टीम इंडिया ने भारतीय दर्शकों को क्रिकेट के मैदान पर कई यादगार लम्हें दिये हैं। हालांकि 1980 के पहले ऐसी कई यादगार घटनाएं हुई हैं जिन्हें उस समय टेक्नोलॉजी के अभाव के कारण रिकॉर्ड नहीं किया गया। लेकिन 1980 के पश्चात तकनीकी क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी परिवर्तन की वजह से भारतीय क्रिकेट इतिहास की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को हम आज भी देख सकते है। कोई भी सच्चा प्रशंसक किसी भी मैच की तस्वीर देखकर बता सकता है कि उस दिन कौन सी चीजें मैदान पर घटित हुई थी।
दृश्य माध्यम के साथ हमेशा से ही खिलाड़ियों और दर्शकों का गहरा लगाव रहा हैं। भारत के लिए सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज अनिल कुंबले को अपने करियर के दौरान सभी खास पलों को कैमरे में कैद कर लेने की आदत थी। अगर कोई उनके दौर में भारतीय क्रिकेट का सफर कैसा था यह जानना चाहता है तो कुंबले के पास इसे बयां करने के लिए अनगिनत तस्वीरों का खजाना तैयार है।
आज हम ऐसी ही पांच प्रतिष्ठित तसवीरों के बारे में बात करने वाले हैं जो कि भारतीय क्रिकेट के गौरवपूर्ण इतिहास को बयां करती है।
#1. विश्व कप 1983 में भारत की यादगार जीत
वेस्टइंडीज की शक्तिशाली टीम ने सबसे पहले आयोजित किया गया विश्व कप जीतने के बाद 1979 का वर्ल्ड कप भी अपने नाम किया था। 1983 के विश्व कप को जीतकर कैरेबियाई टीम के पास लगातार तीसरी बार इतिहास रचने का बेहतरीन मौका था। दूसरी ओर भारतीय टीम पूरी दुनिया को अचंभित करते हुए फाइनल में प्रवेश कर चुकी थी। हर कोई वेस्टइंडीज टीम को तीसरी बार विश्व कप जीतने का प्रबल दावेदार बता रहा था।
भारत के लिए भी फाइनल में पहले बल्लेबाजी करना नुकसानदेह साबित हुआ। भारतीय टीम केवल 183 रन बनाने में कामयाब रही जो कि वेस्टइंडीज के लिए बेहद आसान लक्ष्य माना जा रहा था। लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज को अच्छी शुरुआत मिली तो भारत की हार लगभग तय दिख रही थी। इसी वक्त भारतीय कप्तान कपिल देव ने सर विवियन रिचर्ड्स का अविश्वसनीय कैच लपका।
इसके बाद भारतीय टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वेस्टइंडीज को 140 रनों पर ही ढेर कर दिया। कपिल देव की कप्तानी में भारतीय टीम ने इतिहास रच दिया था, इसी क्षण की भारतीय दर्शक सालों से प्रतीक्षा कर रहे थे। सबको चौंकाते हुए भारतीय क्रिकेट टीम ने अपना पहला विश्व कप जीत लिया था। टीम इंडिया के कप्तान कपिल देव जब ट्रॉफी लेने के लिए पहुंचे, उस वक्त खींची गई तस्वीर आज भी भारतीय क्रिकेट इतिहास की सर्वश्रेष्ठ तस्वीर मानी जाती है।
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#2. वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ का ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पूरे दिन बल्लेबाजी करना
साल 2001 में ऑस्ट्रेलिया की टीम तीन टेस्ट मैच की श्रृंखला खेलने के लिए भारत के दौरे पर थी। मेहमान टीम भारत आने से पहले लगातार 15 टेस्ट मैच जीत चुकी थी, भारत को मुंबई टेस्ट में हराकर ऑस्ट्रेलिया ने लगातार सोलहवीं जीत हासिल कर ली। अगला टेस्ट मैच कोलकाता में था जहां पर ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए पहली पारी में 445 रन बनाए, जिसके जवाब में भारतीय टीम केवल 171 रनों पर ढेर हो गई।
भारत को तीसरे ही दिन दोबारा बल्लेबाजी करने के लिए उतरना पड़ा। तीसरे दिन के अंत तक भारत ने दूसरी पारी में चार विकेट के नुकसान पर 254 रन बना लिये थे। वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ क्रमशः 109 और 7 रन बनाकर नाबाद थे, मगर भारत की हार निश्चित मानी जा रही थी। लेकिन अगले दिन जो होने वाला था इसकी कल्पना भी किसी भारतीय प्रशंसक ने नहीं की होगी।
आश्चर्यजनक रूप से, द्रविड़ और लक्ष्मण ने मजबूती से बगैर कोई विकेट गंवाए पूरे दिन बल्लेबाजी की, जिसके चलते भारत ने दिन के अंत तक चार विकेट के नुकसान पर ही 589 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया। लक्ष्मण ने नाबाद 275 रन बनाकर अपने टेस्ट करियर का सर्वाधिक स्कोर बनाया, दूसरे छोर पर द्रविड़ ने भी नाबाद 155 रन बनाकर लक्ष्मण का बखूबी साथ निभाया। यह तस्वीर उसी वक्त खींची गई है, जब दोनों बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया के खतरनाक गेंदबाजी आक्रमण को टेस्ट के चौथे दिन खेलकर नाबाद ड्रेसिंग रूम में लौटे थे। भारत ने इस टेस्ट को जीतने के बाद श्रृंखला पर भी कब्जा किया और ऑस्ट्रेलिया के विजयरथ को भी रोक दिया था।
#3. 2002 नेटवेस्ट फाइनल में सौरव गांगुली का लॉर्ड्स बालकनी पर टी-शर्ट लहराना
भारत, श्रीलंका और इंग्लैंड के बीच 2002 में त्रिकोणीय नेटवेस्ट प्रतियोगिता का आयोजन इंग्लैंड में ही किया गया था। इंडिया और इंग्लैंड के बीच लंदन में इस टूर्नामेंट का फाइनल खेला गया। पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड ने सलामी बल्लेबाज मार्क ट्रेस्कॉथिक और कप्तान नासिर हुसैन के शतकों की बदौलत 50 ओवर में पांच विकेट के नुकसान पर 325 रनों का स्कोर खड़ा किया।
300 से ज्यादा रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत की सलामी जोड़ी ने मजबूत शुरुआत दिलाई। 15 ओवर के अंदर ही वीरेंदर सहवाग और सौरव गांगुली ने पहले विकेट के लिए 100 रनों की साझेदारी की, इसके बाद दोनों ही बल्लेबाज अपने विकेट गंवा बैठे। 25 ओवर खत्म होने से पहले ही भारत की आधी टीम 146 रन बनाकर पवेलियन लौट चुकी थी। खासकर सचिन तेंदुलकर के आउट हो जाने से टीम इंडिया पर जबरदस्त दबाव बढ़ गया।
फाइनल में हार की आशंका से ज्यादातर भारतीय दर्शकों ने अपने टेलीविजन बंद कर दिये थे, मगर दो युवा भारतीय बल्लेबाजों ने खेल का रूख ही पलट कर रख दिया। युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ की जोड़ी ने अच्छे रन रेट से बल्लेबाजी करना जारी रखा। पांचवें विकेट के लिए दोनों बल्लेबाजों के बीच 121 रनों की शानदार साझेदारी हुई जिसमें युवराज के 69 रन शामिल थे।
युवराज के आउट हो जाने के बावजूद कैफ अंत तक डटे रहे और भारत को ऐतिहासिक जीत हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने इस जीत का जश्न मनाने के लिए अपनी टीशर्ट को निकाल कर जोश के साथ हवा में लहराया। ऐसा करते हुए उन्होंने वानखेड़े स्टेडियम में इंग्लैंड की जीत के बाद एंड्रू फ्लिंटॉफ द्वारा भारत के साथ किए गए बर्ताव का बदला लिया।
#4. टी20 विश्व कप 2007 में भारत की जीत
साल 2007 में खेले गए एकदिवसीय विश्व कप में भारत का ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। भारतीय क्रिकेट इतिहास की यह एक ऐसी घटना थी जिसे हर कोई भुला देना चाहेगा। इसी साल आईसीसी ने पहली बार दक्षिण अफ्रीका में टी20 वर्ल्डकप के आयोजन की भी घोषणा कर दी थी। बीसीसीआई ने नये फॉर्मेट को मद्देनजर रखते हुए युवा भारतीय टीम भेजने का निर्णय लिया जिसके कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी को नियुक्त किया गया था।
भारत ने लाजवाब प्रदर्शन करते हुए इस प्रतियोगिता के फाइनल में जगह बना ली। ज्यादातर मुकाबलों में युवराज सिंह भारतीय बल्लेबाजी का प्रमुख स्तंभ बनकर उभरे थे। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए फाइनल मुकाबले में सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर की 75 रनों की पारी की बदौलत टीम इंडिया ने पांच विकेट के नुकसान पर 157 रनों का स्कोर खड़ा किया।
पाकिस्तान की शुरूआत बेहद ही खराब रही जिसके कारण उन्होंने 76 रनों के मामूली स्कोर पर ही छह विकेट गंवा दिये। अब पाकिस्तान का सारा दारोमदार कप्तान मिसबाह उल हक पर ही था। मिसबाह ने खेल को रोमांचक बनाए रखा और मुकाबला अंतिम ओवर तक जा पहुंचा। जोगिंदर शर्मा के अंतिम ओवर में पाकिस्तान को जब चार गेंद पर छह रनों की आवश्यकता थी तब मिसबाह विकेट के पीछे स्कूप शॉट खेलने के चक्कर में श्रीसंथ को कैच थमा बैठे। उपर दिखाई गई तसवीर "कैप्टन कूल" धोनी के शांत स्वभाव से विपरीत एक युवा कप्तान को मिली जबरदस्त सफलता का जोश दर्शाती है।
#5. विश्व कप 2011 के फाइनल में धोनी का ऐतिहासिक छक्का
भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित किया गया 2011 का विश्वकप करोड़ों भारतवासियों के लिए सबसे यादगार बन कर रह गया। पूरे टूर्नामेंट के हीरो रहे युवराज सिंह जानलेवा बीमारी से गुजर रहे थे, इसके बावजूद उनके प्रदर्शन में कोई भी कमी देखने को नहीं मिली। क्वार्टर फाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर पाकिस्तान के विरुद्ध मोहाली में खेला गया सेमीफाइनल मुकाबला भी जीत लिया था।
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और श्रीलंका के बीच विश्व कप 2011 का फाइनल मुकाबला खेला गया। श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए महेला जयवर्धने की शतकीय पारी के चलते 274 रनों का सम्मानजनक स्कोर बनाया। भारत की ओर से लक्ष्य का पीछा करते हुए वीरेंदर सहवाग और सचिन तेंदुलकर की सलामी जोड़ी सस्ते में पवेलियन लौट गई। विराट कोहली और गौतम गंभीर के बीच एक अच्छी साझेदारी पनप रही थी इसी बीच तिलकरत्ने दिलशान ने कोहली का विकेट ले लिया।
मुथैया मुरलीधरन की स्पिन गेंदबाजी का सामना करने के लिए धोनी ने बल्लेबाजी क्रम में बदलाव करते हुए खुद ही युवराज से पहले बल्लेबाजी करने के लिए उतरने का फैसला लिया। गंभीर केवल तीन रन से अपना शतक चूक गए मगर धोनी और युवराज की जोड़ी ने कमाल कर दिखाया। भारत को जीत के लिए केवल चार रनों की जरूरत थी तब धोनी ने गगनचुंबी छक्का जड़कर 28 साल बाद टीम इंडिया के दूसरी बार विश्व कप जीतने का सपना पूरा किया।