क्रिकेट एक एेसा खेल है जहां कप्तान की बहुत अहम भूमिका रहती है। एक गलत निर्णय और काम तमाम। एक नज़र उन 5 एेसे निर्णयों पर जब कप्तानों के गलत फ़ैसले के कारण टीम को मुसीबत का सामना करना पड़ा। 5- एडम गिलक्रिस्ट, इंग्लैंड के विरुद्ध पारी घोषित करना, 2001, हैडिंगले यह घटना औरों से कम महत्त्वपूर्ण है क्योंकि एशेज सीरीज में ऑस्ट्रेलिया पहले ही 3-0 से आगे थी और चौथे दिन गिलक्रिस्ट ने बहुत हिम्मत करके पारी घोषित कर दी। इंग्लैंड की टीम को चौथे दिन के 20 ओवर और पूरा पाँचवा दिन खेलने को मिला था। बारिश का मौसम था पर ऑस्ट्रेलिया हर हाल में जीतना चाहता था। बारिश के कारण चौथे दिन केवल तीन ओवर ही खेल चल पाया। मार्क बुचर के 173* रनों की बदौलत इंग्लैंड 6 विकेट हाथ में रहते मैच जीत गया और ब्रेट ली और जेसन गिलेस्पी के ओवरों में 4-4 रन से ज्यादा पड़े। बुचर को मैन ऑफ़ द मैच का ख़िताब मिला और लोग यह चर्चा करने लगे कि क्या वाक़ई गिलक्रिस्ट को पारी घोषित करनी चाहिए थी? 4-रिची रिचर्डसन, निचले क्रम के बल्लेबाज़ों को 1996 विश्व कप के सेमीफ़ाइनल में ऊपर बल्लेबाजी के लिए भेजना मैच जीतने के लिए वेस्टइंडीज़ को 54 गेंदों में 43 रन चाहिए थे। पर कप्तान रिचर्डसन ने तभी बल्लेबाजी ऑर्डर के साथ एक प्रयोग किया। विश्व कप के सेमीफ़ाइनल में ज़िम्मी एड्म्स और कीथ आर्थटन को छोड़कर उन्होंने गेंदबाज रॉजर हार्पर और ओटिस गिब्सन को मैदान पर उतारा। इस गलत निर्णय के कारण उनकी टीम को 6 रन से हार झेलनी पड़ी और उन्होंने 37 रनों में 8 विकेट गँवा दिए। ग्लेन मैक्ग्रा के बाद शेन वॉर्न ने हार्पर और चंद्रपॉल का विकेट लेकर सबका दिल जीत लिया। उसके बाद रिचर्डसन का छक्का भी विंडीज़ की हार नहीं रोक पाया क्योंकि कोर्टनी वाल्श और कर्टली एम्ब्रोज अपनी विकेट गँवा चुके थे। 3- मोहम्मद अजरुददीन, टर्निंग ट्रैक पर फ़ील्ड करने का निर्णय, विशव कप सेमीफ़ाइनल, 1996 इडेन गार्डन में हो रहे मैच में दर्शकों के ख़राब व्यवहार के कारण श्रीलंका को मुफ़्त में जीत मिल गई थी। भारत हार के सामने था और उसका स्कोर 34.1 ओवरों में 120/8 था। दर्शकों ने माहौल ख़राब करते हुए स्टेडियम में आग लगाना शुरू कर दिया और रेफ़री क्लाइव लॉयड को मैच रद्द करना पड़ा। श्रीलंका के पास मुरलीथरन, जयसूर्या और धर्मसेना जैसे खिलाडी थे। एेसे में भारतीय कप्तान अजरुददीन का फ़ील्डिंग करने का निर्णय लेना बहुत गलत था। तेंदुलकर के आउट होने के बाद, लंकाई गेंदबाजों के दबाव का किसी के पास जवाब नहीं था। तेंदुलकर भी 88 गेंदों में 65 रन बना पाए और अन्य खिलाडी 53 की स्ट्राइक रेट भी पार नहीं कर पाए । इससे यह साबित होता है कि उस पिच पर खेलना कितना मुश्किल था। 2- माइकल क्लार्क , भारत के विरुद्ध पारी घोषित करना, 2013, हैदराबाद उन दिनों क्लार्क का पारा घोषित करना बहुत सटीक साबित हो रहा था। पर उस मैच में ऐसा नहीं हुआ। पहला मैच धोनी के 224 रनों की बदौलत हारने के बाद दूसरा मैच ऑस्ट्रेलिया हैदराबाद में खेल रही थी। क्लार्क ने पहले दिन 85 ओवरों में 237/9 के स्कोर पर पारी घोषित कर दी थी। गेंदबाज़ों के बढिया प्रदर्शन नहीं कर पाने की स्थिति में क्लार्क क्या करते यह सोचने वाली बात है। हुआ भी कुछ एेसा ही। सहवाग के आउट होने के बाद भी मुरली विजय और पुजारा ने दूसरे विकेट के लिए 370 रन की साझेदारी करके ऑस्ट्रेलिया को पारी और 135 रनों से मैच हरा दिया। उसके बाद के अगले दोनों मैच भी ऑस्ट्रेलिया हार गई और सीरीज 4-0 से भारत के नाम हो गई। 1- सौरव गांगुली, विशव कप फ़ाइनल में फ़ील्डिंग करने का निर्णय, 2003 ज़हीर की पहली गेंद पर नो बॉल होने के बाद से ही भारत के लिए फ़ाइनल में कुछ अच्छा नहीं हुआ। टॉस जीतने के बाद, सचिन, द्रविड़ जैसे खिलाडी होने के बाद भी गांगुली ने पहले फ़ील्डिंग करने का निर्णय लिया। ऑस्ट्रेलिया ने रिकी पोंटिंग के 140* रनों की मदद से 359/2 का स्कोर बनाया। यह निर्णय लेने के पीछे गांगुली ने बहुत से बहाने बताए। पर कप्तान होने के नाते, यह कोई ठीक नहीं है। मीडिया ने कहा कि इस फ़ैसले पर गांगुली के जीवन भर खेद रहेगा। भारत ने 40 ओवरों में 234 रन बनाए और 125 रनों से फाइनल हार गई। लेखक: प्रदीप कालामेगम, अनुवादक: सेहल जैन