क्रिकेट में कप्तानी करने के लिए आपको बहुत अधिक धैर्य, आत्मविश्वास और दृढ़ता की जरूरत होती है। एक अरब से अधिक लोगों की उम्मीदों को हमेशा अपने कंधो पर रख के चलना बहुत ही मुश्किल होता है। भारत जैसे क्रिकेट उन्मादी देश में एक सफलता आपको राष्ट्रीय हीरो वहीं असफलता आपको विलेन बना सकती है। हम आज ऐसे ही भारत के 5 बड़े और बेहतरीन कप्तानों की बात करेंगे, जिन्होंने भारतीय फैन्स को जश्न मनाने के कई मौके दिए। लेकिन उनकी एक असफलता उनके कप्तानी करियर के लिए एक धब्बा साबित हुई। कपिल देव औऱ वेस्टइंडीज के हाथों 5-0 की क्लीन स्वीप, 1983 ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हाल ही में खत्म हुई 5 मैचों की श्रृंखला सहित भारत ने घरेलू मैदान पर कुल 54 द्विपक्षीय एकदिवसीय श्रृंखला खेली है। इसमें से एक बार को छोड़कर कभी भी भारतीय टीम का अपने मैदान में सफाया (व्हाइटवाश) नहीं हुआ। भारत को अपने घरेलू मैदान पर यह हार पहला विश्व कप जिताने वाले कपिल देव की कप्तानी में मिली थी। यह हार 1983 के विश्व कप फाइनल में वेस्टइंडीज को हराने के तुरंत बाद मिली थी। विश्व कप जीत के बाद भारत क्लाइव लॉयड की कप्तानी वाली वेस्टइंडीज टीम की मेजबानी कर रहा था। लेकिन कैरेबियाई खिलाड़ियों ने 5-0 के बड़े अंतर से भारतीय टीम को धूल चटा दी। इस सीरीज में वेस्टइंडीज के सलामी बल्लेबाज गॉर्डन ग्रीनीज ने एक शतक और दो अर्धशतकों की मदद से 88.25 की औसत से 353 रन बनाया और भारतीय गेंदबाजों को जमकर निशाना बनाया। हालांकि अपने देश को पहला विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव को भारत के सबसे महान कप्तानों में से एक माना जाता है, लेकिन इस श्रृंखला की हार उनके कप्तानी करियर पर एक बहुत बड़ा धब्बा है। मोहम्मद अजहरुद्दीन और 90 के दशक में भारत का विदेशी जमीन पर प्रदर्शन एक भारतीय क्रिकेट प्रशंसक के लिए 90 का दशक मिली-जुली सफलता वाला था। भारत ने इस दशक में घर पर एक भी टेस्ट सीरीज नहीं गंवाया लेकिन विदेश में अब भी उनका रिकार्ड कुछ खास नहीं था। हालांकि इस टीम में अनेक बड़े नाम और सितारे मौजूद थे लेकिन टीम की बल्लेबाजी पूरी तरीके से सचिन तेंदुलकर के कंधों पर निर्भर थी। बल्लेबाजी में तेंदुलकर और गेंदबाजी में अनिल कुंबले जैसे विश्वसनीय स्पिनर की मौजूदगी अजहरुद्दीन की सेना को घर का शेर बनाती थी लेकिन विदेश में यही शेर ढेर हो जाते थे। इस दशक में भारतीय टीम विदेश में सिर्फ कमजोर श्रीलंका को हरा पाई, बाकी जगहों पर टीम को निराशा ही हाथ लगी। इस दशक में भारत ने अजहरुद्दीन की कप्तानी में विदेशी जमीन पर कुल 27 टेस्ट टेस्ट मैच खेला लेकिन सिर्फ उसे एक ही में जीत मिल सकी। इसका प्रमुख कारण विदेशी पिचों पर भारतीय गेंदबाजों द्वारा 20 विकेट लेने की अक्षमता थी। विदेश की तेज पिचों पर भारत के पास जवागल श्रीनाथ के अलावा कोई भी स्तरीय तेज गेंदबाज नहीं था। वहीं ऐसी पिचों पर स्पिन गेंदबाज भी कुछ खास नहीं कर सकते थे। एक कमजोर और अस्थाई बल्लेबाजी लाइनअप भी विदेशी पिचों पर लगातार बिखर जाती थी। सचिन तेंदुलकर और दक्षिण अफ्रीका के हाथों टेस्ट में 2-0 की क्लीन स्वीप, 2000 भारत ने घरेलू मैदान पर अब तक कुल 71 टेस्ट श्रृंखला खेली है, लेकिन एक मौके को छोड़कर भारत को अपनी जमीन पर कभी भी टेस्ट श्रृंखला में क्लीन स्वीप का सामना नहीं करना पड़ा है। यह दु:खद पल 2000 में आया था, जब हैंसी क्रोनिए की चतुर कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका के हाथों सचिन तेंदुलकर के टीम को 2-0 से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। इस सीरीज टीम का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज होने के अलावा सचिन तेंदुलकर के कंधे पर कप्तानी का भी बोझ था। पूरी सीरीज में 97 के औसत से रन बनाने वाले इस महान खिलाड़ी को दूसरे छोर से टीम के साथी बल्लेबाजों का उचित सहयोग हासिल नहीं हुआ। बेंगलुरू के दूसरे टेस्ट में अजहरुद्दीन ने भी शानदार शतक जड़ा, लेकिन यह मेजबानों के पारी की हार रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था। इस तरह क्रोनिए की टीम ने एक प्रसिद्ध 2-0 की जीत हासिल की और भारतीय टीम का अपनी जमीन पर पहली बार सफाया हुआ। राहुल द्रविड़ और 2007 विश्व कप यह भारतीय क्रिकेट के इतिहास के सबसे दु:खद छवियों में से एक है। 2007 के विश्वकप में अनुभवी खिलाड़ियों से भरे हुए टीम का ग्रुप चरण से बाहर हो जाना निश्चित रूप से मार्मिक और दिल तोड़ देने वाला था। इस टीम को टूर्नामेंट के फेवरिट टीमों में से एक माना जा रहा था, लेकिन सितारों से भरी यह टीम बांग्लादेश और श्रीलंका जैसी टीमों से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गई। राहुल द्रविड़ की टीम को अपने अभियान की शुरूआत में ही अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा जब बांग्लादेश की कमजोर मानी जा रही टीम ने उसको पांच विकेट से हरा दिया। हालांकि इसके बाद टीम इंडिया ने कमजोर बरमूडा को 257 रनों के एक बड़े अंतर से हराया, लेकिन वह ग्रुप की सबसे मजबूत टीम श्रीलंका से पार नहीं पा सकी। त्रिनिदाद के क्वीन पार्क ओवल में मजबूत माने जाने वाली भारतीय बल्लेबाजी क्रम श्रीलंका के 255 रनों का लक्ष्य का पीछा नहीं कर सकी और 69 रनों से मैच हार गई। श्रीलंका के सबसे बड़े खिलाड़ी मुथैया मुरलीधरन ने इस मैच में 3 विकेट लिया, वहीं भारत के सबसे बड़े खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर इस मैच में एक रन भी नहीं बना सके। महेंद्र सिंह धोनी और विदेशों में भारत की लगातार सात टेस्ट हार टेस्ट क्रिकेट में नंबर वन रैंकिंग, विश्व कप, चैंपियंस ट्रॉफी और टी-20 विश्व कप, यह सब खिताब निश्चित रूप से एमएस धोनी को भारत का महानतम कप्तान बनाती है, लेकिन इस विकेटकीपर बल्लेबाज को भी एक बारगी सबसे मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा था। एशिया से बाहर धोनी का टेस्ट रिकॉर्ड कभी भी बढि़या नहीं रहा है। विदेश की मुश्किल परिस्थितियों में टेस्ट सफलता के लिए धोनी अपनी टीम को कभी भी प्रेरित नहीं कर सके। एशिया के बाहर धोनी का टेस्ट रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करता है। धोनी एशिया के बाहर 26 टेस्ट मैचों में सिर्फ 4 जीत हासिल कर सकें, जबकि इस दौरान उन्हें 14 बड़ी हार का सामना करना पड़ा। 2011-12 के सीजन के दौरान धोनी का यह रिकॉर्ड और भी खराब रहा जब उनकी टीम को लगातार 7 टेस्ट मैचों में हार का सामना करना पड़ा। भारतीय टीम 2011 में विश्व चैंपियन और नंबर एक टेस्ट टीम के रूप में इंग्लैंड के दौरे पर गई थी, लेकिन अनुभवी भारतीय टीम को इस सीरीज में इंग्लैंड के हाथों 4-0 से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भी भारत का 0-4 से सफाया किया,इसके 3 मैचों में धोनी ही कप्तान थे। (एडिलेड के चौथे और अंतिम टेस्ट मैच में स्लो ओवर रेट के प्रतिबंध के कारण धोनी कप्तानी नहीं कर पाए थे)