अभी तक क्रिकेट के 11 विश्वकप टूर्नामेंट हो चुके है। जिसमें क्लाइव लॉयड, कपिल देव, एलन बॉर्डर, इमरान खान,अर्जुना रणतुंगा, स्टीव वॉ, रिकी पोंटिंग, महेंद्र सिंह धोनी और माइकल क्लार्क की कप्तानी में टीमों ने जीत दर्ज की है। इन सब नामों में केवल लॉयड और पोंटिंग ही ऐसे कप्तान हैं जिनकी कप्तानी में उनकी टीम एक से ज्यादा बार विजेता बनने में सफल रही हैं। इन सबके अलावा बहुत से क्रिकेटर हैं जो लंबे समय तक किसी देश के कप्तान रहे और तमाम टूनामेंट जीतने के बावजूद भी विश्वकप की ट्रॉफी नहीं जीत पाए। यहाँ हम बात कर रहे है उन पांच कप्तानों की जो विश्वकप के सेमीफाइनल और फाइनल तक का सफर तय कर चुके है पर विश्वकप की ट्रॉफी उठाने से चूक गए। #5 इयान चैपल ऑस्ट्रेलिया को शुरूआती दौर में रिची बेनो के बाद अगर कोई महान कप्तान मिला जिसने टीम को नई ऊँचाई पर पहुँचाया तो वो इयान चैपल थे। चैपल के कभी हार ना मानने वाले नजरिये ने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट को बदलकर रख दिया था। चैपल की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया टीम 1971 से 1975 तक टेस्ट क्रिकेट में अजेय रही थी । उस समय तक भले ही एकदिवसीय क्रिकेट को तुच्छ नजरों से देखा जाता था पर चैपल को इतने अच्छे रिकॉर्ड के बावजूद भी विश्वकप नहीं जीतने का पछतावा हमेशा रहा। चैपल ने ऑस्ट्रेलिया टीम की पहले विश्वकप में कप्तानी की थी। चैपल की कप्तानी में टीम ने अपनी चिरप्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड को सेमीफाइनल में हराकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मुक़ाबले में खिताब में उसे वेस्टइंडीज टीम से भिड़ना था। कप्तान क्लाइव के शानदार शतक (85 गेंद में 112 रन) के बदौलत वेस्टइंडीज ने 292 रन का विशाल लक्ष्य ऑस्ट्रेलिया के सामने रखा। 60 ओवर में 292 रन पीछा करने उतरी ऑस्ट्रेलिया टीम कीथ बोयश के तेज गति के सामने लड़खड़ाती नज़र आई। एक छोर पर कप्तान इयान चैपल (93 गेंदों पर 62 रन) जमे हुए थे पर रिचर्ड्स द्वारा चैपल को रनआउट करने के बाद टीम पूरी पारी लड़खड़ा गयी और इसका फायदा उठाकर वेस्टइंडीज ने पहला विश्वकप अपने नाम कर लिया और इयान चैपल पर विश्वकप नहीं जीत पाने का धब्बा लग गया। #4 मार्टिन क्रो न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान मार्टिन क्रो को 1992 विश्वकप का असली हीरो कहा जाता है। 1992 का विश्वकप पाकिस्तान की जीत और इमरान खान द्वारा सुनाई ' कोनेटेड टाईगर्स' की सराहनीय कहानी के अलावा भी बहुत सारे बदलावों के लिए जाना जाता है । इसी विश्वकप में पहली बार रंगीन कपड़ों में और सफेद गेंदों के साथ खेली गया था और अधिकतम मैच दूधिया रोशनी (फ्लडलाइट्स) में खेले गए थे। कीवी टीम के कप्तान मार्टिन क्रो के निर्णयों के कारण भी यह विश्वकप काफ़ी महत्वपूर्ण था। क्रो ने क्रिकेट में सलामी बल्लेबाजी के तरीका ही बदलवा दिया। अब तक ओपनर आकर आराम से खेलते थे और बड़े शॉट लगने से बचते थे लेकिन क्रो की कप्तानी में टीम के ओपनर अब आते ही धुंआधार बल्लेबाजी करने लगे थे। इसके अलावा किसी स्पिनर के द्वारा पहला ओवर फेंकने का निर्णय भी क्रो ने पहली बार लिया था। मेजबान न्यूज़ीलैंड की टीम को 1992 के विश्वकप में खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था । सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड ने पाकिस्तान के सामने 263 रन का लक्ष्य रखा जिसे पाकिस्तान ने इंज़माम-उल-हक की शानदार बल्लेबाजी के दम पर पाकिस्तान ने आसानी से हासिल कर लिया और कप्तान मार्टिन क्रो का विश्वकप जीतने का ख्वाब अधूरा ही रह गया। #3 हैंसी क्रोनिए दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिए मैच फिक्सिंग के आरोपों में फंसने से पहले तक अपने समय के महान कप्तानों में शुमार थे। उनके क्षेत्ररक्षण के तरीके और तेज गेंदबाजों के बेहतरीन प्रयोग ने उनको 90 के दशक में क्रिकेट अपनी अलग जगह दिलाई थी। हैंसी ने दक्षिण अफ्रीका का 1996 और 1999 विश्वकप में नेतृत्व किया था। हैंसी के नेतृत्व में 1996 में अफ्रीका टीम ने क्वार्टरफाइनल तक का सफर तय किया जहां उसे वेस्टइंडीज से हार का सामना करना पड़ा था। इस मैच में हैंसी ने सबसे बड़ी गलती की थी एलेन डोनाल्ड की जगह स्पिन गेंदबाज खिलाने की जिसका खामियाजा उनके विश्वकप से बाहर होकर चुकाना पड़ा। 1996 के विश्वकप में मिली हार के बावजूद असली पीड़ा और चोकर्स का तमगा 1999 के विश्वकप ने दिया। 1999 के विश्वकप में भी दक्षिण अफ्रीका की टीम सेमीफाइनल में पहुंची। जहां ऑस्ट्रेलिया के साथ बेहद रोमांचक मुकाबला हुआ। दक्षिण अफ्रीका की टीम मैच को बराबरी पर ला चुकी थी और उसकी अंतिम जोड़ी मैदान पर थी। तभी हड़बड़ाहट में रन भागने के चक्कर में एलेन डोनाल्ड रन आउट हो गए और लीग मैचों में बेहतर रनरेट की वजह से ऑस्ट्रेलिया की टीम फाइनल में पहुँच गयी और कप्तान हैंसी कोनिए का विश्वकप जीतने का ख्वाब अधूरा ही रह गया । #2 सौरव गांगुली सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम में नया जोश भरा था । उन्हीं के नेतृत्व में टीम ने 'घर के शेर' तमगे से बाहर निकल विदेशी जमीन पर भी जीत की आदत लगाई थी। भारतीय क्रिकेटरों ने विदेश के मैदानों पर अच्छा प्रदर्शन करना भी इन्होंने ही सीखाया था। गांगुली की कप्तानी में टीम ने एक तरफ जहां 2001 में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीतकर टेस्ट में अपना दम दिखाया वही दूसरी तरफ 2002 की नैटवेस्ट सीरीज को जीतकर एकदिवसीय मैचों में खुद की कप्तानी का लोहा मनवाया। 2003 विश्वकप से पहले का समय भारतीय क्रिकेट के लिये कुछ खास नहीं रहा था। न्यूज़ीलैंड के खराब दौरे के बाद भारतीय टीम विश्वकप में हिस्सा लेना दक्षिण अफ्रीका पहुंची थी। जहां ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लीग मैच में मिली हार से उभरते हुए टीम ने फाइनल तक पहुंच गई। सौरव की कप्तानी में ही भारतीय टीम साल 1983 के बाद पहली बार साल 2003 में वर्ल्डकप के फाइनल में पहुंची थी। 2003 में विश्व कप के फाइनल में जगह बना कर गांगुली ने नया कीर्तिमान गढ़ दिया था लेकिन फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों ने भारत के विश्व कप को जीतने का सपना तोड़ दिया और सौरव देश को विश्वकप नहीं दिला पाए। #1 ब्रेंडन मैकलम न्यूजीलैंड के कप्तान ब्रेंडन मैकलम क्रिकेट की सभी प्रारूप में टीम के सबसे बेहतर खिलाड़ी है । उनकी कप्तानी में वो क्षमता है जो पूरी टीम को साथ लेकर चल सकते थे और साथी खिलाड़ियों को बेहतर खेलने के लिए प्रेरित भी करते थे। मैकलम ने टीम को आक्रामक खेलना सिखाया है और उनकी कप्तानी में टीम ने 2015 के विश्वकप में फाइनल तक सफर तय किया। न्यूजीलैंड की टीम फाइनल तक पहुँचने तक अजेय थी पर फाइनल में उसे ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा और कप्तान मैकलम का विश्व विजेता बनने का ख्वाब अधूरा ही रह गया। भले ही मैकलम की कप्तानी में टीम विश्वकप नहीं जीत पाई हो लेकिन इस महान खिलाड़ी ने विश्वकप के अलावा भी न्यूजीलैंड को काफी कुछ दिया है जिसके कारण उन्हें लंबे समय तक याद किया जाएगा। लेखक- राम कुमार अनुवादक- ऋषिकेश सिंह