ने अपनी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम में नया जोश भरा था । उन्हीं के नेतृत्व में टीम ने 'घर के शेर' तमगे से बाहर निकल विदेशी जमीन पर भी जीत की आदत लगाई थी। भारतीय क्रिकेटरों ने विदेश के मैदानों पर अच्छा प्रदर्शन करना भी इन्होंने ही सीखाया था। गांगुली की कप्तानी में टीम ने एक तरफ जहां 2001 में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीतकर टेस्ट में अपना दम दिखाया वही दूसरी तरफ 2002 की नैटवेस्ट सीरीज को जीतकर एकदिवसीय मैचों में खुद की कप्तानी का लोहा मनवाया। 2003 विश्वकप से पहले का समय भारतीय क्रिकेट के लिये कुछ खास नहीं रहा था। न्यूज़ीलैंड के खराब दौरे के बाद भारतीय टीम विश्वकप में हिस्सा लेना दक्षिण अफ्रीका पहुंची थी। जहां ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लीग मैच में मिली हार से उभरते हुए टीम ने फाइनल तक पहुंच गई। सौरव की कप्तानी में ही भारतीय टीम साल 1983 के बाद पहली बार साल 2003 में वर्ल्डकप के फाइनल में पहुंची थी। 2003 में विश्व कप के फाइनल में जगह बना कर गांगुली ने नया कीर्तिमान गढ़ दिया था लेकिन फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों ने भारत के विश्व कप को जीतने का सपना तोड़ दिया और सौरव देश को विश्वकप नहीं दिला पाए।