महेंद्र सिंह धोनी का करियर अब अंतिम पड़ाव में है और टी20 मैचों में उनके स्थान पर भी अब सवाल खड़े होने लगे लेकिन उन्होंने अपने खेल और कप्तानी से क्रिकेट जगत में में जो मुकाम हासिल किये हैं उनकी बराबरी करना बिल्कुल आसान नहीं है। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने 2007 टी20 विश्वकप, 2011 एकदिवसीय विश्वकप और 2013 चैंपियंस ट्रॉफी अपने नाम किया। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने 178 मैचों में जीत हासिल की, जिसमें टेस्ट में 73, एकदिवसीय में 110 और टी20 में 41 जीत है। इसी वजह से धोनी का नाम भारतीय क्रिकेट इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा। आंकड़ों के हिसाब से वह भारत के सबसे सफल कप्तान है और यह विकेटकीपर बल्लेबाज एकदिवसीय मैचों के सबसे महान फिनिशरों में एक माना जाता है। दबाव में भी शांत रहने की उनकी क्षमता उन्हें औरों से अलग बनती है और इसी वजह से वो मुश्किल वक्त में भी शांत रहकर सही फैसले ले पातें हैं। हालांकि कई बार ऐसे भी मौके आये हैं जब उनके इस स्वभाव की वजह से उन्हें आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी हैं खासकर जब टीम विदेशी सरजमीं पर लगातार हारी है। घरेलू मैचों में धोनी ने शानदार कप्तानी की है लेकिन विदेशों में वो भी खासकर टेस्ट मैचों में उनकी कप्तानी ढीली नजर आई है और इसी वजह से टीम को लगातार हार का सामना करना पड़ा था। आज हम धोनी की कप्तानी के दौरान भारत की 5 सबसे बड़ी हार के बारे में आपको बतायेंगे #5. बनाम न्यूज़ीलैंड, दाम्बुला (एकदिवसीय त्रिकोणीय श्रृंखला, 2010) मेजबान श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के पहले मैच में हार के बाद वापसी करते हुए टेस्ट सीरीज को 1-1 से बराबरी कराने वाली भारतीय टीम आत्मविश्वास के साथ त्रिकोणीय श्रृंखला में उतरी। भारत और श्रीलंका के अलावा सीरीज की तीसरी टीम न्यूज़ीलैंड थी। भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुआ उस सीरीज का पहला मैच जो केन विलियम्सन का भी पहला मैच था, भारतीय टीम के लिए बुरे सपने की तरह रहा। धोनी की सेना 88 रनों पर सिमट गयी और न्यूज़ीलैंड ने 200 रनों से यह मैच जीत लिया। पहले बल्लेबाजी करते हुए न्यूज़ीलैंड की टीम ने 288 रन बनाए और उनकी तरफ से रॉस टेलर ने 95 और स्कॉट स्टायरिस ने 89 रनों की पारी खेली। भारत की शुरुआत ठीक-ठाक रही और पहले विकेट के लिए 39 रनों की साझेदारी हुई। हालांकि उसके बाद एक भी बल्लेबाज ने जिम्मेदारी के साथ नहीं खेला और अगले 49 रनों के भीतर पूरी टीम पवेलियन लौट गई। भारतीय टीम 30 ओवर भी नहीं खेल पाई और उसे 200 रनों से हार का सामना करना पड़ा। रनों के मामले में यह भारत की चौथी सबसे बड़ी हार थी। भारतीय बल्लेबाजों का ना चलना काफी अचंभित करने वाला था क्योंकि मैच भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा था जहां की पिचों पर न्यूज़ीलैंड की टीम को हमेशा परेशानी हुई है। इस हार के बावजूद भारत ने सीरीज के फाइनल तक का सफर तय किया लेकिन वहां उसे मेजबान श्रीलंका के हाथों हार का सामना करना पड़ा। #4. बनाम श्रीलंका, दाम्बुला (एकदिवसीय त्रिकोणीय सीरीज) 2010 ऐसा काफी कम देखा गया है कि पूरी भारतीय बल्लेबाजी एक ही सीरीज में दो बार पूरी तरह ना चल पाये। पहले मैच में न्यूजीलैंड के खिलाफ 88 पर सिमटने वाली भारतीय पारी श्रीलंका के खिलाफ हुए मैच में 50-2 से 103 रन पर ऑल आउट हो गयी। भारतीय टीम के लिए और भी दुखद बात रही कि श्रीलंका के बल्लेबाजों ने इस लक्ष्य को 15.1 ओवरों में हासिल कर लिया और 209 गेंद रहते भारत मैच हार गया। यह गेंद बाकी रहते एकदिवसीय मैचों में भारत की सबसे बड़ी हार थी। श्रीलंका के ऑलराउंडर थिसारा परेरा ने 5 विकेट चटकाकर भारतीय बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी। भारत की तरफ से युवराज सिंह ने सर्वाधिक 38 रन बनाए। श्रीलंका ने 2 विकेट खोकर यह लक्ष्य हासिल कर लिया। #3. बनाम इंग्लैंड, केनिंगटन ओवल, 2014- पांचवा टेस्ट इंग्लैंड की सरजमीं टेस्ट मैचों में कप्तान के रूप धोनी के लिए बुरे सपने की तरह थी। उनकी कप्तानी में टीम ने इंग्लैंड में 15 टेस्ट मैच खेले हैं जिसमें उसे 9 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है जबकि एक सीरीज में तो इंग्लैंड ने सभी मैच जीतकर 4-0 से श्रृंखला अपने नाम की थी। जब भारत 2014 में इंग्लैंड गयी तो इस बार टीम का प्रदर्शन बेहतर लगा। ट्रेंटब्रिज में हुआ पह ला टेस्ट मैच जहां ड्रा हो गया वहीं लॉर्ड्स में हुए दूसरे टेस्ट में भारत ने ईशांत शर्मा की शानदार गेंदबाजी की बदौलत ऐतिहासिक जीत दर्ज की।लेकिन, उसके बाद सब कुछ भारतीय टीम के विपरीत होने लगा और मेजबान टीम ने सीरीज के बचे बाकी तीनों टेस्ट मैच जीत लिए। भारत के लिए सबसे बड़ी हार आयी ओवल में हुए अंतिम टेस्ट मैच में। टीम की बल्लेबाजी दोनों ही पारियों में असफल रही, पहली और दूसरी पारी में भारतीय टीम ने क्रमशः 148 और 94 रन बनायें। वहीं इंग्लैंड ने अपनी पहली पारी में 486 रन बनाए जो काफी साबित हुए और भारत यह मैच पारी और 244 रनों से हार गया। पारी और 244 रनों की हार पारी की अंतर से भारतीय टेस्ट इतिहास की तीसरी सबसे बड़ी हार है। इस जीत के साथ इंग्लैंड ने 3-0 से सीरीज अपने नाम कर लिया और धोनी की कप्तानी में यह इंग्लैंड में लगातार दूसरी सीरीज हार थी। धोनी का टेस्ट करियर इस इंग्लैंड दौरे के कुछ समय के बाद ही हुए ऑस्ट्रेलिया दौरे में समाप्त हो गया और उनके इस संन्यास पीछे के कारणों में एक उनकी कप्तानी में विदेशों में मिल रही हार भी थी। #2. बनाम इंग्लैंड, मुम्बई- 2012/13- दूसरा टेस्ट धोनी का टेस्ट मैचों में विदेशी सरजमीं पर भले ही रिकॉर्ड काफी खराब रहा हो लेकिन घर में उनका रिकॉर्ड काफी जबरदस्त रहा है। उनकी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घर में खेले सभी 8 टेस्ट मैचों में भारत ने जीत हासिल की है।लेकिन, इंग्लैंड की टीम में भारत के घर में आकर भी टेस्ट मैचों में अपनी बादशाहत सिध्द की है। 2012/13 के दौरे पर 4 टेस्ट मैचों की सीरीज में इंग्लैंड ने 2-1 से जीत हासिल की, जिसमें वानखेड़े स्टेडियम पर मिली 10 विकेटों की जीत भी शामिल है। सीरीज का पहला मैच भारत के लिए काफी शानदार रहा और टीम ने इस मैच में 9 विकेट से जीत हासिल की। दूसरे मैच में धोनी ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। हालांकि पुजारा ने 135 रन बनाए फिर भी पूरी भारतीय पारी 327 पर सिमट गई। जवाब में खेलने उतरी इंग्लैंड की टीम ने एलिस्टेयर कुक और केविन पीटरसन के शतकों के मदद से पहली पारी के आधार पर 86 रनों की बढ़त बना ली। भारतीय दर्शकों को दूसरी पारी में बल्लेबाजों से काफी उम्मीदें थी लेकिन पूरी टीम 142 रनों पर पवेलियन लौट गई। सिर्फ गौतम गंभीर और रविचन्द्रन अश्विन ही दहाई का आंकड़ा छू पायें। जीत के लिए मिले 58 रनों के लक्ष्य को इंग्लैंड की टीम ने बिना विकेट खोए हासिल कर लिया। उसके बाद कोलकाता में हुए तीसरे टेस्ट को भी इंग्लैंड ने भारत को हरा दिया, जबकि अंतिम टेस्ट मैच ड्रा पर छूट गया। इस तरह इंग्लैंड ने भारत को घर में हराकर 2-1 से सीरीज जीत गयी। #1. बनाम बांग्लादेश, ढाका- दूसरा एकदिवसीय, 2015 पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश ने क्रिकेट जगत पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी है और इनकी शुरुआत 2015 विश्वकप में इंग्लैंड पर मिली जीत को माना जा सकता है। विश्वकप के क्वाटर फाइनल मुकाबले में भी भारत के खिलाफ इस टीम ने जमकर मुकाबला किया लेकिन रोहित शर्मा के आउट को नो बॉल करार दे दिया गया और उनके शतक की मदद से भारत ने मैच अपने नाम कर लिया। उसके कुछ महीने बाद ही भारत की टीम 3 एकदिवसीय मैचों की सीरीज खेलने बांग्लादेश गयी और उसी सीरीज में मुस्तफिजुर रहमान ने एकदिवसीय क्रिकेट में पदार्पण किया। उनकी शानदार गेंदबाजी के बदौलत बांग्लादेश ने सीरीज अपने नाम कर लिया। धोनी की कप्तानी में अपनी सबसे मजबूत टीम लेकर उतरी भारत पहले दोनों मैच हार गई और यह सीरीज धोनी की कप्तानी का सबसे खराब सीरीज में गिना जाता है। पहला मैच हारने के बावजूद दूसरे मैच में टीम ने उससे कोई सीख नहीं ली। टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम मात्र 200 रन ही बना पाई। बांग्लादेश की तरफ से अपना दूसरा ही मैच खेल रहे युवा मुस्तफिजुर ने 6 विकेट हासिल किए। लेकिन भारतीय गेंदबाज ऐसा कोई भी कारनामा नहीं कर पाए और मेजबान टीम ने 6 विकेट बाकी रहते आसानी से लक्ष्य को हासिल कर लिया। इस बाद धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम को दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के हाथों भी हार का सामना करना पड़ा। धोनी की कप्तानी में भारत की हार का सिलसिला न्यूज़ीलैंड के खिलाफ टूटा, जिसे भारतीय टीम ने 3-2 से हराकर एकदिवसीय सीरीज अपने नाम किया।