5 क्रिकेटर जो विश्व कप का मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट पुरस्कार जीतने के हक़दार नहीं थे

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किसी भी खिलाड़ी के लिए अपने देश के लिए विश्व कप जीतना हमेशा विशेष है, चाहे वह कोई भी खेल क्यों न हो। टूर्नामेंट के विजेताओं को सम्मानित करने के अलावा, खेल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान भी किया जाता है। यह क्रिकेट में भी कोई अलग नहीं है क्योंकि आईसीसी विश्व कप के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी को प्लेयर ऑफ़ दी टूर्नामेंट से सम्मानित भी करती है। हालाँकि क्रिकेट विश्व कप पहली बार 1975 में खेला गया था, मगर पहली बार 1992 में इस पुरस्कार से किसी खिलाड़ी को सम्मानित किया गया था। तब से, कम से कम एक खिलाड़ी को आईसीसी विश्व कप और विश्व टी -20 में प्रत्येक बार इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अक्सर खिलाड़ी विजेता टीम से होता है पर कुछ अवसरों पर, ऐसी टीम से भी जो टूर्नामेंट जीतने में नाकाम रही हो। इस पुरस्कार का कारण, टूर्नामेंट भर में एक खिलाड़ी के व्यक्तिगत प्रदर्शन को पुरस्कृत करना है। यद्यपि हर अवसर पर योग्य खिलाड़ियों ने यह पुरस्कार जीता, पर कई अवसरों कुछ अयोग्य नाम भी पुरस्कार जीत ले गये। यहाँ हम ऐसे नामों पर नज़र डाल रहे जो अयोग्य होते हुए भी इस पुरस्कार को जीत ले गये, साथ ही उन नामों पर भी जो इसे जीतने के योग्य थे।


1992 विश्व कप

1992 के विश्व कप में अंडरडोग रहे पाकिस्तान के विश्वकप जीतने की कल्पना भी किसी ने नही की होगी, वो भी तब जब वह टूर्नामेंट में जल्दी ही बाहर होने की कगार पर था। उन्होंने फाइनल में इंग्लैंड को 22 रन से हराकर अपनी पहली आईसीसी चैंपियनशिप जीत ली। पाकिस्तान के लिए जीत के वास्तुकार उनके बाएं हाथ के तेज गेंदबाज वसीम अकरम थे, जो पूरे टूर्नामेंट में एक अलग ही खिलाड़ी नज़र आये। उन्होंने हर एक बल्लेबाज को परेशान किया जिसको उन्होंने टूर्नामेंट में गेंदबाजी की थी। इस तेज गेंदबाज ने 10 मैचों में 18.77 की औसत से 18 विकेट लिये थे, जिसमें 3.7 की इकॉनमी थी और जब भी उनकी टीम को जरूरत पड़ती थी, तब उन्होंने अपनी टीम को महत्वपूर्ण सफलता दिलायी। लेकिन, उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट के लिए अनदेखा किया गया क्योंकि किवी कप्तान मार्टिन क्रो को उनके 9 मैचों में 114 के औसत से बनाये गये 456 रनों के लिए यह पुरस्कार दिया था। विश्व कप में क्रो की उपलब्धि अभूतपूर्व थी, लेकिन वसीम का टूर्नामेंट पर बड़ा असर पड़ा था, क्योंकि उन्होंने अपनी टीम के लिये विश्व कप ख़िताब की जीत तक का सफ़र तय किया था। 1996 विश्व कप 6554c-1507890095-800 1996 के विश्व कप को दो चीजों के लिए जाना जाता था- पहला सचिन तेंदुलकर के विश्व कप के सभी बल्लेबाजी रिकॉर्ड को ध्वस्त करने के चलते तो दूसरा सनथ जयसूर्या के ओडीआई में बल्लेबाजी करने के तरीके को बदल एक नई शुरआत करने के लिये। सचिन तेंदुलकर ने सबसे अधिक रन बनाए, जिसमें 7 पारियों में 523 रन थे, 87 की औसत से और पांच 50+ स्कोर भी शामिल थे। हालांकि भारत सेमीफाइनल में हार गया था, लेकिन एक भी बल्लेबाज सचिन के आकड़ों के आस पास भी न आ पाया था। दूसरी तरफ जयसूर्या थे, जिन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट की बल्लेबाजी में क्रांतिकारी बदलाव लाते हुए फील्डिंग प्रतिबंध के ओवरों के दौरान गेंदबाजों की गेंदों को सीमा रेखा के पार कर रनों का अंबार लगाने का एक नया रुझान शुरू किया। उन्होंने छह पारियों में 37 के औसत 221 रन बना के टूर्नामेंट समाप्त किया और इस दौरान उनका स्ट्राइक रेट 131.5 का रहा जो कि उस दौर के हिसाब से अविश्वसनीय था। साथ ही गेंद के साथ, उनके नाम 4.5 की इकॉनमी और 33 की औसत से सात विकेट भी दर्ज हुए थे। अंत में जयसूर्या को ही टूर्नामेंट के प्लेयर के रूप में घोषित किया गया था, और इसके पीछे टूर्नामेंट में उनकी टीम की सफलता में उनके द्वारा निभाई गयी महत्वपूर्ण भूमिका भी थी। लेकिन एक ऐसा खिलाड़ी भी था, जिसने पूरे टूर्नामेंट में श्रीलंका के जयसूर्या की तुलना में टीम के लिये जीत हासिल करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाई थी और वह थे, अरविंद डी सिल्वा। फाइनल में मैच-जीतने वाले शतक के साथ ही, विश्व कप में चार अर्धशतको की मदद से दाएं हाथ के बल्लेबाज ने 90 की औसत और 108 की स्ट्राइक-रेट से 448 रन बनाए। उन्होंने टूर्नामेंट में चार विकेट भी लिए थे। इन सभी आकड़ों को देखते हुए डी सिल्वा का अपने साथी खिलाड़ी जयसूर्या की जगह इस पुरस्कार के लिये चुना जाना ज्यादा उचित होता। 2007 विश्व कप cb58d-1507890171-800 2003 के विश्व कप के बाद, शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक विश्व कप में सचिन तेंदुलकर के 673 रनों की बराबरी करना किसी भी बल्लेबाज द्वारा संभव होगा और चार साल बाद ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज मैथ्यू हेडन ने लगभग इस रिकॉर्ड पार कर ही लिया था, मगर केवल 14 रनों से चूक गये। 2007 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया ने लगातार तीसरी बार विश्व कप जीत लिया और इसके पीछे मुख्य वास्तुकार हेडन थे, जिन्होंने 10 पारियों में 73 के औसत से 659 रन बनाए और वो भी 101 की स्ट्राइक रेट से और तीन शतकों की सहायता से और एक पचास भी। ये ऐसे नंबर हैं जो किसी भी टूर्नामेंट में बल्लेबाज को टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार प्रदान करेगा। लेकिन, आईसीसी विचार और थे क्योंकि उन्होंने हेडन की टीम के साथी ग्लेन मैकग्रा को प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया था। हेडन की तरह, मैक्ग्रा के लिये भी यह एक बेहतरीन टूर्नामेंट था जिसमें उन्होंने 11 मैचों में 13.73 के औसत से और 4.41 की अर्थव्यवस्था के साथ 26 विकेट लिए थे। यह दोनों के बीच एक करीबी दौड़ थी, लेकिन मैक्ग्रा के तुलना में हेडन का अपनी टीम के लिए योगदान थोड़ा ज्यादा था।2007 विश्व टी 20 f45f7-1507890328-800 सात मैचों की छह पारियों में 91 रन में 15 की औसत और 198 के स्ट्राइक रेट से और 12 विकेट भी 15 की औसत और 6.71 की इकॉनमी से , 2007 के विश्व टी 20 टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ प्लेयर, ये शाहिद अफरीदी के टूर्नामेंट के आकड़े हैं । टूर्नामेंट के अंत में इस पुरस्कार को जीतने के योग्य तीन अन्य खिलाड़ी भी थे। भारत के युवराज सिंह ने पांच पारियों में 148 रनों की औसत से 30 रनों की औसत और 195 की स्ट्राइक रेट से रन बनाए , जिसमें दो अर्धशतक भी शामिल हैं। भले ही संख्या बहुत अच्छी न रही हो, लेकिन भारत की जीत में उनकी पारियों का प्रभाव, टूर्नामेंट में आफरीदी की तुलना में काफी अधिक है। साथ ही युवराज की टीम के साथी आरपी सिंह और गौतम गंभीर पूरे टूर्नामेंट छाए रहे। आर पी ने 12 के एक औसत और 6.33 की इकॉनमी से 6 पारियों में 12 विकेट लिए और गंभीर ने 38 के औसत और 130 की स्ट्राइक दर से छह पारियों में 227 रन बनाए थे और अंत में एक मैच-जीतने वाली 75 रनों की पारी भी फाइनल में खेली थी और इस तरह से देखे तो इन तीन खिलाड़ियों का मैच जीतने में योगदान अफरीदी से पूरे टूर्नामेंट के दौरान रहा।2009 विश्व टी20 b6472-1507890365-800 2009 विश्व ट्वेंटी 20 में पाकिस्तान सभी बाधाओं को पार करते हुए चैंपियंस के रूप में बाहर आया। यूनिस खान की टीम ने फाइनल में आठ विकेट से श्रीलंका को हराया। पाकिस्तान की जीत के पीछे दो मुख्य कारणों में ऑलराउंडर शाहिद अफरीदी और तेज गेंदबाज उमर गुल थे। गुल ने सात मैचों में 13 विकेट लिये और टूर्नामेंट को 12 की औसत और 6.4 की इकॉनमी के साथ सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ के तौर समाप्त किया। दूसरी तरफ, अफरीदी ने सात मैचों में 15 की औसत और 5.32 की इकॉनमी से 12 विकेट लिये। इसके साथ ही, उन्होंने सात पारियों में 35 रनों की औसत से 171 रन बनाए, जिसमें 141 की स्ट्राइक रेट, सेमी फाइनल और फाइनल में दो अर्धशतक भी शामिल रहे। 2007 विश्व टी 20 के विपरीत, आफरीदी इस बार टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ प्लेयर का ख़िताब पाने के हकदार थे, लेकिन श्रीलंका के तिलकरत्ने दिलशान को उनके द्वारा 7 पारियों में 53 की औसत और 145 की स्ट्राइक रेट से बनाये गये 317 रनों के लिये यह पुरस्कार दे दिया गया।

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