5 क्रिकेटर जिन्हें स्वास्थ्य समस्या की वजह से लेना पड़ा संन्यास

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विपत्ति किसी पूर्व चेतावनी के नहीं आती है। ये अपने साथ किसी भी अमूल्य चीज को ले जा सकती है। गंभीर चोट और खराब स्वास्थ्य के कारण कई बार खिलाड़ियों के करियर पर भारी पड़ जाता है। क्रिकेटर भी ऐसी समस्याओं से अछूते नहीं रहे हैं। जिसकी वजह से कई बार उनका करियर बर्बाद हो चुका है। हाल ही इंग्लैंड के बल्लेबाज़ जेम्स टेलर को गंभीर दिल की बीमारी की वजह से 27 साल की उम्र में संन्यास लेने पड़ा। उनकी बीमारी का नाम एरिथमोजेनिक राईट वेंट्रिकुलर ऐरीथमिया है। उन्होंने इंग्लैंड के लिए 7 टेस्ट और 27 वनडे मैच खेले थे। टेस्ट में वह लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की वजह से इंग्लैंड टीम के नियमित सदस्य थे। हालाँकि उनका करियर इस हार्ट की बीमारी की वजह से खत्म हो गया है। लेकिन उन्हें क्रिकेट जगत से काफी सपोर्ट मिला है। ऐसे कई मौके आये हैं जब क्रिकेटरों का करियर स्वास्थ्य और चोट की गंभीर समस्या से खत्म हो गया है। आइये डालते हैं एक नजर:

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#1 क्रेग कीस्वेस्टर

इंग्लैंड के उभरते हुए विकेटकीपर बल्लेबाज़ क्रेग कीसवेस्टर जो टी-20 वर्ल्डकप 2010 के फाइनल मैच में मैन ऑफ़ द मैच भी बने थे। लेकिन काउंटी क्रिकेट में समरसेट के लिए खेलते हुए इस 27 साल के बल्लेबाज़ को आँख में गेंद लग गयी थी। कीस्वेस्टर को गेंद हेलमेट और ग्रिल के बीच से होते हुए उनकी नाक में लगी। जिसकी वजह से उनकी नाक टूट गयी और आँखों पर भी ज्यादा चोट लग गयी थी। इस चोट से अभी तक वह पूरी तरह नहीं उबरे हैं। अपने सन्यास के समय कीस्वेस्टर ने कहा, "मेरी आंख और नाक में काफी चोट लग चुकी है, जिसकी वजह से अब मैं बतौर खिलाड़ी पहले जैसा नहीं खेल पाउँगा। " टी-20 वर्ल्डकप के फाइनल मैच में कीस्वेस्टर ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 49 गेंदों में 63 रन बनाये थे। इस तरह से इंग्लैंड पहली आईसीसी का ख़िताब जीतने में सफल रहा था। इस तरह एक बेहतरीन करियर का छोटी सी उम्र में अंत हो गया।

#2 डेविड लॉरेंस

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इंग्लैंड के इस गेंदबाज़ को क्रिकेट के मैदान पर सबसे बुरी चोट लगी थी। जिसकी वजह से उनका करियर बर्बाद हो गया था। न्यूज़ीलैंड 1992 में टेस्ट मैच के दौरान डेविड को मैदान पर ये चोट लगी थी। मैच के दौरान लॉरेंस के घुटने के ऊपर की हड्डी टूट गयी और वह बुरी तरह से दर्द से कराहने लगे। उन्हें ऐसा दर्द हो रहा था मानो किसी ने उन्हें पिस्तौल से गोली मार दी हो। इस चोट ने उनके करियर की बली ले ली थी। लॉरेंस ने इंग्लैंड के लिए मात्र 5 टेस्ट मैच खेला था। और उन्हें 29 साल की उम्र में सन्यास लेना था।

#3 बीयू कैसन

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ऑस्ट्रेलिया का ये चाइनामेन गेंदबाज़ अपने जन्म से ही हार्ट की गंभीर बीमारी से ग्रस्त था जिसके चलते इस खिलाड़ी को साल 2011 में ही क्रिकेट को अलविदा कहना पड़ा। कैसन को ये बीमारी पैदा होने के साथ ही था, जिसका ऑपरेशन युवावस्था हुआ था। लेकिन वह बार-बार उभर आ रही थी। कैसन ने ऑस्ट्रेलिया के लिए 2008 में मात्र एक टेस्ट मैच में ही खेला था। ये चाइनामैन गेंदबाज़ गेंद को टर्न कराने में माहिर था। कैसन ने वेस्टइंडीज के बल्लेबाज़ ज़ेवियर मार्शल को आउट करके अपना पहला विकेट लिया था। ऐसा माना जाता था की कैसन ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में दिग्गज ब्रेड होग की जगह लेंगे। हालाँकि साल 2011 में जब उन्हें दोबारा दिल की बीमारी की दिक्कत हुई तो उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया।

#4 ज्योफ एलाट

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साल 1999 के आईसीसी वर्ल्ड कप में ज्योफ ने 20 विकेट लेकर संयुक्त रूप से पहला स्थान हासिल किया था। न्यूज़ीलैंड के इस तेज गेंदबाज़ ने इंग्लैंड की परिस्थितियों में बेहतरीन खेल दिखाया था। हालाँकि बाद में उन्हें पीठ में चोट लग गयी और इस वजह से उन्हें 29 साल की उम्र में ही क्रिकेट को अलविदा कहना पड़ा था। एलाट की बेहतरीन गेंदबाज़ी के चलते न्यूज़ीलैंड वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में पहुँचने में कामयाब हुआ था। लेकिन उनके उभरते हुए करियर पर चोट की वजह से विराम लग गया था। इस प्रतिभावान बाएं हाथ के गेंदबाज़ ने 10 टेस्ट मैच और 31 वनडे मैच खेले थे। साथ ही उन्होंने अपने प्रदर्शन से सबको चौंकाया था।

#5 नारी कांट्रेक्टर

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भारतीय क्रिकेट में ये सबसे बुरा दिन था जब नरीमन जमशेदजी कांट्रेक्टर यानी नारी कांट्रेक्टर को साल 1962 में एक टूर मैच में बारबडोस के खिलाफ बहुत ही बुरी चोट लगी थी। उनके सर में चार्ली ग्रिफिफ्थ की एक गेंद बुरी तरह लगी थी। जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था। कुछ समय के लिए उनका जीवन खतरे में पड़ गया था। कांट्रेक्टर ने दो साल बाद वापसी करने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहे। उन्होंने अपने पहले प्रथम श्रेणी मैच की दोनों पारियों में शतक बनाया थे। कांट्रेक्टर ने भारतीय टीम को 1961-62 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज जिताई थी। जब भी कोई बेहतरीन करियर चोट की वजह से खत्म होता है तो इसका दुःख हर क्रिकेट प्रेमी को होता है। साथ ही ये दर्दनाक होता है। लेखक-पल्लब चटर्जी, अनुवादक-मनोज तिवारी

Edited by Staff Editor
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