सौरव गांगुली की कप्तानी में ज़्यादा आगे न बढ़ पाने वाले क्रिकेटर्स

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में सौरव गांगुली के कप्तानी काल को व्यापक रूप से भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक बड़े परिवर्तन के रूप में जाना जाता है।क्योंकि इस दौरान भारतीय टीम ने विरोधी टीमों के खिलाफ देश और विदेश में जीतने की आदत विकसित हुई। गांगुली ने उस समय कप्तान के रूप में पदभार संभाला था जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग से निकलने के बाद संघर्ष कर रहा था। सचिन तेंदुलकर ने मैच फिक्सिंग प्रकरण के बाद थोड़े समय के लिए जिम्मेदारी संभाली, लेकिन असल में गांगुली के नेतृत्व में, मेन इन ब्लू में वह जोश और महानता हासिल की इच्छा आयी। गांगुली की कप्तानी के दौरान कई युवा खिलाड़ियों ने भारतीय टीम में खुद को स्थापित किया और अंततः आधुनिक युग में महान खिलाड़ी बने। युवराज सिंह, वीरेंदर सहवाग, जहीर खान और हरभजन सिंह ऐसे ही कुछ ही उल्लेखनीय नाम हैं। हालांकि, कुछ ऐसे खिलाड़ी भी रहे थे जो अपनी योग्यता साबित करने के लिए पर्याप्त मौके मिलने के बावजूद दीर्घकालिक आधार पर खुद के लिए एक नाम बनाने में नाकाम रहे। गांगुली एक ऐसे कप्तान थे जिन्हें अपने खिलाड़ियों से बहुत कुछ उम्मीद होती थी और शायद ये खिलाड़ी कप्तान की अपेक्षाओं पर खरे नही उतर सके और अंततः कुछ मैच के बाद अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गए। आइए ऐसे 5 ऐसे खिलाड़ियों पर नजर डालें जिन्होंने गांगुली की कप्तानी के तहत अपना करियर शुरू किया, जिनसे बहुत उम्मीद थी, लेकिन अंततः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सफल करियर बना पाने में नाकाम रहे।

# 5 रितिंदर सिंह सोढ़ी

अंडर -15 विश्वकप जीतने वाली टीम के कप्तान और 2000 अंडर -19 विश्वकप जीतने वाली टीम के उपकप्तान और महत्वपूर्ण सदस्य, जिसमें युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे, वहाँ इस युवा ऑलराउंडर से बहुत उम्मीद की गई थी। पंजाब से आने वाले इस खिलाड़ी को यहां तक ​​कि अगले कपिल देव के रूप में देखे जाने लगा था। गांगुली की कप्तानी के तहत रितिंदर सिंह सोढ़ी ने ज़िम्बाब्वे के खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की और अफ्रीकी खिलाड़ियों के खिलाफ थोड़ी सफलता हासिल की। श्रृंखला के पांचवें और अंतिम एकदिवसीय मैच में अर्धशतक जमाते हुए उन्होंने दो मैचों के बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ 67 रन की पारी खेली। हालांकि, सोढ़ी का बल्ले से जल्द ही ख़राब फॉर्म शुरू हो गया और वह गेंद से समान रूप से अप्रभावी साबित हुए। इस खिलाड़ी से उम्मीद थी कि 50-50 ओवर में भारत के लिए नंबर-6 पर एक दीर्घकालिक खिलाड़ी के रूप में अपनी जगह बना पाएंगे। लेकिन अपने कंधों पर भारी दबाव को कुछ हद तक सोढ़ी संभालने में असमर्थ थे और उन्होंने खुद को भारतीय टीम से बाहर पाया। उन्होंने 18 एकदिवसीय मैचों में 280 रन बनाये और मात्र 5 विकेट लिए।

# 4 संजय बांगर

भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर असफल रहने वाले एक अन्य ऑलराउंडर भारत के वर्तमान बल्लेबाजी कोच संजय बांगड़ थे, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी में रेलवे के लगातार प्रदर्शन से 2001 के अंत में राष्ट्रीय स्तर पर बुलावा पाया था। उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ अपने दूसरे टेस्ट मैच में नाबाद शतक जड़ा और वेस्टइंडीज के खिलाफ 50 ओवर और टेस्ट फॉर्मेट दोनों में सफलता हासिल की। हालांकि, सोढ़ी की तरह बांगर भी अच्छी शुरुआत को बनाये रखने में नाकाम रहे और आगे चलकर रनों के साथ ही विकेट के लिए भी संघर्ष करते नज़र आये, हालाँकि गेंद को स्विंग कराने की उनमें काफ़ी क्षमता थी लेकिन वे उम्मीदों पर खरे नही उतर सके। गांगुली के साथ-साथ भारतीय चयनकर्ताओं का धैर्य 2002 के न्यूज़ीलैंड के भारत दौरे के अंत के साथ ही समाप्त हो गया, और बांगर का अंतर्राष्ट्रीय करियर 12 टेस्ट और 15 वनडे तक ही सीमित रहा।

# 3 दिनेश मोंगिया

2003 के विश्व कप के लिए गांगुली ने वीवीएस लक्ष्मण की जगह दिनेश मोंगिया को तरजीह दी थी, और यह बात अभी भी बहुत से भारतीय प्रशंसकों को खटकती है। यह कोई संदेह नहीं है कि मोंगिया ने 2001 में पुणे में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गांगुली की कप्तानी के तहत अपने पहले मैच की शुरुआत के बाद से उनका काफी समर्थन हासिल किया। मोंगिया ने कुछ अच्छे स्कोर के साथ टीम में बने रहने में कामयाब रहे, लेकिन अच्छी शुरुआत को लगातार बड़े स्कोर में बदलने में नाकाम रहे। हालांकि उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ 159 रनों का एक शानदार शतक जमाया था , जिसके चलते उन्हें राष्ट्रीय टीम में और मौके मिलते रहे। लेकिन यह अभी भी एक आश्चर्य है कि अनियमित प्रदर्शन के बाद भी वह 57 एकदिवसीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक टी-20 खेल सके।

# 2 मुरली कार्तिक

मुरली कार्तिक के अंतरराष्ट्रीय करियर को कुछ हद तक दुर्भाग्यपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि उन्हें अनिल कुंबले और हरभजन सिंह की मौजूदगी के कारण राष्ट्रीय टीम में जगह पाने में मुश्किलें आती रही। हालांकि, सन् 2000 में तेंदुलकर की कप्तानी के दौरान कार्तिक ने अपने टेस्ट मैचों के करियर की शुरुआत की थी। लेकिन गांगुली की कप्तानी में कार्तिक ने उन्हें अपना एकदिवसीय करियर की शुरुआत करने का मौका दिया जहां उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन हरभजन और कुंबले की वरिष्ठ स्पिन जोड़ी को बाहर करने में वह असफल रहे और रेलवे क्रिकेटर हमेशा अन्दर-बाहर होता रहा। कार्तिक ने 2004 के मुंबई टेस्ट में मैन ऑफ द मैच पाने वाले प्रदर्शन के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक यादगार प्रदर्शन किया था। इसके अलावा 2007 में एकदिवसीय मैच में 6/27 के आंकड़े के साथ एक और बेहतरीन प्रदर्शन उनके खाते में गया। मगर 7 साल के करियर के दौरान कार्तिक ने सिर्फ 8 टेस्ट और 37 एकदिवसीय मैच ही खेला। जो यह स्पष्ट करता है कि कार्तिक को राष्ट्रीय टीम में लगातार मौका नहीं मिला और वह हमेशा अपने स्थान को सुरक्षित रखने के लिए लगातार दबाव में खेलते रहे थे।

# 1 पार्थिव पटेल

गांगुली की कप्तानी के तहत काफी समर्थन प्राप्त करने वाले एक अन्य खिलाड़ियों में से एक पार्थिव पटेल ने तब इतिहास बनाया जब उन्होंने 2002 में ट्रेंट ब्रिज में 17 साल और 153 दिनों की उम्र में इंग्लैंड के खिलाफ अपने करियर की शुरुआत की और टेस्ट क्रिकेट के सबसे कम उम्र के विकेटकीपर बने। उन्होंने भारत के 2003 विश्वकप टीम में भी जगह बनाई, हालांकि वह टूर्नामेंट के दौरान किसी भी मैच खेलने में नाकाम रहे, क्योंकि विकेटकीपिंग की भूमिका राहुल द्रविड़ ने निभाई थी। लेकिन उनके चयन मात्र से यह स्पष्ट था कि कप्तान को युवा विकेटकीपर से बहुत उम्मीद थी। भारतीय टेस्ट टीम में नियमित रूप से पहले से ही खेल रहे पार्थिव को कभी-कभी एकदिवसीय मैच खेलने के मौके मिले, जब राहुल द्रविड़ ने अपने विकेटकीपिंग दायित्वों को छोड़ा था। हालांकि वह बल्ले से काफी अच्छे थे, लेकिन उनका विकेट के पीछे प्रदर्शन अच्छा नही था। उनकी त्रुटियां 2003/04 में भारत के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के दौरान बेहद महंगी साबित हुई और वहां एक समय ऐसा आया जब उनकी त्रुटियों को अनदेखा करना मुश्किल हो गया था। और फिर, महेंद्र सिंह धोनी के एक नियमित प्रदर्शन और स्थान पक्के होते ही, देश के अन्य विकेटकीपरों की तरह उनके पास भी कोई मौका नही बचा था। हाल हीं में उन्हें भारत और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ में खेलने का मौका मिला था। लेकिन, उनके विकेट के पीछे प्रदर्शन में खामिया बहुत स्पष्ट नज़र आयीं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे नजरअंदाज करना संभव नही है। फिर भी 32 वर्षीय पार्थिव के पास आपने 25 टेस्ट मैचों और 38 एकदिवसीय और टी 20 अंतराष्ट्रीय मैचों के आकड़ों को बढ़ाने के लिये अभी बहुत समय है। लेखक: प्रांजल मेच अनुवादक: राहुल पांडे

Edited by Staff Editor
Sportskeeda logo
Close menu
WWE
WWE
NBA
NBA
NFL
NFL
MMA
MMA
Tennis
Tennis
NHL
NHL
Golf
Golf
MLB
MLB
Soccer
Soccer
F1
F1
WNBA
WNBA
More
More
bell-icon Manage notifications