पाकिस्तान के खिलाफ भारत चैंपियंस टॉफी का फाइनल बुरी तरह हार गया। ऐसा माना जा सकता है कि यह टूर्नामेंट भारत के लिए काफी अच्छा रहा अगर फाइनल की हार को हटा दी तो। फाइनल की हार हो या सीरीज के बीच में जब भी टीम मुश्किल में आई तो टीम कमजोरी जग जाहिर हो गयी। भारत को इन कमियों पर ध्यान देकर उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। आईये देखते है वर्तमान में भारतीय टीम की 5 प्रमुख खामियों को जिन्हें दूर करने की सख्त जरूरत है। खराब क्षेत्ररक्षण 2000 के बाद से युवाओं के आने के बाद टीम की फील्डिंग का स्तर लगातार ऊपर की तरफ गया है। जिसमें मोहम्म्द कैफ और युवराज सिंह का खासा योगदान रहा है। तब से भारत विश्व की सबसे अच्छी फील्डिंग टीमों में आना स्थान बना चुका है। लेकिन चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान कई मौकों पर टीम के क्षेत्ररक्षकों ने उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया। जड़ेजा और कोहली को छोड़ दे तो ज्यादातर मौकों पर कैच नहीं लपके गए और रन आउट के मौके भी हाथ से निकल गए। केदार जाधव, अश्विन, यहां तक कि युवराज और रोहित शर्मा ने भी मैदान में गलतियां की। पिछले कुछ वर्षों में ऐसा कम ही हुआ है और टीम को इसे जल्दी से जल्दी सुधारना होगा। मध्यक्रम में निरंतरता की कमी चैंपियंस ट्रॉफी में जाने से पहले टीम की सबसे बड़ी परेशानी सलामी बल्लेबाज और मध्यक्रम के प्रदर्शन को लेकर था। लेकिन दोनों सलामी बल्लेबाज और विराट कोहली के जबरदस्त प्रदर्शन ने मध्यक्रम की खामियों को छुपा दिया। सभी को युवराज, धोनी तथा जाधव से की उम्मीद थी । लेकिन फाइनल के दिन मोहम्मद आमिर के धारदार गेंदबाजी के सामने चोटी के बल्लेबाज नहीं टिक पाए, उसके बाद मध्यक्रम पूरी तरह ढह गया। नीचे हार्दिक पांड्या को छोड़ कर सभी बल्लेबाजों ने निराश ही किया। धोनी और युवराज को निरंतर होना पड़ेगा वरना टीम में उनके भी स्थान पर खतरा आ सकता है। रविचन्द्रन अश्विन का खराब फॉर्म हाल ही में समाप्त हुए घरेलू मैचों में भारत के उम्दा प्रदर्शन की सबसे बड़ी वजहों में एक अश्विन भी थे। लेकिन सीमित ओवरों के खेल में अश्विन टेस्ट वाला कमाल नहीं दोहरा पाए। शुरुआत के 2 मैचों में उन्हें टीम में जगह ही नहीं मिली लेकिन जब जगह भी मिली तो वो अपना प्रभाव छोड़ने में असफल ही रहें। मध्य के ओवरों में अश्विन विकेट की कोशिश करने के बजाय रन रोकने की कोशिश करते नज़र जाए। जिससे तो ना ही विकेट मिला और ना ही रन रुका। फाइनल में तो अश्विन ने 10 ओवर में 70 रन दे दिए। कुलदीप यादव और युजवेंद्र चहल जैसे खिलाड़ी मौके का इंतज़ार कर रहे है ऐसे में अश्विन को अच्छा प्रदर्शन करना ही पड़ेगा वरना टीम में अपनी जगह भी खो सकते हैं।अत्यधिक अतरिक्त रन सीरीज के ज्यादातर मैचों में भारतीय टीम 2 प्रमुख तेज़ गेंदबाज बुमराह और भुवनेश्वर कुमार से खेली है। लेकिन दोनों ने उस तरह का निरन्तर प्रदर्शन नहीं किया जिसकी उनसे उम्मीद की जाती है। भारतीय टीम अतरिक्त रनों का खामियाजा 2003 विश्वकप फाइनल में भी भुगत चुकी है। जहां ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ज़हीर खान ने अपना नियंत्रण खोकर कई वाइड और नो बॉल फेंके थे और टीम को विश्वकप गवाना पड़ गया था। टीम ने पाकिस्तान के खिलाफ 25 अतिरिक्त रन दिए जिसमें नो बॉल भी शामिल था, जिसपर फखर ज़मान आउट होकर भी बच गए थे। बांग्लादेश के खिलाफ भी गेंदबाजॉन ने 23 अतरिक्त रन दिए वही दक्षिण अफ्रीका ने 191 रन बनाए थे जिसमें 16 अतरिक्त रन ही थे। पांचवें गेंदबाज की समस्या पूरे प्रतियोगिता में भारत पांचवें गेंदबाज की निरंतरता में कमी से जूझता रहा। हार्दिक पांड्या की वजह से टीम से 2 तेज़ गेंदबाज और 2 स्पिनर को खिलाती रही। पांड्या अच्छी गेंदबाजी तो कर रहे थे लेकिन उनमें निरंतरता की साफ कमी नज़र आ रही थी जिस वजह से केदार जाधव और खुद विराट कोहली को भी गेंदबाजी में हाथ आजमाने पड़े। पांड्या के पास गति तो है पर वो हमेशा लाइन-लेंथ से जूझते नजर आते है। बाउंसर का इस्तेमाल कभी कभी करने के बजाये बार-बार करने की कोशिश करते है जिससे काफी रन चला जाता है। जाधव कई मौकों पर सफल सिद्ध होते है. भारतीय टीम जाधव और पंड्या को मिला कर 5वें गेंदबाज की पूर्ति करना चाहता है जो ज्यादातर मौकों पर विफल हो जाती है। सबसे ज्यादा परेशानी तब खड़ी हो जाती है, जब 4 प्रमुख गेंदबाजों में से किसी को ज्यादा रन पड़ने लगता है फिर टीम के पास कोई विकल्प ही नहीं बचता। इस पर ध्यान देकर इसे दूर करने के काफी ज्यादा जरूरत है।