क्रिकेट में एक बात हमेशा बोली जाती है “कीर्तिमान टूटने के लिए बनते हैं” और यह बात ज्यादातर मौकों पर सही साबित होती है। क्रिकेट में हर दूसरे दिन कीर्तिमान टूटते और बनते रहते हैं और यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। अगर आंकडों के अनुसार बात करें तो सभी कीर्तिमान टूट सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी कीर्तिमान हैं जिनका टूटना लगभग नामुमकिन ही लगता है। जिसमें एक है जिमी लेकर द्वारा एक टेस्ट में 19 विकेट लेने का कीर्तिमान, जो शायद ही कभी टूट पाये। आज हम आपको इसी तरह के 5 भारतीय घरेलू मैचों के कीर्तिमान के बारे में बताएँगे जो शायद कभी नहीं टूट पाये #5 राजिंदर गोयल- 637 विकेट, रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा विकेट अगर उन दुर्भाग्यपूर्ण खिलाड़ियों की सूची बनाई जाये जो अपने जबरदस्त प्रदर्शन के बाद भी टेस्ट मैच नहीं खेल पायें तो उसमें राजिंदर गोयल का नाम सबसे ऊपर होगा। वह अपने समय के सबसे सबसे प्रतिभाशाली स्पिनर में एक थे लेकिन पहले से मौजूद बड़े स्पिनरों की वजह से उन्हें कभी भी भारतीय एकादश में स्थान नहीं मिल पाया। उसके बाद भी गोयल लगातार रणजी ट्रॉफी खेलते रहे और जब उन्होंने संन्यास लिया तो रणजी इतिहास में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज थे। उन्होंने अपने पूरे रणजी करियर में 637 विकेट हासिल लिए और दूसरे स्थान पर काबिज एस. वेंकटराघवन के खाते में 530 विकेट ही हैं। राजिंदर गोयल के इस कीर्तिमान का टूटना नामुमकिन ही लगता है क्योंकि किसी भी खिलाड़ी के लिए निरंतर अच्छा प्रदर्शन करना काफी मुश्किल काम होता है। इस कीर्तिमान को टूटने में एक और बाधा है, जब कोई खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी में अच्छा प्रदर्शन करता है तो उसे भारतीय टीम में जगह मिल जाती है और उसके बाद वो शायद ही कभी रणजी ट्रॉफी की तरफ ध्यान देता है। इसलिए राजिंदर गोयल का यह कीर्तिमान निकट भविष्य में टूटना नामुनकिन ही लगता है।#2 वीवीएस लक्ष्मण- 1415 रन, रणजी ट्रॉफी सत्र में सबसे ज्यादा रन 2000 के दशक के दौरान भारतीय बल्लेबाजी के स्तंभ रहे कलात्मक बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण अपने रणजी ट्रॉफी के प्रदर्शन के आधार पर ही भारतीय टीम में स्थान पक्का किया था। भारतीय टीम से अपना स्थान खोने के बाद लक्ष्मण ने रणजी ट्रॉफी का रुख किया और 1999/00 में सत्र में 1415 रन बना दिये। इस दौरान उन्होंने 9 मैचों में 8 शतक जमाये और उनका औसत 108 का था। उनके इस प्रदर्शन ने चयनकर्ताओं को उन्हें फिर से टीम में शामिल करने के लिए मजबूर कर दिया। रणजी ट्रॉफी के 2015/16 सत्र में श्रेयस अय्यर ने 1321 और 2016/17 सत्र में प्रियांक पांचाल ने 1310 रन बनाकर लक्ष्मण के कीर्तिमान के पास पहुँचे थे लेकिन दोनों इसे तोड़ने में असफल साबित हुए। अय्यर और पांचाल दोनों के लिए फिर से ऐसा करिश्मा करना काफी मुश्किल काम होगा क्योंकि किसी भी बल्लेबाज के लिए निरंतर रन बनाना काफी मुश्किल कार्य होता है। वर्तमान में रणजी ट्रॉफी के संरचना में काफी बदलाव किया गया है जिसके कारण अब सभी टीमों को पहले के मुकाबले कम मैच खेलने को मिलते हैं। इसके अलावा अब खिलाड़ियों को मैचों के बीच में काफी सफर करना पड़ता है जिससे थकान भी होती है। इन सब को देखते हुए लगता है कि वीवीएस लक्ष्मण का यह कीर्तिमान अगले कुछ समय के लिए सुरक्षित ही है।#3 हैदराबाद- 21 रन, पारी में न्यूनतम टीम स्कोर 2010 में रणजी ट्रॉफी के एक मैच में राजस्थान के खिलाफ खेलते हुए जयपुर में हैदराबाद की टीम 21 रनों पर ऑल-आउट हो गई। राजस्थान की तरफ से अपना पदार्पण मैच खेल रहे युवा दीपक चाहर ने 8 विकेट लेते हुए महमानों की कमर तोड़ दी। लगभग डेढ़ घंटे में ही पूरी हैदराबाद की टीम रणजी इतिहास के न्यूनतम स्कोर पर आउट हो गई। यह अनचाहा कीर्तिमान अब शायद ही टूट पाये क्योंकि बीसीसीआई अब पिच को लेकर काफी सख्त हो गयी है और इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि मैच के दौरान पिच खराब ना हो पाये।#2 भाऊसाहब निम्बालकर- 443 नाबाद, पारी का सर्वाधिक व्यकिगत रणजी ट्रॉफी स्कोर भाऊसाहब विश्व के एकमात्र ऐसे बल्लेबाज हैं जो प्रथम श्रेणी मैचों में 400 से ज्यादा रन के बावजूद टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं बन पायें 1948 में पूना क्लब मैदान में खेले मैच में मेहमान टीम काठियावाड़ पहले दिन 238 पर ऑलआउट हो गई। भाऊसाहब की नाबाद 443 रनों की बदौलत महाराष्ट्र की टीम में 826 रन बना दिया थे। उस समय प्रथम श्रेणी मैचों का सर्वाधिक स्कोर 452 रन डॉन ब्रैडमैन के नाम था और महाराष्ट्र का यह बल्लेबाज उस कीर्तिमान को तोड़ने के बिल्कुल करीब खड़ा था, लेकिन काठियावाड़ की टीम ने बोरियत का हवाला देते हुए मैच खेलने से मना कर दिया और यह कीर्तिमान टूटते-टूटते बच गया। भाऊसाहब निम्बालकर के इस पारी के आज लगभग 70 साल हो गये हैं लेकिन आज तक कोई भी बल्लेबाज इसे नहीं तोड़ पाया और भविष्य में भी इस कीर्तिमान के टूटने के काफी कम आसार मालूम पड़ते हैं।#1 प्रेमंग्सू चटर्जी- प्रथम श्रेणी मैचों की पारी में 10 विकेट अगर किसी कीर्तिमान के टूटने की सबसे कम उम्मीद है तो वह है प्रेमंग्सू चटर्जी द्वारा एक पारी में लिया गए सभी 10 विकेट का कीर्तिमान है। बंगाल के इस माध्यम गति के गेंदबाज ने 1956/57 में असम के खिलाफ यह कारनामा किया था। चटर्जी ने उस पारी में 20 रन देकर सभी 10 विकेट हासिल किये थे और आज भी प्रथम श्रेणी क्रिकेट में किसी भी भारतीय गेंदबाज का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है और भविष्य में भी इसके टूटने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। लगभग 140 वर्षों के टेस्ट क्रिकेट इतिहास में यह कारनामा सिर्फ 2 बार किया गया है जब जिमी लेकर और अनिल कुंबले ने पारी के सभी 10 विकेट हासिल किये थे। इससे पता चलता है कि इस कीर्तिमान को तोड़ना कितना मुश्किल काम है। लेखक- चैतन्य हलगेकर अनुवादक-ऋषिकेश सिंह