क्रिकेट के किसी भी प्रारूप में बल्लेबाज़ का शतक मैच में बड़ा अंतर डाल सकता है। किसी भी बल्लेबाज़ का तिहरे अंक में पहुंचना उसकी प्रतिभा से न्याय माना जाता है। शतक लगाने के बाद बल्लेबाजों में अद्भुत जोश पैदा होता है, उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। वह उसे लम्बे समय तक याद रखना चाहते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश क्रिकेट के इतिहास में कई शतक ऐसे भी लगे जिन्हें उतनी खास तवज्जो नहीं मिली। ये वह पांच शतक हैं, जिन्हें लोगों की तारीफ़ मिलनी चाहिए। लेकिन अन्य कारणों और बेहतरीन बल्लेबाज़ी के आगे इन शतकों को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। आइये इस लेख में जानें उन पांच शतकों के बारे में जिन्हें कोई ख़ास तवज्जो नहीं मिली। चेतेश्वर पुजारा: 113 बनाम वेस्टइंडीज, नवम्बर 2013, मुंबई सचिन तेंदुलकर का ये आखिरी अंतर्राष्ट्रीय मैच था। तकरीबन दो दशक तक भारतीय क्रिकेट की सेवा करने वाले तेंदुलकर ने अपने 200वें टेस्ट मैच में संन्यास की घोषणा की। बीसीसीआई, मीडिया और क्रिकेटिंग वर्ल्ड में सचिन के आखिर मुकाबला का अलग ही माहौल बना हुआ था। भारतीय स्पिनर प्रज्ञान ओझा और आर अश्विन ने इस टेस्ट मैच के पहले ही दिन विंडीज की पूरी टीम को 182 रन पर समेट दिया था। भारतीय सलामी बल्लेबाजों ने अच्छी शुरुआत की, लेकिन उनके बाद मैदान पर पुजारा और तेंदुलकर आये। सचिन उस वक्त सबके लिए केंद्र बिंदु थे और वह अपने फैन्स को निराश नहीं करना चाहते थे। तेंदुलकर ने अपने ट्रेडमार्क शॉट खेले और जल्द ही उन्होंने अपना अर्धशतक पूरा किया। हालांकि तीसरे दिन की सुबह देवनारायण की गेंद पर सैमी ने सचिन का कैच पकड़कर उन्हें शतक से वंचित किया और करोड़ों सपनों को पल भर में बिखेर दिया। उसके बाद विराट कोहली ने बेहतरीन अर्धशतक लगाया। उसके बाद इसी पारी में रोहित शर्मा ने अपने करियर का शतक पूरा किया। जिससे सारा लाइमलाइट दूसरे मुंबईया बल्लेबाज़ की ओर शिफ्ट हो गया। वहीं पुजारा ने अपनी बेहतरीन बल्लेबाज़ी तकनीकी का प्रदर्शन किया। इस दाएं हाथ के बल्लेबाज़ ने नई गेंद और स्पिनरों का जिस तरह से सामना किया वह वाकई काबिलेतारीफ था। पुजारा ने अपने स्ट्रोकप्ले में भी विविधता का परिचय दिया। लेकिन समूचा क्रिकेट जगत सचिन को देख रहा था। सौराष्ट्र के इस बल्लेबाज़ ने पहली गेंद पर पॉइंट में चौका जड़कर अपना आगाज किया था। उसके बाद स्ट्रैट और कवर ड्राइव से खुद मास्टर बल्लेबाज़ साबित किया था। 146 गेंदों में 21 चौके की मदद से पुजारा ने अपना शतक पूरा किया। वह 113 रन बनाकर आउट गये थे। लेकिन टीम को मजबूती दे गये थे। रिडली जैकब: 107 नाबाद बनाम इंग्लैंड, अप्रैल 2004-एंटीगुआ इस मैच में ब्रायन लारा ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में 400 रन की पारी खेली थी। 778 मिनट की बल्लेबाज़ी में लारा ने अपने स्टाइल में तकरीबन सभी क्रिकेटिंग शॉट खेले थे। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ की मास्टर क्लास पारी थी। जिसे दुनिया ने सलाम किया था। हालांकि लारा का अच्छा साथ इस मैच में निचले क्रम में रिडली जैकब ने बिना आउट हुए दिया था। इस विकेटकीपर बल्लेबाज़ ने लारा को तब ज्वाइन किया था, जब वह 234 रन पर खेल रहे थे। उस वक्त टीम का स्कोर 469/5 रन था। लारा अपने चरम पर थे, इंग्लैंड को सिर्फ दूसरे छोर से ही विकेट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन जैकब ने लारा का अच्छा साथ दिया। इंग्लैंड के गेंदबाजों ने रणनीति के हिसाब से जैकब के खिलाफ आक्रामक रवैया अख्तियार किया। लेकिन रिडली ने वही किया जो लारा को चाहिए था। ये साझेदारी 282 रन की हुई। लारा ने रिकॉर्ड बनाया तो उनके नॉनस्ट्राइकर रिडली जैकब ने शतकीय पारी खेली। कैरेबियन कप्तान ने अंग्रेज गेंदबाजों की बखिया उधेड़ते हुए शानदार खेल दिखाया। वहीं रिडली जैकब ने 8 चौकों और 3 छक्कों की मदद से अपना शतक पूरा किया। लेकिन ये टेस्ट मैच अंततः लारा के 400 रन नाबाद के लिए याद किया जाता है। जबकि जैकब ने भी इस मैच में नाबाद 107 रन बनाये थे। तिलकरत्ने दिलशान: 147 बनाम ऑस्ट्रेलिया, दिसम्बर 2012-होबार्ट श्रीलंका ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जब भी गया है, उसे वहां हर बार बुरी हार का सामना करना पड़ा है। 13 टेस्ट मैचों में ऑस्ट्रेलिया ने 10 में जीत और 3 मैच ड्रा रहे हैं। ऐसा बहुत ही कम बार हुआ है, जब श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर दबाव में लिया हो। लेकिन साल 2012 में श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अच्छी क्रिकेट खेली थी। लेकिन फिर भी पीटर सिडल की बढ़िया गेंदबाज़ी और माइक हसी के 115 रन की पारी ने श्रीलंका को बैकफुट पर ला दिया था। इस मैच में ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाज़ी करते हुए पहली पारी में 450 रन बनाये। जिसमें हसी ने 115 रन की पारी खेली। जवाब में मिचेल स्टार्क, सिडल और हिलफेनहास की कहर बरपाती गेंदबाज़ी के आगे श्रीलंका के नियमित अंतराल पर विकेट गिरते रहे। श्रीलंका का स्कोर एक समय 87 रन पर चार विकेट हो गया था। हालाँकि एंजेलो मैथ्यूज ने दिलशान का अच्छा साथ निभाया। दोनों ने मिलकर स्कोर को 200 तक पहुंचाया। लेकिन सिडल ने दोबारा नई गेंद पाते ही फिर कहर बरपाना शुरू किया और 54 रन देकर इस मैच में 5 विकेट हासिल किये। श्रीलंका के गेंदबाजों ने एक बार फिर निराश किया। लेकिन इस मैच में दिलशान ने 273 गेंदों का सामना किया और 147 रन की पारी खेली। दिलशान की इस पारी के बदौलत उनके ऊपर विदेश में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने का टैग हट गया। लेकिन इस पारी को लोग इसलिए नहीं याद रखते हैं क्योंकि मैच ऑस्ट्रेलिया ने जीता था। रिकी पोंटिंग: 104 बनाम भारत, मार्च 2011- अहमदाबाद साल 2011 में रिकी पोंटिंग भारत में विश्वकप को डिफेंड करने आये थे। जिसे ऑस्ट्रेलिया ने 1999 से लेकर 2007 तक अपने पास बरकरार रखा था। पोंटिंग उस समय अपनी बल्लेबाज़ी और कप्तानी के लिए लगातार आलोचना के शिकार थे। लेकिन उनकी टीम किसी तरह से क्वार्टरफाइनल तक पहुंचने में कामयाब हो गयी थी। लेकिन क्वार्टरफाइनल में उनका मुकाबला टूर्नामेंट की फेवरिट भारत से था। लेकिन इस मैच में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने मोर्चे से अगुवाई करते हुए बेहतरीन बल्लेबाज़ी की और शतकीय पारी खेली। वाटसन और हैडिन के जल्द आउट होने की वजह से मध्यक्रम में कप्तान को जल्दी मैदान पर उतरना पड़ा। लेकिन पोंटिंग स्पिन के खिलाफ बेहतरीन बल्लेबाज़ी की। उन्होंने युवराज के 33 गेंदों पर 33, हरभजन के 27 गेंदों में 22 और अश्विन के 9 गेंदों पर 8 रन बनाये थे। पंटर ने इस मैच में 118 गेंदों में 104 रन की पारी खेली थी। जिसकी मदद से ऑस्ट्रेलिया ने किसी तरह से 260 रन का स्कोर बनाया था। जिसे भारत ने युवराज के 57 रन के बदौलत 48 ओवर में ही जीत लिया था। भारत भले ही ये मुकाबला जीता हो लेकिन पोंटिंग ने एक बार फिर ये साबित किया कि वह भारत के खिलाफ हमेशा अच्छा खेले हैं। महेला जयवर्धने: 103 नाबाद बनाम भारत, अप्रैल 2011- मुंबई साल 2011 का विश्वकप हमेशा धोनी के उस मैच जिताऊ पारी के लिए जाना जाएगा, जिसमें विनिंग छक्का जड़कर धोनी ने करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया था। वहीं उसके बाद लोग इस मैच में गंभीर की 97 रनों की पारी को याद करते हैं। लेकिन धोनी की पारी ने सभी के प्रदर्शन को फीका साबित कर दिया था। जहाँ श्रीलंकाई खिलाड़ियों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि वह और कितना रन बनाते तो भारत से मुकाबला जीत पाते। जबकि श्रीलंकाई पारी में महेला जयवर्धने ने शतकीय प्रहार किया था। महेला मैदान पर 16।2 ओवर के बाद उतरे और अंत तक मैदान पर डटे रहे। लेकिन भारतीय गेंदबाजों का प्रदर्शन बेहतरीन रहा और भारत मैच में टॉप पर बना रहा। हालांकि हरभजन की गेंद पर युवराज ने उनका कैच पकड़ने से कुछ ही दूर रह गये थे। हालांकि जयवर्धने अपनी इस पारी में चौकों-छक्कों के बजाय सिंगल और डबल पर ज्यादा फोकस किया। जिसकी वजह से श्रीलंका 300 का आंकड़ा नहीं छु पायी। हालांकि ऊपरी क्रम के बल्लेबाजों के असफल होने के बाद महेला ने शानदार प्रदर्शन करते हुए बढ़िया पारी खेली थी। हालांकि जयवर्धने ने डेथ ओवर में बेहतरीन बल्लेबाज़ी की। उन्होंने अंतिम 10 गेंदों में 22 रन की तेज पारी खेली थी। जिससे श्रीलंका ने अंतिम 5 ओवर में 64 रन बनाते हुए 50 ओवर में 274 का स्कोर बनाया। जयवर्धने ने 117 के स्ट्राइक रेट से 88 गेंदों में 103 रन की पारी खेली। हालांकि धोनी ने इस मैच को ऐतिहासिक बनाते हुए महेला की इस पारी को पूरी तरह फीका कर दिया। लेखक-चैतन्य हेलगेकर, अनुवादक- जितेंद्र तिवारी