5 क्रिकेटर जो विश्व कप का मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट पुरस्कार जीतने के हक़दार नहीं थे

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1996 विश्व कप
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1996 के विश्व कप को दो चीजों के लिए जाना जाता था- पहला सचिन तेंदुलकर के विश्व कप के सभी बल्लेबाजी रिकॉर्ड को ध्वस्त करने के चलते तो दूसरा सनथ जयसूर्या के ओडीआई में बल्लेबाजी करने के तरीके को बदल एक नई शुरआत करने के लिये। सचिन तेंदुलकर ने सबसे अधिक रन बनाए, जिसमें 7 पारियों में 523 रन थे, 87 की औसत से और पांच 50+ स्कोर भी शामिल थे। हालांकि भारत सेमीफाइनल में हार गया था, लेकिन एक भी बल्लेबाज सचिन के आकड़ों के आस पास भी न आ पाया था। दूसरी तरफ जयसूर्या थे, जिन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट की बल्लेबाजी में क्रांतिकारी बदलाव लाते हुए फील्डिंग प्रतिबंध के ओवरों के दौरान गेंदबाजों की गेंदों को सीमा रेखा के पार कर रनों का अंबार लगाने का एक नया रुझान शुरू किया। उन्होंने छह पारियों में 37 के औसत 221 रन बना के टूर्नामेंट समाप्त किया और इस दौरान उनका स्ट्राइक रेट 131.5 का रहा जो कि उस दौर के हिसाब से अविश्वसनीय था। साथ ही गेंद के साथ, उनके नाम 4.5 की इकॉनमी और 33 की औसत से सात विकेट भी दर्ज हुए थे। अंत में जयसूर्या को ही टूर्नामेंट के प्लेयर के रूप में घोषित किया गया था, और इसके पीछे टूर्नामेंट में उनकी टीम की सफलता में उनके द्वारा निभाई गयी महत्वपूर्ण भूमिका भी थी। लेकिन एक ऐसा खिलाड़ी भी था, जिसने पूरे टूर्नामेंट में श्रीलंका के जयसूर्या की तुलना में टीम के लिये जीत हासिल करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाई थी और वह थे, अरविंद डी सिल्वा। फाइनल में मैच-जीतने वाले शतक के साथ ही, विश्व कप में चार अर्धशतको की मदद से दाएं हाथ के बल्लेबाज ने 90 की औसत और 108 की स्ट्राइक-रेट से 448 रन बनाए। उन्होंने टूर्नामेंट में चार विकेट भी लिए थे। इन सभी आकड़ों को देखते हुए डी सिल्वा का अपने साथी खिलाड़ी जयसूर्या की जगह इस पुरस्कार के लिये चुना जाना ज्यादा उचित होता।