज़ के दौरान पहले तीन टेस्ट में 10 विकेट हासिल किए थे। वेस्टइंडीज़ ख़िलाफ़ भी उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था। हॉरिट्स के ज़बरदस्त खेल की बदौलत साल 2009 में ऑस्ट्रेलिया ने आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीती थी। लेकिन धीरे-धीरे वो टीम से दूर जाते रहे और करियर को ज़्यादा लंबा नहीं खींच पाए।
#4 डग बॉलिंजर
बाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ डग बॉलिंजर एक बेहतरीन गेंदबाज़ थे लेकिन मिचेल जॉनसन की मौजूदगी में वो ज़्यादा नहीं उभर पाए। साल 2009 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी लेकिन 2011 में वो कंगारू टीम में हर फ़ॉर्मेट से बाहर हो गए थे। हांलाकि साल 2014 में उन्होंने टी-20 अंतराष्ट्रीय मैच में वापसी की थी। उन्होंने अपने अंतराष्ट्रीय करियर में 12 टेस्ट और 39 वनडे मैच खेले हैं। साल 2009 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ पर्थ टेस्ट मैच बॉलिंजर ने एक पारी में 5 विकेट हासिल किए थे। उसके बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सीरीज़ में उन्होंने 12 विकेट हासिल किए थे। जब वो न्यूज़ीलैंड के दौरे पर गए थे तब भी उन्होंने सीरीज़ में 12 विकेट लिए थे। साल 2010 की एशेज़ सीरीज़ के बाद वो टेस्ट टीम में कभी वापस नहीं आ पाए।
#5 बेन हिलफ़ेनहॉस
बेन हिलफ़ेनहॉस एक लंबे कद के तेज़ गेंदबाज़ थे जो दोनों तरह से गेंद को स्विंग कराना जानते थे। अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान वो कई बार चोट का शिकार हुए। उन्हें कंगारू टीम में जगह पक्की करने के कई मौक़े मिले थे जब ग्लेन मैक्ग्रा संन्यास ले चुके थे और ब्रेट ली अपने फ़ॉम से जूझ रहे थे। हिलफ़ेनहॉस इस मौक़े का ज़्यादा फ़ायदा नहीं उठा पाए और टीम से बाहर हो गए। साल 2011-12 में भारत के ख़िलाफ़ घरेलू सीरीज़ में उनका प्रदर्शन शानदार रहा था। 4 टेस्ट मैचों में उन्होंने 17.22 की औसत से 27 विकेट हासिल किए थे। इस सीरीज़ में उन्होंने राहुल द्रविड़ का विकेट 3 बार लिया था। हिलफ़ेनहॉस ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 27 टेस्ट मैच खेले हैं और 99 विकेट हासिल किए हैं। इसके अलावा उन्होंने 25 वनडे में 29 विकेट अपने नाम किए हैं। लेखक- हिमांशु अग्रवाल अनुवादक – शारिक़ुल होदा