एक भारतीय क्रिकेट प्रशंसक के लिए 90 का दशक मिली-जुली सफलता वाला था। भारत ने इस दशक में घर पर एक भी टेस्ट सीरीज नहीं गंवाया लेकिन विदेश में अब भी उनका रिकार्ड कुछ खास नहीं था। हालांकि इस टीम में अनेक बड़े नाम और सितारे मौजूद थे लेकिन टीम की बल्लेबाजी पूरी तरीके से सचिन तेंदुलकर के कंधों पर निर्भर थी। बल्लेबाजी में तेंदुलकर और गेंदबाजी में अनिल कुंबले जैसे विश्वसनीय स्पिनर की मौजूदगी अजहरुद्दीन की सेना को घर का शेर बनाती थी लेकिन विदेश में यही शेर ढेर हो जाते थे। इस दशक में भारतीय टीम विदेश में सिर्फ कमजोर श्रीलंका को हरा पाई, बाकी जगहों पर टीम को निराशा ही हाथ लगी। इस दशक में भारत ने अजहरुद्दीन की कप्तानी में विदेशी जमीन पर कुल 27 टेस्ट टेस्ट मैच खेला लेकिन सिर्फ उसे एक ही में जीत मिल सकी। इसका प्रमुख कारण विदेशी पिचों पर भारतीय गेंदबाजों द्वारा 20 विकेट लेने की अक्षमता थी। विदेश की तेज पिचों पर भारत के पास जवागल श्रीनाथ के अलावा कोई भी स्तरीय तेज गेंदबाज नहीं था। वहीं ऐसी पिचों पर स्पिन गेंदबाज भी कुछ खास नहीं कर सकते थे। एक कमजोर और अस्थाई बल्लेबाजी लाइनअप भी विदेशी पिचों पर लगातार बिखर जाती थी।