वनडे क्रिकेट में एक सलामी बल्लेबाज़ की ज़िम्मेदारी टेस्ट क्रिकेट के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा होती है। टेस्ट मैच के दौरान दोनो ओपनर्स का काम नई गेंद को ख़ुरदुरा बनाना होता है। टेस्ट मैच का शुरुआती वक़्त पिच के मिज़ाज को समझने में ख़र्च हो जाता है। सीमित ओवर के खेल में सलामी बल्लेबाज़ो का काम पावरप्ले के दौरान बढ़ियां शॉट लगाना होता है ताकि जल्द ही शुरुआती रन बन सकें। अगर सलामी बल्लेबाज़ एक मज़बूत स्कोर बनाते हैं तो अगले बल्लेबाज़ों का काम आसान हो जाता है। मैदान में बेहतर आउटफ़िल्ड और छोटी बाउंड्री की वजह से बल्लेबाज़ों का काम कुछ आसान हो जाता है। हांलाकि कुछ खिलाड़ी टॉप ऑर्डर में खेलने के लिए ख़ुद को ढाल लेते हैं। वनडे क्रिकेट में साल 2000 के बाद काफ़ी बदलाव आया है। बदलते वक़्त के साथ सलामी बल्लेबाज़ों ने भी ऐसे माहौल में खेलने का हुनर पैदा कर लिया है। यहां हम ऐसे 5 सलामी बल्लेबाज़ों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें वनडे इतिहास का अब तक का बेहतरीन सलामी बल्लेबाज़ माना जाता है: (नोट- इस लिस्ट में सिर्फ़ उन्ही बल्लेबाज़ों को शामिल किया गया है जिन्होंने कम से कम 150 ओपनिंग पारी खेली है, इसलिए रोहित शर्मा जैसे शानदार खिलाड़ी भी इस लिस्ट से बाहर हैं।) अन्य महान सलामी बल्लेबाज़ जैसे सौरव गांगुली, क्रिस गेल, गॉर्डन ग्रीनिज और वीरेंदर सहवाग को भी इस लिस्ट में जगह नहीं मिल पाई है।
सईद अनवर
1990 के दशक में पाकिस्तानी बल्लेबाज़ी लाइन अप इतनी मज़बूत नहीं थी, लेकिन सबसे टॉप में सलामी बल्लेबाज़ सईद अनवर चट्टान की तरह खड़े रहते थे। जब वो ओपनिंग करने उतरते थे तो उनका आत्मविश्वास कमाल का रहता था। कई मौक़े पर तो वो अकेले अपने दम पर पाकिस्तानी टीम को जीत की दहलीज़ पर ले आते थे। टीम इंडिया के ख़िलाफ़ वो हमेशा अच्छा खेल दिखाते थे, और वो क्रीज़ पर लंबे वक़्त तक टिके रहने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने इंडिपेंडेंस कप में भारत के ख़िलाफ़ ओपनिंग करते हुए 194 रन की पारी खेली थी। सईद अनवर का ये निजी रिकॉर्ड कई साल तक बरक़रार रहा, इसकी बराबरी जिम्बाब्वे के चार्ल्स कॉवेंट्री ने की थी, जिसे बाद में सचिन तेंदुलकर ने तोड़ा था। उन्हें लाइन और लेंग्थ की अच्छी समझ थी और वो अपनी पूरी ताक़त से खेलते थे। पाकिस्तान के लिए 220 वनडे में ओपनिंग करते हुए उन्होंने क़रीब 40 की औसत से 8156 रन बनाए हैं, जिनमें 20 शतक शामिल हैं। जब तक वो क्रीज़ पर रहते थे तब तक विपक्षी टीम पर उनका ख़ौफ़ बरक़रार रहता था। उन्होंने वर्ल्ड कप के 21 मैच खेले हैं जिनमें उनका औसत 54 के क़रीब रहा और इस दौरान उन्होंने 3 शतक लगाए।
सनथ जयसूर्या
श्रीलंका के सनथ जयसूर्या एक ऐसे बल्लेबाज़ रहे हैं जिन पर हालात और विपक्षी टीम बिलकुल फ़र्क नहीं डाल पाती थी। जब वो पिच पर उतरते थे तो गेंदबाज़ों के दिलों में ख़ौफ़ पैदा हो जाता था। जब तक वो पिच पर बने रहते थे तब तक हार उनसे कोसों दूर मंडराती थी। वनडे मैच के वो जादूगर थे और शॉट लगाने में माहिर थे। उनकी आँख और हाथ की जुगलबंदी कमाल की थी, उनकी तेज़ नज़र का असर उनकी बल्लेबाज़ी पर साफ़ देखा जा सकता था। जयसूर्या ने 2 दशकों से ज़्यादा वक़्त तक श्रीलंकाई टीम में अपना अहम योगदान दिया है, वो टीम के लिए हमेशा ज़रूरी रन बनाते थे। उन्होंने 1989 में अपने वनडे करियर की शुरुआत की थी, 4 साल के बाद वो टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज़ बन गए। वो कई मौक़ों पर अच्छी गेंदबाज़ी की बदौलत भी श्रीलंका को जीत दिलाते रहे हैं। वो साल 1996 में वर्ल्ड चैंपियन टीम का हिस्सा थे और अपने छोटे कद का काफ़ी फ़ायदा उठाते थे और ऑफ़ साइड में शॉट लगाते थे। लेग साइड में भी खेलने में उनको महारत हासिल थी, वो स्क्वायर लेग में गेंद पहुंचाने में माहिर थे।
डेज़मंड हेंस
डेज़मंड हेंस सिर्फ़ अपनी शानदार बल्लेबाज़ी के लिए ही नहीं जाने जाते थे, बल्कि वो अपने जोड़ीदार गॉर्डन ग्रीनिज के साथ साझेदारी के लिए भी मश्हूर थे। वो सीमित ओवर के मैच में टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी करने में माहिर थे। यही बात उनको ख़ास बनाती थी। उनकी बात की जाए तो सिर्फ़ आंकड़े मायने नहीं रखते, उन्हें ये पता होता था कि कब और कैसे विपक्षी गेंदबाज़ों पर अटैक करना है। अगर आपको विवियन रिचर्ड्स की बल्लेबाज़ी याद है तो आपको ये भी याद होना चाहिए कि हेंस ने भारत के चेतन शर्मा और ऑस्ट्रेलिया के जेफ़ थॉमसन की गेंद पर कैसे लगातार 3 गेंदों पर 3 हुक शॉट लगाए थे। सलामी बल्लेबाज़ की हैसियत से उन्होंने 41 से ज़्यादा की औसत से 8648 रन बनाए हैं, जिसमें 17 शतक शामिल हैं।
एडम गिलक्रिस्ट
एडम गिलक्रिस्ट ने जो वनडे क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ी है वो सदियों तक याद रखी जाएगी। टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी करते हुए वो जिस तकनीक का इस्तेमाल करते थे वो बेजोड़ थी। वो तेज़ गेंद को भी बेहद आसानी से खेल पाते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वो बल्ला नहीं, हथौड़ा चलाते थे। नई गेंद पर कमाल दिखाना कोई एडम से सीखे। ऑफ़ साइड में वो जानलेवा शॉट लगाने में माहिर थे, लेग साइड भी उनके चौके, छक्के से खाली नहीं जाता था, वो गेंदबाज़ों को मसल कर रख देते थे। वो स्पिनर को खेलते वक़्त अपने पैरों का इस्तेमाल ज़्यादा करते थे और गेंदबाज़ों को राहत का कोई मौक़ा नहीं देते थे। साल 1990 के वक़्त से छोटी उम्र में ही वो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में अपना भविष्य देखने लगे थे। साल 1996 में उन्होंने अपने वनडे करियर का आग़ाज़ किया, लेकिन मध्य क्रम में वो बल्लेबाज़ी के लिए जद्दोजहद करते रहे, वो अकसर छठे या सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करते थे। अपनी सटीक तकनीक की वजह से उन्हें साल 1998 में दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ ओपनिंग के लिए भेजा गया। बतौर सलामी बल्लेबाज़ उन्होंने दूसरे मैच में ही शतक जमा दिया। अपने करियर के आख़िर में उनके नाम 15 शतक थे, वो साल 1999, 2003 और 2007 के वर्ल्ड चैंपियन टीम का हिस्सा थे। उन्होंने साल 2007 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल मैच में 149 रन की शानदार पारी खेली थी।
सचिन तेंदुलकर
सचिन का नाम ही काफ़ी है, उनका तार्रुफ़ करना उनकी तौहीन होगी। इसमें कोई शक नहीं कि वो वनडे के सबसे महान ओपनर रहे हैं। अपने वनडे करियर के शुरुआत में वो हमेशा टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी नहीं करते थे, लेकिन 5 साल के तजुर्बे के बाद उन्हें ओपनिंग करने को कहा गया। इसके बाद उन्होंने उन ऊंचाइयों को छुआ जो शायद किसी बल्लेबाज़ के लिए मुमकिन न हो पाए। बतौर सलामी बल्लेबाज़ उन्होंने 344 मैचों में 48.29 की औसत से 15,130 रन बनाए हैं। इस दौरान उनका स्ट्राइक 89 का रहा। वो विपक्षी गेंदबाज़ों के लिए काल बन जाते थे और हर माहौल और हालात में रन बनाते थे। सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर वो पॉवरप्ले ओवर का बख़ूबी इस्तेमाल करते थे, और जब फ़ील्डर मैदान में फैल जाते थे तो वो विकेटों के बीच दौड़ लगाकर ज़्यादा रन बनाते थे। लेखक – आद्या शर्मा अनुवादक- शारिक़ुल होदा