एथलीट्स को अपने खेल में जूझारुपन दिखाने के लिए योद्धा के रूप में जाना जाता है। हालांकि अभी तक के इतिहास में कई एथलीट्स बीमारी के साथ जिये, कुछ एथलीट्स को अपनी ख्याति बनाए बिना भी करियर छोड़ना पड़ा। इस मामले में क्रिकेटर्स कोई अपवाद नहीं है। व्यस्त क्रिकेट कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ियों के चोटिल होने की संभावना बढ़ चुकी है और जो मानसिक चुनौतियां उन्हें झेलना पड़ती है, उस पर अभी ध्यान नहीं जाता। हाल ही में खबर आई कि इंग्लैंड व हैम्पशायर के पूर्व बल्लेबाज माइकल कार्बरी को कैंसर है और वह इसका इलाज करा रहे हैं। यह जानकार काफी हैरानी हुई क्योंकि कार्बरी ने हाल ही में एसेक्स के खिलाफ टी20 मैच में हैम्पशायर का प्रतिनिधित्व किया था। कार्बरी को क्रिकेट जगत से काफी समर्थन मिल रहा है और सभी ने उम्मीद जताई है कि वह जल्द ही ठीक हो जाएंगे। अभी जब कार्बरी इस बीमारी से लड़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं तो उन्हें क्रिकेटर्स के साहस से प्रेरणा मिल सकती है, जो पूर्व में इस जानलेवा बीमारी से लड़कर मैदान पर लौटे हैं। आप भी उन 5 क्रिकेटरों के बारे में जानिए जो कैंसर से लड़कर मैदान पर लौटे : #5) माइकल क्लार्क क्रिकेट ज्यादातर धूप में खेला जाता है, लेकिन अगर सूरज ही आपका दुश्मन बन जाए तो आप क्या करेंगे? पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान माइकल क्लार्क मेलनोमा से ग्रस्त थे, जो स्किन कैंसर के नाम से मशहूर है। क्लार्क की नाक और होठ से तीन कैंसर ऑपरेशन करके निकाले गए, जिसकी वजह से वह 2006 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में नहीं खेल पाए थे। न्यू साउथ वेल्स के ट्रेनिंग सत्र के बाद क्लार्क ने उनकी नाक पर एक छोटा अनियमित चीज पाई। उन्होंने बिना देरी किए ऑस्ट्रलियाई क्रिकेटर्स एसोसिएशन से फ्री स्किन स्क्रीनिंग कराने का आग्रह किया। स्कैनस में पाया गया कि उन्हें निचले स्तर का स्किन कैंसर है। स्किन कैंसर के कारण क्लार्क के करियर पर सवाल उठने लगे थे कि वह आगे खेलना जारी रखेंगे या नहीं। मगर ऑपरेशन के बाद उन्होंने बिना देरी किए ऑस्ट्रेलिया की कमान संभाली और टीम को विश्व कप विजेता भी बनाया। #4) एश्ले नोफ्के एश्ले नोफ्के की हिप इंजरी गलत समय पर आई, उनकी एशेज के लिए ऑस्ट्रेलियाई टीम में वापसी की उम्मीदें खत्म हो गई। मगर शायद इससे उनकी जान भी बच गई। वोर्सस्टरशायर के लिए 2008-09 में खेलते समय चोटिल हिप का इलाज कराने के बीच नोफ्के ने अचानक ध्यान दिया कि उन्हें स्किन कैंसर है। उनके दाहिनें घुटने के नीचे ग्रेड थ्री मेलनोमा दिखा जो स्किन कैंसर का सबसे घातक रूप है। तभी उनकी चोट काम आई। कुइंसलैंड के ऑलराउंडर ने तुरंत सर्जरी कराई और मैदान से दूर रहकर सुधार किया। हालांकि नोफ्के ने शेफील्ड शील्ड में सफल वापसी जरुर की, लेकिन वह ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय टीम में वापसी नहीं कर पाए। उन्होंने 2010 में संन्यास लिया। #3) डेव कैलाघन केप प्रांत के युवा क्रिकेटर डेव कैलाघन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना रास्ता बनाने की ओर अग्रसर थे। दक्षिण अफ्रीका के लिए डेब्यू करने के बाद उनकी योजनाओं को तब धक्का लगा जब सितंबर 1991 में उन्हें टेस्टीक्युलर कैंसर का इलाज कराना पड़ा। इसकी वजह से डेव 1992 विश्व कप नहीं खेल सके। बीमारी से लड़ने के बाद कैलाघन ने एक वर्ष बाद मैदान पर वापसी की। उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ अपनी पहली यात्रा पर 143 गेंदों में 169 रन बनाए-जो उस समय का दक्षिण अफ्रीकी रिकॉर्ड था। इसके बाद उन्होंने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी प्रदर्शन करते हुए 32 रन देकर तीन विकेट लिए और दक्षिण अफ्रीका को जीत दिलाई। #2) जयप्रकाश यादव मध्य प्रदेश के तब 21 वर्षीय युवा क्रिकेटर जयप्रकाश यादव भारतीय टीम की नई सनसनी बनने की राह पर थे, लेकिन तभी उन्हें ट्यूमर कैंसर का इलाज कराना पड़ा। उन्हें लगा कि वह अब दोबारा कभी क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे जो उनके लिए सबकुछ था। इलाज के दौरान वह तीन कीमोथेरेपी दौर से गुजरे और इस प्रक्रिया में 15 किलो वजन घटाया, लेकिन कैंसर से उनकी लड़ाई जारी रही। बहादुर दिल वाले जेपी ने मैदान पर वापसी की और मध्य प्रदेश की तरफ से मैच खेला। कैंसर से पूरी तरह ठीक होने के बाद वह रेलवे के महत्वपूर्ण खिलाड़ी बने और रणजी खिताब जीता। उनका भारत के लिए खेलने का सपना भी पूरा हुआ। घरेलू क्रिकेट में निरंतर प्रदर्शन के लिए लोकप्रिय हुए यादव को वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज के लिए चुना गया। उन्होंने 12 वन-डे में भारत का प्रतिनिधित्व किया। #1) युवराज सिंह 2011 में युवराज सिंह को सांस लेने में काफी तकलीफ होती थी, उन्हें काफी दर्द होता था और रात में नींद नहीं आती थी। फिर उन्होंने भारत के लिए विश्व कप जीता। 362 रन और 15 विकेट के साथ वह प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने। क्रिकेट की पिच पर इससे बेहतर उनके लिए कुछ भी नहीं हो सकता था। हालांकि जनता की निगाहों से दूर युवराज सिंह एक ना पहचाने वाली बीमारी से जूझ रहे थे। विश्व कप के कुछ महीनों के बाद उनका लंग कैंसर का इलाज हुआ और बोस्टन में कीमोथेरेपी। युवराज सिंह लड़े और जीते। 10 महीने की जद्दोजहद के बाद युवी कैंसर की बीमारी को मात देकर पूरी तरह ठीक हुए। इस गंभीर बीमारी ने उन्हें पूरी तरफ बदल दिया। "जब मुझे कैंसर हुआ तो मैंने भगवान से पूछा कि मैं ही क्यों? मगर जब मैंने मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब जीता तो नहीं पूछा कि मैं ही क्यों? तो इस तरह की चीजें जिंदगी का हिस्सा है और आपको इसे सहना होता है।" एक महीने के बाद युवराज ने दिलीप ट्रॉफी में 241 गेंदों में 208 रन की पारी खेली और अपने पुराने अंदाज की झलक दिखाई। उसी वर्ष के अंत में उन्होंने भारतीय टीम की जर्सी में वापसी की और न्यूजीलैंड के खिलाफ चेन्नई में टी20 मैच खेला। भारत यह मैच एक रन से हारा, लेकिन एक बड़ा युद्ध युवी जीत चुके थे।