5 ऐतिहासिक टेस्ट मैच जो भारत हर हाल में जीत सकता था

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भारतीय टीम 500वां टेस्ट खेलकर क्रिकेट की दुनिया में एक मील का पत्थर पार कर चुकी है और भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम इतिहास की यादें ताज़ा करना किसी लालच से कम है। हालांकि इतिहास में हुए उतार का जश्न भी मनाना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना की नई बुलंदियां छूने का। क्योंकि भारतीय क्रिकेट टीम की शुरुआत इंग्लैंड , ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ जैसी टीमों के लिए महज़ एक अभ्यास कराने वाली टीम की तौर पर हुई थी, लेकिन यकीकन भारत ने उस दौर से काफी ऊंचाईयां छूई हैं। भारतीय टीम आज खेल के तीनों फॉर्मैट्स में एक प्रमुख टीम है और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) निःसंदेह दुनिया का सबसे अमीर और ताकतवर बोर्ड है। लेकिन क्रिकेट के असल रूप में, भारतीय टीम ने बीते सालों में इस खेल को वो दिया है जो और कोई देश न दे सका, 'जूनून'। असलियत यह है कि आज कोई भी और देश बेधड़क होकर नहीं खेलता जैसे भारतीय टीम खेलती है, वेस्टइंडीज़ की टीम इस मामले में अपवाद जरूर हो सकती है। आज तक भारतीय टीम के साथ कई बार दिल तोड़ देने वाले हादसे हुए हैं। 7 बार भारत को हार का सामना तब करना पड़ा जब विपक्षी टीम लक्ष्य का पीछा करते हुए 6 या ज्यादा विकेट खो चुकी थी। 10 मौकों पर टीम इंडिया को हार का सामना तब करना पड़ा जब वो लक्ष्य हासिल करने से 50 रन से कम की दूरी पर थी। भारत टीम एतिहासिक टाई टेस्ट मैच का हिस्सा बनीं। 3 बार ऐसे टेस्ट ड्रॉ हुए जो जीते जा सकते थे जिसमें जीत का फासला 10 के अंदर था , ऐसे ही 5 मैचों पर आईए नजर डालते हैं जो भारत जीत सकता था , लेकिन चूक गया:

  1. ) जनवरी 1999, चेन्नई, भारत 12 रन से पाकिस्तान से हारा

संभवत: सचिन तेंदुलकर के लिए सबसे बड़ा शॉक और भारतीय क्रिकेट इतिहास में सबसे दिलतोड़ देने वाला टेस्ट , इस मैच को टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सबसे बेहतरीन मुकाबले की संज्ञा भी प्राप्त है। ये मुकाबला न जाने कितनी बार पलटा, लेकिन इस मशहूर टसल का फैसला खेल के आखिरी घंटे में हुआ । इस मैच में भारतीय दर्शकों ने भी निःस्वार्थ भाव से पाकिस्तान के खेल की सराहना की और पाकिस्तान की जीत में खूब तालियां बजाई बावजूद इसके की भारत के लिए ये दिल दहला देने वाली हार थी। पाकिस्तान पहले बल्लेबाज़ी करते हुए टेस्ट के पहले ही दिन महज 238 पर ऑलआउट हो गया । और अगर मोईन खान और मो. यूसुफ अर्धशतकीय पारी न खेलते तो ये स्कोर शर्मिंदा करने वाला होता। अनिल कुंबले ने पहली पारी में 6 विकेट झटके। जवाब में भारत का हाल भी काई खास नहीं था। सौरव गांगुली और द्रविड़ के अर्धशतकीय पारियों की बदौलत भारत टीम 254 तक पहुंची । सक़लैन मुश्ताक ने 5 विकेट लिए, जिसमें सचिन का विकेट भी शामिल था, वह 0 पर आउट हुए । दूसरी पारी में पाकिस्तान का एक्सपेरिमेंट काम आया और शाहिद अफरीदी ने 191 गेंद पर 141 रन की ताबड़तोड़ पारी खेलकर पाकिस्तान को 286 तक पहुंचा दिया जबकि वेंकटेश प्रसाद ने पारी में 6 विकेट लिए और भारत को 271 रन का टारगेट मिला। भारत का स्कोर 5 विकेट पर 82 रन था, लेकिन जब तक सचिन क्रीज़ पर थे तब कोई भारतीय हार मानने को तैयार नहीं था। कमर के दर्द और चेन्नई की गर्मी से जूझते हुए सचिन ने अपने करियर के शानदार शतकों में से एक सैकड़ा जड़ा। सचिन ने छठे विकेट के लिए नयन मोंगिया के साथ 136 रन की साझेदारी की। इससे पहले कि सचिन का दर्द असहनीय हो जाए मोंगिया तेज़ रन बनाकर मैच जल्दी खत्म करना चाहते थे , लेकिन वो आउट हो गए और भारत को जीत लिए 53 रन की जरूरत थी। सचिन की जांची परखी पारी आखिरकार पीठ दर्द के सामने जवाब देने लगी और सकलैन को सचिन का अमूल्य विकेट मिल गया। मास्टर उस वक्त आउट हुए जब टीम जीत से महज 17 रन दूर थी। हालांकि भारत की बाकी तीन विकेट सिर्फ 4 रन की अंदर ही गिर गई और सकलैन ने एक बार फिर 5 विकेच लिए. लक्ष्य का पीछा करते हुए अतयंत दबाव में खेली सचिन की इस झुझारू पारी का अयोग्य अंत हुआ। ये वो असाधारण मौका था जब सचिन मैन ऑफ द मैच का अवॉर्ड लेने भी नहीं आए। 2) सितम्बर 1986, चेन्नई, ऑस्ट्रेलिया के साथ मैच टाई हुआ

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अभी तक हुए 2000 से ज्यादा टेस्ट मैचों में ,ये उन दो मुकाबलों में से एक मैच था जो टाई हुआ। ये वो मैच नहीं था जिसमें भारतीय टीम से जीत की उम्मीद थी। इस मैच में भारतीय ने टीम ऑस्ट्रेलियाई टीम के मुंह से करीब-करीब जीत छीन ही ली थी। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने डीन जोंस के दोहरे शतक और बॉर्डर और बून की शतकीय पारियों की बदौलत 574 रन बनाए। भारत टीम जवाब में 397 रन पर ऑलआउट हो गई। के. श्रीकांत ने टीम को आक्रमक शुरुआत दी और 62 गेंद पर 53 रन बनाए लेकिन कोई भी बल्लेबाज़ शुरुआत को बड़ी पारी में तबदील नहीं कर सका। कपिल देव ने 138 गेंद पर 119 रन की शतकीय पारी खेलकर टीम को सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया। मसलन ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी के आधार पर मिली लीड के बाद दूसरी पारी में 49 ओवर में 170 रन बनाकर भारत के सामने 87 ओवर में 348 रन का टारगेट रखा। टॉप आर्डर की शानदार पारी की मदद से भारतीय टीम ने लक्ष्य का पीछा जबरदस्त अंदाज़ में किया जिसमें गावस्कर की 90 रन की पारी भी शामिल थी। रवि शास्त्री टीम को वहां तक ले गए जहां टीम को 40 गेंद पर 48 रन की जरूरत थी। शास्त्री नॉन स्ट्राइकिंग एंड पर थे और पूरे भारत की सांसे तब थम गई जब मैच की आखिरी गेंद से पहले मनिंदर सिंह lbw हो गए। क्रिकेट वर्ल्ड में इस टेस्ट को “टाई चेन्नई टेस्ट” के नाम से जाना जाता है । 3) जनवरी 1997, जोहानसबर्ग, साउथ अफ्रीका के साथ मैच ड्रॉ हुआ

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ये भारत के लिए विदेशी जमीन पर सबसे शानदार जीत में से एक हो सकती थी। टेस्ट की सबसे मजबूत टीमों में से एक के खिलाफ और सीरीज़ में 2-0 से पिछड़ने के बावजूद भारत ने युवा राहुल द्रविड़ की पारी की बदौलत पहली पारी में 410 रन बनाए, जिन्होंने 148 रन की पारी खेली और सौरव गांगुली के साथ चौथी विकेट के लिए 145 रन जोड़े , गांगुली ने 73 रन बनाए। आखिरी 4 विकेट के लिए 144 रन जोड़कर राहुल आउट होने वाले आखिरी खिलाड़ी थे। एक समय पर 147 पर 5 विकेट गंवाने के बाद भी साउथ अफ्रीका 321 रन बनाने में कामयाब हुई। भारत ने अपनी दूसरी पारी 266 रन पर घोषित कर दी, गांगुली और द्रविड़ ने फिर अर्धशतक जड़े। भारत ने साउथ अफ्रीका के सामने 356 रन का लक्ष्य रखा और पहले 78 पर 6 विकेट और फिर 95 पर 7 विकेट झटक कर भारत में प्रोटियाज टीम को दबाव में डाल दिया। मैच पूरी तरह से भारत की पकड़ में था लेकिन बारिश ने काम खराब कर दिया। भारी बारिश के चलते भारतीय टीम के पास साउथ अफ्रीका को ऑलआउट करने के लिए सिर्फ 72 ओवर ही बचे और फिर डैरल कलिनन ने 122 रन की शानदार पारी खेलकर क्लूजनर के साथ आठवें विकेट के लिए 127 रन जोड़े एलन डोनाल्ड ने 16 गेंद तक संघर्ष किया और फिर खराब रोशनी के कारण 4 ओवर रहते ही खेल रोक दिया गया। हैंसी क्रोन्ये की टीम के घर में एक जीत भारत के 1990 के खराब दौर की एक बड़ी और यादगार जीत हो सकती थी। 4) अप्रैल 2009, वेलिंगटन, न्यूजीलैंड के साथ मैच ड्रॉ हुआ

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ये उनमें से एक टेस्ट है जो पूरी तरह से जेब में था, लेकिन भारतीय टीम ने इसे हाथ से जाने दिया। ये भारतीय टीम के खेले बेहद रोमांचक टेस्ट में से एक है, सचिन, धोनी और हरभजन की अर्धशतकीय पारियों की मदद से भारत ने पहली पारी में 379 रन बनाए। जवाब में न्यूज़ीलैंड टीम की पारी महज़ 197 रन पर ही सिमट गई, जहीर ने 5 विकेट झटके जबकि हरभजन ने कीवी मिडल ऑर्डर का सफाया किया। 182 रन की विशाल लीड के बावजूद भारतीय टीम 116 ओवर्स तक अजीब अंदाज में बल्लेबाज़ी करती रही और 434 रन बना दिए, गंभीर ने भारत की ओर से सबसे ज्यादा 167 रन बनाए। भारत ने न्यूज़ीलैंड को विशालकाय 617 रन का टारगेट दिया। भारत के पास काफी समय था, चौथे दिन के अंत तक न्यूज़ीलैंड को 167 रन पर 4 झटके देने के बाद उन्हें लगा की जीत निश्चित है। लेकिन आखिरी दिन बारिश के चलते सिर्फ 38 ओवर का खेल ही हो सका औऱ मैच ड्रॉ हो गया , न्यूज़ीलैंड ने 8 विकेट पर 281 रन बनाए और रॉस टेलर ने 107 रन बनाए । भारत की अजीब गतिविधियों की वजह से ये टेस्ट ड्रॉ हुआ और सीरीज़ 1-0 से भारत के नाम रही। लेकिन भारत की उदासीनता जगजाहिर हो गई और जिस मैच को आसानी से जीता जा सकता था वो ड्रॉ रहा। 5. जनवरी 1979, ईडन गार्डन्स, कोलकाता, वेस्टइंडीज के साथ मैच ड्रॉ हुआ

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70 का दशक भारतीय टीम के लिए बेहद शानदार समय था। भारत ने इस दौरान विदेशी सरजमीं पर कई मशहूर जीत दर्ज की। हालांकि गावस्कर की टीम मेहमान वेस्टइंडीज़ टीम के खिलाफ ,जिसके पास एलविन कालीचरण जैसा कप्तान था , एक एतिहासिक जीत से चूक गई। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए भारतीय टीम ने 300 रन बनाए और इंडीज़ टीम ने बासिल विलियम्स की 111 रन की पारी की बदौलत 27 रन की बढ़त बना ली। भारत ने दूसरी पारी में सुनील गावस्कर (182*)और दिलीप वेगसरकर (157*) की 344 रन की साझेदारी की मदद से 1 विकेट खोकर विराट 361 रन बनाए। वेस्टइंडीज़ के लिए भारत ने 335 का लक्ष्य रखा और वेस्टइंडीज़ की पारी एक समय पर 133/2 से फिसल कर 183 रन पर 8 विकेट तक पहुंच गई। निचले क्रम ने कुछ प्रतिरोध दिखाया और 11वें खिलाड़ी सिल्वेस्टर क्लार्क ने 8 कीमती गेंदे खेली जिससे वेस्टइंडीज़ का स्कोर 105.1 ओवर में 9 विकेट पर 197 रन रहा। भारत के पास एस वेंकटराघवन और बिशन बेदी के रूप में सिर्फ दो ही स्पिनर्स थे जिनके साथ कपिल देव ने नई गेंद ली । अंतत: वेस्टइंडीज़ डेविड मरे और खुद कप्तान कालीचरण की बेशकीमती पारियों की बदौलत जिन्होंने 1 दिने से ज्यादा तक बल्लेबाजी की, टेस्ट ड्रॉ कराने में सफल रही .जो भारतीय उपमहाद्वीप में पांचवे दिन बेहद कम होता है।

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