चैंपियन्स ट्रॉफी ने एक बार फिर पिछले कुछ सालों से चले आ रहे प्रचलन पर मोहर लगा दी कि टीमें अब बड़े मैचों में भी चेज करना ही पसंद करती हैं। टॉस जीतो और सामने वाली टीम को बल्लेबाजी करने को कहो, यह आज का ट्रेंड बन गया है। बल्लेबाजों के पक्ष में जाने वाले मैचों को ध्यान में रखते हुए अब कोई लक्ष्य बड़ा नहीं लगता और कप्तान अपने दिमाग में लक्ष्य को साधने की कोशिश करते हैं। अब दिन/रात के मैचों में, जिनमें ओस गिरने की संभावना होती है, टॉस जीतने वाली टीम निश्चित तौर पर चेज करना ही पसंद करती हैं। हालांकि, चैंपियन्स ट्रॉफी कुछ और तथ्य सामने लाई। आंकड़ों के मुताबिक, चेज करने को टीमों द्वारा प्राथमिकता जरूर दी जा रही है, लेकिन इसमें कुशलता की कमी देखी गई। कुछ मैच ऐसे थे, जिनमें बड़े लक्ष्यों को शानदार तरीके से चेज किया गया। जैसे कि सबसे पहले मैच में बांग्लादेश के 305 रनों के लक्ष्य को इंग्लैंड ने हासिल किया और श्रीलंका ने भारत के 321 रनों के लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा किया। इनसे इतर ऐसे चौर मौके रहे, जब अच्छी टीमें दबाव के कारण चेज करने में असफल रहीं। इनमें सबसे अहम रहा फाइनल मैच, जिसमें भारत को विराट कोहली जैसे शानदार चेजर्स के होते हुए भी दबाव के आगे घुटने टेकने पड़े। आगे भी, चेजिंग को प्राथमिकता मिलती रहेगी, लेकिन टीमों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस कला में निपुणता आसान नहीं है और गेंदबाजी करने वाली टीम को लक्ष्य स्पष्ट रहता है और उनके पास उसे बचाने का हमेशा बेहतर मौका होता है।