एडम गिलक्रिस्ट
एडम गिलक्रिस्ट ने जो वनडे क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ी है वो सदियों तक याद रखी जाएगी। टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी करते हुए वो जिस तकनीक का इस्तेमाल करते थे वो बेजोड़ थी। वो तेज़ गेंद को भी बेहद आसानी से खेल पाते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वो बल्ला नहीं, हथौड़ा चलाते थे। नई गेंद पर कमाल दिखाना कोई एडम से सीखे। ऑफ़ साइड में वो जानलेवा शॉट लगाने में माहिर थे, लेग साइड भी उनके चौके, छक्के से खाली नहीं जाता था, वो गेंदबाज़ों को मसल कर रख देते थे। वो स्पिनर को खेलते वक़्त अपने पैरों का इस्तेमाल ज़्यादा करते थे और गेंदबाज़ों को राहत का कोई मौक़ा नहीं देते थे। साल 1990 के वक़्त से छोटी उम्र में ही वो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में अपना भविष्य देखने लगे थे। साल 1996 में उन्होंने अपने वनडे करियर का आग़ाज़ किया, लेकिन मध्य क्रम में वो बल्लेबाज़ी के लिए जद्दोजहद करते रहे, वो अकसर छठे या सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करते थे। अपनी सटीक तकनीक की वजह से उन्हें साल 1998 में दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ ओपनिंग के लिए भेजा गया। बतौर सलामी बल्लेबाज़ उन्होंने दूसरे मैच में ही शतक जमा दिया। अपने करियर के आख़िर में उनके नाम 15 शतक थे, वो साल 1999, 2003 और 2007 के वर्ल्ड चैंपियन टीम का हिस्सा थे। उन्होंने साल 2007 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल मैच में 149 रन की शानदार पारी खेली थी।